Book Title: Shrutsagar 2015 03 Volume 01 10
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 30
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR MARCH-2015 जाए, या किसी भी प्रकार का सामान्य परिवर्तन हो तो उस स्थिति में हम पूर्व में प्रविष्ट मैगजीन की सूचना में कोई परिवर्तन किए बिना उस मैगजीन के नये अवतार के रूप में प्रविष्ट करते हैं. जिससे पूर्व में जितने अंक होते हैं उनकी सूचनाएँ यथावत् रहती हैं तथा जहाँ से परिवर्तन होता है वहाँ से नई सूचनाएँ प्राप्त होने लगती हैं. इससे हमारे वाचकों को यह लाभ होता है कि किस मैगजीन का संपादक, प्रकाशक, प्रकाशन अवधि कब से बदला है तथा उसके पूर्व की कौन-कौनसी सूचनाएँ हैं यह सरलता से पता चलता है. यह अवधारणा यहाँ स्वयं विकसित की गई है. पत्र-पत्रिकाओं की भौतिक एवं रख-रखाव की प्रक्रियाएँ आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में आने वाली सभी पत्रिकाओं की उसके नाम, वर्ष तथा अंकों के अनुसार प्रविष्टि करने के बाद उनका बहुधा वर्षांक अनुसार अलग-अलग बंडल बनाकर रखा जाता है. सभी पत्रिकाओं की प्रविष्टि हो जाने के बाद उसके ऊपर दो नम्बर दिए जाते हैं १. Accession No. (परिग्रहणांक) यह नम्बर यूनिक होता है, एक पत्रिका नाम में जो एक्शेशन नम्बर आ गया हो, वह नम्बर किसी दुसरी पत्रिका में नहीं आएगा. जैसे “तीर्थंकर वाणी” का परिग्रहणांक - Accession No.-०००४५ है. २. उसके बाद उस पत्रिका की बन्धन संख्या (Bind No) दिया जाता है, जो उसके बन्धन नाम (Bind Name) के साथ संलग्न रहता है, जैसे Bind nameतीर्थंकर वाणी १९९५, उसका Bind No. ०००५ है. ३. इकाई संख्या - (Unit position No.) यह नम्बर बाईंड में पत्रिका की प्रत्येक कॉपी की संख्या दर्शाता है. जैसे जुलाई १९९५ के तीर्थंकर वाणी की इकाई संख्या - Unit position No. ६ है. इसके आधार से बाईंड में से अपेक्षित अंक आसानी से मिल जाता है. इसके अतिरिक्त जिस पत्रिका का संयुक्तांक प्रकाशित हुआ हो, उसके प्रत्येक अंक को एक स्वतन्त्र सदस्य संख्या भी दी जाती है, जो उस संयुक्तांक में उसकी स्थिति स्पष्ट करता है. जैसे तीर्थकर वाणी १९९५ के अप्रैल तथा मई का अंक संयुक्तांक के रूप में प्रकाशित हुआ है, अतः उसकी सदस्य संख्या में १ तथा २ आते हैं. किसी मैगजिन की एक से अधिक कॉपी आई हो और वह महत्त्वपूर्ण संशोधनात्मक मैगजिन हो तो उसकी नियमानुसार प्रविष्टि कर उसके पूर्व प्रविष्ट मैगजिन के बाईन्ड नम्बर के आगे क, ख आदि करके रखा जाता है. इससे हमारे वाचकों का समय बचता है तथा अपेक्षित सूचनाएँ यथाशीघ्र प्राप्त होती हैं. For Private and Personal Use Only

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