Book Title: Shrutsagar 2014 07 Volume 01 01
Author(s): Kanubhai L Shah
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी आचार्यश्री पद्मसागरसूरिजी (गतांक से आगे) आप दृष्टि देखिए। 'त्वमेव माता च पिता त्वमेव' दृष्टि तुरन्त बाहर जूते की तरफ.घूमेगी कि जूता है या गायब हो गया। फिर जूते की तरफ नजर करते हुये बोलेगा। 'त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव' फिर वापस मुड़ कर भगवान् के सामने देखकर बोलेगा। "त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव' फिर बाहर जूते की तरफ देखकर बोलेगा। 'त्वमेव सर्वम् मम देव देव' जूते से भी गई-बीती हमारी प्रार्थना | जूते का मूल्य समझ लिया। प्रार्थना का मूल्य आज तक समझ में नहीं आया । यह जूता बडा मूल्यवान है। दो सौ-चार सौ में लाया हूँ। परन्तु नहीं मालूम कि प्रार्थना अमूल्य है। मैंने कहा कि दिमाग से आप जूता निकाल देना । परन्तु हमारी हालत बड़ी खराब है, जाता नहीं, पुरातन संस्कार है। प्रयत्न करेंगे तो जरूर सुधार आएगा। ___ महात्मा को आकर के अपशब्द बोल गया | साधना में उनका प्रवेश हो चुका था। वे तो साधना के नशे में थे, सब भूल गए थे, दुनियां कहाँ है? चित्त की ऐसी एकाग्रता आ जाती है, कुछ पता नहीं पड़ता, क्या हो रहा है? जहाँ तक यह स्थिति नहीं आएगी, संसार से शून्य नहीं बनेंगे और कभी अन्दर में सर्जन नहीं होगा। आत्मा की वह खोज कभी पूरी होने वाली नहीं है। सम्राट अकबर जंगल में शिकार खेलने के लिए गए थे। शाम का समय था, खुदा की बन्दगी के लिए नमाज पढ़ रहे थे। बड़ा सुन्दर कालीन बिछा दिया गया। उनके साथ और भी कई अमीर थे। अचानक शाम के समय एक छोटा-सा निर्दोष बालक दौड़ता हुआ आया और गलीचे के ऊपर से निकल गया। बड़ा सुन्दर गलीचा था। सम्राट एकदम नाराज हुए। अपने आदमियों को कहा कि इस बालक को पकड़ करके ले आओ। For Private and Personal Use Only

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