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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 30 SHRUTSAGAR MARCH-2015 है. प्रत्येक स्वतंत्र या मिश्रित कृतिसमूह के लिये एक स्वतंत्र पेटा अंक दिया जाता है. इस पेटा अंक पर से इस अवधारणा का नाम ही “पेटांक” के रूप में रूढ़ हो गया है. स्वतंत्र कृति जैसे श्रुतसागर के अंक ८-९ में कुल ९ लेख आदि प्रकाशित हैं. इनमें से संशोधनपरक लेख, लिपि संबंधी लेख, अलंकारविषयक ग्रंथों की सूची संबंधी लेख आदि को पेटांक के रूप में एन्ट्री की जाएगी, ताकि यदि कोई वाचक हमसे लिपि से संबंधित लेखों की या अलंकारविषयक ग्रंथों की सूची से संबंधित लेख की जानकारी मांगेगा तो हम शीघ्रता पूर्वक उपलब्ध करायेंगे. - इसी तरह किसी पत्रिका में यदि कोई कृति मूल एवं उनके साथ एकाधिक पुत्रपौत्रादि कृतियाँ प्रकाशित की गई हों तो ऐसे कृतिसमूह को एक ही पेटांक के रूप में दर्शाया जाता है. क्योंकि ये एक ही परिवार के सदस्य होते हैं. मिश्रित कृति की समाप्ति के पश्चात् अगले पृष्ठों पर यदि कोई स्वतंत्र कृति होती है, भले वह पूर्वोक्त मिश्रित कृति का सदस्य ही क्यों न हो तो उसे स्वतंत्र पेटांक के रूप में एन्ट्री किया जाता है. जैसे-गुरुछत्रीशी व अनुवाद की समाप्ति के बाद अलग से गुरुछत्रीशी एवं उसके कर्ता के संबंध में एक लेख लिखा गया हो तो उस लेख को स्वतंत्र पेटांक के रूप में एन्ट्री किया जाता है. इस प्रक्रिया के तहत प्रत्येक कृति या कृतिसमूह का नाम, पत्रांक, पूर्णता आदि का अलग-अलग उल्लेख किया जाता है. कहने का अर्थ यह है कि यहाँ प्रत्येक संशोधनपरक कृतियों को पेटांक के रूप में एन्ट्री करके वाचकों की सहायता की जाती है. नोट- पेटांक एवं कृति की विस्तृत विभावना हेतु इसी लेखमाला में पेटांक-कृति से संबंधित स्वतंत्र लेख देखें. उपरोक्त सूचनाओं को विस्तृतरूप से प्रोग्राम के जितने फिल्डों में संकलित किया जाता है, उतने ही फिल्ड प्रोग्राम में सर्च करने हेतु दिए गए हैं. जिसके कारण हमारे यहाँ आने वाले वाचकों के पास यदि कम सूचनाएँ भी होती हैं तो हम उन्हीं कम सूचनाओं के आधार पर विस्तृत सूचनाएँ वाचकों को उपलब्ध कराते हैं. इस प्रक्रिया से हमें यह लाभ होता है कि वाचकों का श्रम एवं समय तो बचता ही है साथ ही हमारे कर्मचारियों का भी श्रम व समय बचता है तथा वाचकों को उनकी अपेक्षित सामग्री शीघ्रतापूर्वक प्राप्त हो जाती है. आप स्वयं यहाँ आकर हमारे इस विशिष्ट एवं अद्वितीय प्रोग्राम से प्राप्त होने वाली सूचनाओं एवं संगृहीत सामग्री का लाभ प्राप्त करें, यही आप विद्वज्जनों से निवेदन है. For Private and Personal Use Only
SR No.525298
Book TitleShrutsagar 2015 03 Volume 01 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2015
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size6 MB
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