________________ પૂ. આ. શ્રી વિન્ય જાતિસૂરિ ઉગે નમઃ આ.શ્રી વિજય પ્રેમસૃરિ જૈન જ્ઞાન ભંડાર, बाराणसी तथा दरभंगा उमय संस्कृत विश्वविद्यालयस्वीकृत संस्कृत-व्याकरणम् (संस्कृत-हिन्दी निबन्ध सहित परिवर्द्धित द्वितीय संस्करण ) सरल सुबोध हिन्दी की सहायता से संस्कृत माध्यम द्वारा बालकों को संस्कृत व्याकरण का ज्ञान कराने के हेतु यह मौलिक रचना की गई है / संस्कृतानुवाद के लिए यह सर्वोपरि पुस्तक है / इसमें मनो-वैज्ञानिक दृष्टिकोण से रखा गया एक-एक शब्द अपने स्थान पर बालकों के बौद्धिक स्तर के सर्वथा अनुकूल है। प्रसङ्गानुसार विमर्श, टिप्पणी, उदाहरणमाला, अभ्यासायं प्रश्न, कारिकाबद्ध सूत्र एवं परिशिष्ट आदि सामग्री उपादेय एवं द्रष्टव्य है। केवल इस लघूत्तम पुस्तक के ही अभ्यास से संस्कृतव्याकरण के सब अङ्गो. का यथेष्ट ज्ञान प्राप्त हो जायगा। परीक्षोपयोगी अत्यन्त सरल 2-3 पृष्ठों का संस्कृत-हिन्दी निबन्ध परीक्षार्थियों के लिए अधिक उपयोगी है। 3-.. संस्कृतरचनानुबादशिक्षका (वाराणसी तथा बिहार की प्रथमा परीक्षा पाठ्य स्वीकृत) इसमें प्रथमा के छात्रों को अनुवाद करने के नियम अत्यन्त सरक रूप में समझाए गये हैं और तदनुसार अनुबाहार्य अभ्यास भी दिए गये हैं। अभ्यासायं वाक्यों में आए हुए प्रत्येक कठिन शब्द के संस्कृत से हिन्दी तथा हिन्दी से संस्कृत पर्याय भी पुस्तक के अन्त में 90 प्रकरणों में दे दिये गए हैं और संधि आदि का शान कराने का सुगम पथ भी प्रदर्शित कर दिया गया है। 2-00 राष्ट्रभाषा सरल हिन्दी व्याकरण (वाराणसी तथा बिहार की प्रथमा परीक्षा पाठ्य स्वीकृत)हिन्दी राष्ट्रभाषा हो जाने से शुद्ध हिन्दी में बोलना और लिखना छात्रों के लिये दुरूह हो गया था क्योंकि प्राचीन हिन्दी की पाठ्य पुस्तकों में 50 प्रतिशत उर्दू शब्दों का ही संमिश्रण है। अतएव यह पुस्तक राष्ट्रभाषा के प्रतीक तथा 'आज' पत्र के प्रधान सम्पादक बाबूराव विष्णुपराड़कर, डा० सम्पूर्णानन्दजी प्रादि धुरन्धर हिन्दी-वेत्ताओं के मतो से अलंकृत तथा हिन्दी के महारथी पं० रामनारायण मिश्र, विश्वनाथप्रसाद मिश्र आदि विद्वानों को सम्मतियों से सुसज्जित होकर नवीन रूप में प्रकाशित हुई है। 1-15 प्राप्तिस्थानम्-चौखम्बा विद्याभवन, चौक, वाराणसी-१