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दर्भावती तीर्थ एक परिचय
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कनुभाई एल. शाह
गुजरात राज्यमा वडोदराथी ३२ कि.मी. ना अंतरे आवेलुं डभोई (दर्भावती) शहेर पुरातन काळथी जैन तेमज जैनेतरोमां तेनी धार्मिक, ऐतिहासिक तेमज साहित्यिक दृष्टिए प्रसिद्धि पामेलुं एक नगर छे.
अर्धपद्मासने बिराजित बे प्रतिमाओ श्री लोढण पार्श्वनाथ तथा श्री प्रगट पार्श्वनाथ डभोईना जिनालयोमां बिराजमान छे अर्धपद्मासन मुद्रानी प्रतिमाओ बहु ज जूज जोवा मळे छे, तेमानी आ बे जिन प्रतिमाओ छे.
दर्भावती नीचेनां कारणोथी विशेष ध्यान खेंचे छे: डभोईमां एक हजार वर्ष पूर्वे जन्म पामी सौवीरपायी (मात्र कांजी वापरीने रहेता माटे सौवीरपायी) आचार्य प्रवर मुनिचन्द्रसूरीश्वरजी म. साहेब तथा त्रणसो वर्ष पूर्वे स्वर्गवास पामेल न्यायविशारद महोपाध्याय श्रीमद् यशोविजयजी म. साहेबनी अंतिम भूमि पण डभोई छे.
हीराभागोळनो किल्लो जे शिल्पनी दृष्टिए विख्यात छे. ते डभोईमां छे. वैष्णव संप्रदायना प्रख्यात भक्त कवि श्री दयारामभाईनी जन्मभूमि पण डभोई छे.
लोढण पार्श्वनाथ प्रभुनी प्रतिमा श्याम वर्णनी छे प्रभुजी ४१ ईंच ऊँचा छे अने ३३ ईंच पहोळा छे. सप्तफणाथी अलंकृत आ प्रतिमा अर्धपद्मासनस्थ छे. भक्त हृदयना दिलने रोमांचित करे तेवो तेनो रसिक इतिहास छे. एक श्रेष्ठीना संकल्प बनुं दृष्टांत आ लोढण पार्श्वनाथ प्रभुजीनी प्रतिमा छे.
सागरदत्त नामनो एक वेपारी पोठोमां वस्तुओ भरीने फरतो फस्तो डभोई नगरमां आव्यो. आ व्रतधारी श्रावक चातुर्मासना दिवसोने लीधे दर्भावतीमां रोकायो. परमात्मानी पूजा कर्या बाद ज भोजन ग्रहणनी प्रतिज्ञा हती. पोतानी साथै प्रतिमा लाववानुं सागरदत्त भूली गयो हतो. प्रतिमा-पूजन कर्या सिवाय भोजन केवी रीते लई शकाय ? आ व्रत पालन माटे तेणे माताना कहेवाथी वेळुनी नयनरम्य प्रतिमाजीनुं सर्जन कर्तुं अने पोताना घरमा पधरावी.
श्रेष्ठी सागरदत्त खूब ज भावथी आनंदोल्लासपूर्वक प्रतिमाजीनी सेवा-पूजा करतो. चातुर्मास पूर्ण थतां ते पोताना वतन तरफ जवा तैयार थयो जता पहेला तेणे आ प्रतिमाजीने नगरनी मध्यमां आवेला एक कूवामां पधरावी ते पोताना गाम चाल्यो गयो.
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