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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 32 SHRUTSAGAR MARCH-2015 वृत्तिकार ने संस्कृत श्लोकों और प्राकृत गाथाओं को समान वृत्त में प्रस्तुत किया है. उत्कृष्ट विविध छंदों का प्रयोग कर समस्यापूर्ति एवं प्रहेलिका जैसे लोकप्रिय काव्यलक्षणों से कथाओं को सजाया गया है, जो वृत्तिकार की विद्वत्ता को प्रदर्शित करता है. आचार्य आम्रदेवसूरि की आख्यानमणिकोशवृत्ति एक वैशिष्ट्यपूर्ण ग्रंथ है. इस वृत्ति में प्रमुख भाषा प्राकृत है. वर्तमान में प्राकृत, अपभ्रंश आदि भाषा एवं देश्य शब्दों का प्रयोग नहिवत होता है, वृत्तिकार ने विभिन्न स्थलों पर देश्य शब्दों का इतनी सूक्ष्मतापूर्वक प्रयोग किया है कि सामान्यजन तो क्या विद्वानों को भी शब्दकोश की सहायता लेनी पड़े. देश्य शब्दों का भंडार एवं प्राकृत-अपभ्रंश भाषा की बहुलता के कारण यह कथाकोश वाचकों को पढ़ने में कठिनाई उत्पन्न करता है. इस ग्रंथ का संपादन एवं संशोधन कार्य पूज्य आगमप्रभाकर मुनि श्री पुण्यविजयजी ने किया था जो विक्रम संवत् २०१८ में प्राकृत ग्रंथ परिषद वाराणसी से प्रकाशित हुआ था. इतना रोचक और अद्भुत ग्रंथ भाषा का पूर्ण ज्ञान न होने के कारण संपादित होने के बाद भी वाचक वर्ग में अपेक्षित स्थान नहीं बना पाया है. इस अनमोल ग्रंथ में गुम्फित कथाओं एवं उपदेशों का लाभ वाचकों को सुलभ हो इस हेतु से मुनि श्री पार्श्वरत्नसागरजी ने पुनः संपादित किया है एवं प्राकृत, अपभ्रंश एवं देशी कथाओं की संस्कृत छाया को प्रकाशित करवा कर प्रबुद्धजनों को कथा के मर्म को समझने का मार्ग प्रशस्त करते हुये वाचकों को संतोष प्रदान करने का भरपूर प्रयास किया है. चार भागों में विभक्त प्रस्तुत प्रकाशन वाचकों के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगा. पुस्तक की छपाई बहुत सुंदर ढंग से की गई है. आवरण भी कृति के अनुरूप बहुत ही आकर्षक बनाया गया है. विस्तृत विषयानुक्रमणिका, कथाओं की सूचि, परिशिष्ट में दिए गए नाम आदि भी बहूपयोगी सिद्ध हो रहे हैं. यह ग्रंथ विद्वानों के लिए तो अत्यन्त उपयोगी है ही साथ ही ग्रंथालयों में संग्रहनीय भी है. मुनि श्री पार्श्वरत्नसागरजी ने पूर्व में भी पउमचरियं की संस्कृत छाया तैयार कर श्रुतसेवा का अनुपम कार्य किया है. संघ, विद्वद्वर्ग तथा जिज्ञासु इसी प्रकार के और भी उत्तम प्रकाशनों की प्रतीक्षा में हैं. सर्जनयात्रा जारी रहे ऐसी अपेक्षा है. पूज्य मुनिश्रीजी के इस कार्य की सादर अनुमोदना के साथ कोटिशः वंदन. For Private and Personal Use Only
SR No.525298
Book TitleShrutsagar 2015 03 Volume 01 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2015
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size6 MB
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