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अर्बुदगिरितीर्थचैत्यपरिपाटी
हिरेन के. दोशी मध्यकालीन जैन साहित्यनो खजानो एनी कृति संख्या अने एना विषयोना कारणे वैविध्यपूर्ण रह्यो छे. एक अंदाज अनुसार मध्यकालीन साहित्यनी प्रकाशित कृतिओनी संख्या करता अप्रकाशित अने अनुपलब्ध साहित्यनी संख्या वधी जाय छे. संपादको माटे आ वात प्रोत्साहक कही शकाय एम छे.
कृतिनी संख्यानी साथे कृति गत विषयोमां पण प्रचुर मात्रामा विविधता जोवा मळे छे. कवि द्वारा करातुं विषय वर्णन अने एना तमाम पासाओने समावी लेती मुग्ध रचनाओ मानवमनमां कवि अने कृतिनी अनोखी छाप उपसावी जाय छे. आवी ज एक लघुकृति अत्रे वाचकोना स्वाध्याय हेतु प्रकाशित करी छे. कृति परिचय
वि. सं. १६९७मां कविए आबुतीर्थनी यात्राना वर्णन स्वरूपे कुल २४ कडीमां आबु तीर्थनी विगतोने आबू चैत्यपरिपाटीमां आलेखी छे. कृतिनी विगतो आबु तीर्थनी द्रष्टिए सामान्य छे. पण आजनी स्थिति अनुसार एनुं मूल्यांकन करता एमांथी घj जाणवा मळी शके छे.
कविए प्रथमनी छ कडीओमा अर्बुदगिरिनी आबोहवा अने एना प्राकृतिक सौंदर्यने आवरी लेतुं सुंदर वर्णन आप्यु छे. देलवाडानी पवित्र भूमि, जिनालयोनुं आह्लादक वातावरण, अनुपम प्रशमभर जिनबिंबोए कविमानस उपर उपसावेलु प्रतिबिंब कृतिना शब्दोमां जोवा मळे छे.
विमलवसहीना वर्णननी वात आठमी कडीथी प्रारंभीने तेरमी कडी सुधी विस्तरे छे. कृतिनी अग्यारमी गाथामां कवि विक्रम संवत् १०८८मां विमल मंत्रीए करावेला विमलवसहीना निर्माणनो उल्लेख करी वसहीमा बिराजमान पाषाण अने धातुना जिनबिंबोने वंदना करी त्यांथी लुणिगवसहीना नेमिनाथ भगवानना दर्शन कर्यानो उल्लेख करे छे. भीमाशाहे बंधावेल पित्तलहर मंदिरने कवि अहीं भीमप्रासाद तरीके संबोधे छे. ___ आगळनी सोळमी कडीमां कविए चौमुखजी मंदिरना नामे प्रसिद्ध खरतरवसही अने एना निर्माणकर्ता तरीके साह जसूनुं नाम नोंच्यु छे. मुनि श्री जयंतविजयजीए तीर्थराज आबु नामना पोताना पुस्तकमां खरतरवसहीना बंधावनार बाबते स्पष्ट उल्लेख
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