Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 15
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ // 272 // // 273 // // 274 // // 275 // // 276 // // 277 // भण्णइ सइ जोणीए सच्चित्ताचित्तमीसभावम्मि। जइ जोणी सज्जीवं व होज्ज बीअत्ति को दोसो ? सब्भावे सारिक्खे वसुंधराईसु जीवदेहत्ते / समईयसंभवाइसु भूअसदं बुहा बेंति , जोणीब्भूयं बीयंति जमुत्तं तत्थ भूयसद्दोऽयं / जीवत्ते सारिक्खे सब्भावे वा समाउज्जो! जोणिब्भूयं जस्स उ जोणीभूयंति जंति जीवत्ते। जोणी चेव सरूवं जोणिब्भूयं तु वा बीअं अफुडं लिंगत्ताओ जोणीसरिस त्ति वा सजीवं पि। ण उ जोणीमेत्तं चिय जोणीभूतं चयइ बीजं जोणी विज्जइ जस्स उ जोणीभूयंति एस सब्भावो। जं भणियं निरुवहयं सजीवमियरं व होज्जाहि जं पि य सो वऽण्णो वा तस्सत्थोऽयं गुरूवएसेणं। सो त्ति स एवानो वि य जीवो जो तत्थ सण्णिहिओ जइ णाम किह व परिणयजीवं बीयं हवेज्ज तो अण्णो। निरुवहए उववज्जए पउट्टपरिहारसामत्था अहवा पच्चविऊणं स एव जीवो पुणो वितं बीयं। पज्जविरोहणकाले एवं पि कयाइ होज्जा हि जं पुण णिज्जीवं चिय सुक्कबीयं णिच्चमयमणेगंतो। वासाइ सत्त भणियं जेणाऊ तेसिमुक्कोसं मूलं जीवो सो जेण बीअं देहं तयं विणिम्मवियं।। अण्णेण वा जेण तेयं विरोहकाले परिग्गहिअं सो किर पढमे पत्ते वच्चइ अण्णे य सो व सेसाई। णिव्वत्तयंति मूलाइयाइं जीवा कमेणेव // 278 / / // 279 // // 280 // // 281 // // 282 // // 283 // 214
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