Book Title: Shrutbodha
Author(s): Kanaklal Thakur, Bramhashankar Mishr
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ गणनाम-देवताफलानि मो भूमिः श्रियमातनोति य-जलं वृद्धिं र-वह्निर्मृति सो वायुः परदेशदूरगमनं त-व्योम शून्यं फलम् । जः सूर्यो रुजमाददाति विपुलं भेन्दुर्यशो निर्मलं नो नाकश्च सुखप्रदः फलमिदं प्राहुर्गणानां बुधाः ।। अर्थात् मगण का देवता भूमि है वह लचमी का विस्तार करता है, यगण का देवता जल है वह वृद्धि करता है, रगण का देवता अग्नि है वह मृत्यु देता है, सगण का देवता वायु है वह परदेश वा दूरगमन कराता है, तगण का देवता आकाश है उसका शून्य फल है, जगण का देवता सूर्य है वह रोग देता है, मगण का देवता चन्द्रमा है वह निर्मल यश देता है और नगण का देवता स्वर्ग है वह सुख देता है। इस प्रकार से पण्डित लोग गणों का फल वर्णन करते गणानां मन्त्राः १. मगण-ॐ म मगणाय नमः । २. यगण-ॐ यं यगणाय नमः। ३. रगण-ॐ रं रगणाय नमः । ४. सगण-ॐ सं सगणाय नमः। ५. तगण-ॐ तं तगणाय नमः । ६. जगण-ॐ जं जगणाय नमः । ७. मगण-ॐ मं मगणाय नमः । ८. नगण-ॐ नं नगणाय नमः ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34