Book Title: Shrutsagar 2014 07 Volume 01 01
Author(s): Kanubhai L Shah
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर
23
जून - २०१४
प्रशस्ति उपरथी उपजतुं वंशवृक्ष
सुमति
आभू
आसड
मोष' (मोक्ष) वर्धमान - चंडसिंह पेथड नरसिंह रत्नसिंह चतुर्थमल्ल (चोथमल) मुंजाल विक्रमसिंह धर्मण
पद्म 1
लाडण
आलणसिंह
मंडलिक
विजित (पत्नी वरमणकाइ) पर्वत (प. पोइआ) डुंगल (प. मंगादेवी) नर्मद सहस्रवीर
काहना
अंतिम वक्तव्य प्रस्तुत प्रशस्ति 'निशीथचूर्णि' तथा 'विंशोद्देशकव्याख्याना अंतमा उल्लिखित छे. (चूर्णिकार जिनदास महत्तर छे. अने व्याख्याकार शीलभद्रसूरिशिष्य श्रीचंद्रसूरि छे. व्याख्या संवत् ११७४ मां बनी छे.) आ प्रशस्ति जे आदर्श उपरथी उतारी छे ते पुस्तकना लखावनारनी नथी पण जेना उपरथी आ पुस्तक लखायुं छे ते पुस्तकनी प्रतिकृति जेना उपरथी थइ छे ते पुस्तकना लखावनारनी आ प्रशस्ति छे, कारण के ते पुस्तकनो उतारो संवत् १५७१मां थयो छे. तेना उपरथी हीरविजयसूरिना शिष्योए संवत् १६६६ मा प्रतिकृति करावी. अने तेना उपरथी १७३५मां खंभातमां उतारो थयो के जेना उपरथी आ प्रशस्ति उतारी छे. ___ आ प्रशस्तिमां अशुद्धिओ घणी हती तेने सुधारीने आपी छे. फक्त ज्यां खास अन्य कल्पना करवानो अवकाश होय तेवा स्थळे मूळ पाठ राखी शुद्धपाठ कोष्टकमां आप्यो छे.
आ पुस्तक पाटणना रहेवासी सद्गत शेठ अंबालाल चुनीलालना भंडारनुं छे. ते भंडार हाल पालीताणामां आणंदजी कल्याणजीनी देखरेखमा छे. हाल तेनो वहीवट पालीताणा रहेवासी मास्तर कुंवरजी दामजीना हाथमां छे, जेमनी उदारताथी आ प्रशस्ति वाचकोना नेत्र आगळ प्राप्त थइ छे. आ स्थळे आत्रणेनां नामने आपणे भूलीशुं नहीं.
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