Book Title: Shikshaprad Kahaniya Author(s): Kuldeepkumar Publisher: Amar Granth Publications View full book textPage 5
________________ आत्मकथन मेरा जन्म साधारण परिवार में हुआ। मेरे दादाजी संस्कृत अध्यापक थे। मेरे पिताजी भी संस्कृत अध्यापक हैं। मेरी माताजी तीसरी-चौथी कक्षा पास थीं। उन्होंने बचपन में मुझे बहुत कहानियाँ सुनाई थीं। तभी से मुझे कहानियाँ सुनने का बड़ा शौक था। लेकिन, उस शौक की, वास्तविक पूर्ति सन् 2001 में मेरे गुरुजी प्रो. वीरसागर जैन जी ने की जब मैंने उक्त सन् में जैनदर्शन विभाग की आचार्य कक्षा में प्रवेश लिया। गुरुजी ने छोटी-छोटी कहानियों के माध्यम से ऐसी प्रेरणा प्रदान की कि मेरा जीवन ही परिवर्तित हो गया। मैं एक सब्जी-विक्रेता से सहायकाचार्य बनकर गुरुजी के बराबर में बैठ गया। पता नहीं उन कहानियों में ऐसी क्या शक्ति थी, जिसका राज मुझे आज तक समझ में नहीं आया। हमारे देश में प्राचीनकाल में कथा-कहानियों के माध्यम से विद्या-अर्जन कराया जाता था, जिसका स्पष्ट प्रमाण विष्णुशर्मा द्वारा रचित 'पञ्चतन्त्र' आज भी हमारे समक्ष उपिस्थत है। उसमें पशु-पक्षियों की कहानियों के माध्यम से तत्कालीन राजकुमारों को न केवल राज-काज की ही शिक्षा प्रदान की गई है, अपितु जीवन जीने की कला, जीवन की सार्थकता को भी समझाया गया है। प्रस्तुत लघु पुस्तिका में मैंने गुरुजी द्वारा सुनाई गई कहानियों को ही लिखने का प्रयास किया है। यदि इन कहानियों को पढ़कर एक व्यक्ति भी अपने जीवन को सार्थक बनाता है तो मैं अपने इस लेखन को सफल समदूंगा। - कुलदीप कुमारPage Navigation
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