Book Title: Shilvati Sati Kathanakam Author(s): Hansvijay Jain Library Granthmala Publisher: Hansvijay Jain Library Granthmala View full book textPage 2
________________ Scanned by CamScanner सकाइ वक्तव्य प्रस्तुत पीरूपती सती कथानकमां शुद्ध हार्दिक भावनापूर्वक निर्मम शीव्रत पानी तेमन पंचमी तिथि आराधनपी इहलोक तेमज परलोकने पिणे सुरूपता होनता सददि संपन्नता आदि अमेवरे सक्ति सुखोनी पण प्राप्ति थाय ते संबंधमां वर्णन करवामां आन्पुं. ग्रंथांतर्गत आ रघु कथाना द्रगथी केटकाकोने एम काग, स्वाभाषिक के आवी कथाभो प्रय छपारवामां शो उपयोगीता? परंतु जगत स्वभावनी विचित्राने सइ पिचित्र रुचि जनसमुदाय होय, भने तेज कारणथी भा लघुकथा ग्रंथ लघुचि जनसमूदने आनंददायी अवश्य थशे. आवा प्रकारनो जनसमूहनो विचित्रताने लक्ष्यमा राखी कविवर बभूति पाताना नाटकमा " उत्सत्स्यतेऽस्ति मम कोऽपि समानयो" मा सूक्तनो प्रयोग को छे. भा पुस्तक प्रकाशनना शुभ कार्य माटेमपूज्य महाराज श्री सविनयजीना. शिष्यरत्न पंन्यासको भी संपदविजयजीना सरदेशथो जामनगर निवासी वीसा ओसवाल ज्ञातीय शेठ जेठामाइ गोविंदजीना श्रेय मारे तेमना सुपुत्रे द्रव्यनी साहाय करो छे. अमे तेओना आ शुभ कार्यतुं अनुमोदन करी चिरमीए छोए. अमदावाद. । लि. संग सेवकः-सा. जेसंगलाल छोटालाल १९७६ भादरवा शुदि १३. सेक्रेटरी श्री ईसविजयजी जैन लायब्रेरी.Page Navigation
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