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पुस्तक नाम
* संशोधक एवं संपादक
* पुनः संपादक 'मूल कर्ता
टीकाकार
* संस्कृत छायाकार
प्रकाशक
प्रकाशन वर्ष
* कुल भाग
* मूल्य
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पुस्तक समीक्षा
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13
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आख्यानक मणिकोश
मुनिश्री पुण्यविजयजी
मुनिश्री पार्श्वरत्नसागरजी
आ.श्री नेमिचंद्रसूरि
४
डॉ. हेमन्तकुमार
आ. श्री आम्रदेवसूरिजी
मुनिश्री पार्श्वरत्नसागरजी
ॐकारसूरि आराधना भवन, सुरत
विक्रम संवत् २०६९
३००/- प्रति भाग
* भाषा
संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश
आख्यानक मणिकोश प्राकृत कथासाहित्य का अनुपम ग्रंथ है. बारहवीं शताब्दी के महान जैनाचार्य आचार्य श्री नेमिचंद्रसूरिजी द्वारा प्राकृत भाषाबद्ध ५३ गाथाओं में रचित यह कथाकोश है. आचार्य नेमिचंद्रसूरि की कृतियाँ उनके बहुमुखी प्रतिभा के धनी होने का परिचय कराती हैं. आचार्यश्री न केवल सिद्धांतशास्त्रों के ज्ञाता थे, अपितु भारतीय साहित्यिक परम्परा एवं लोक संस्कृति के भी संवाहक थे. यही कारण है कि उनकी कृतियों में जहाँ एक ओर जैन सिद्धांतों की प्रतिष्ठापना धार्मिक जगत के विद्वानों को संतुष्ट करती है, वहीं दूसरी ओर काव्यतत्त्वों एवं लौकिक मूल्यों के निरूपण की प्रचुरता साहित्यिक जगत के रसिकों को अभिरंजित करती है.
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प्राकृत भाषा में निबद्ध इस कृति को उन्हीं की परम्परा के आचार्य आम्रदेवसूरिजी ने इस ग्रंथ की गाथाओं में निर्दिष्ट दृष्टांतों के नामों का उल्लेख करते हुए विशिष्ट शैली मैं प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत एवं देशी भाषाओं में विभिन्न अलंकार, रस आदि से परिपूर्ण १२७ औपदेशिक कथाओं की रचना की है.
१४००० श्लोक प्रमाण वाली यह विस्तृत वृत्ति ४१ अधिकारों में विभक्त है.