Book Title: Shantinath Charitram
Author(s): Amrutsuri, Abhaydevsuri
Publisher: Jain Sahitya Vardhak Sabha
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________________ [219 विश्वसेनो नृपस्वच जीयौंदादिलद्गुरुः / विख्यासो जातीपीठे विश्वसेन इवाभवत् // 4 // पुण्यलावण्यरुचिराचिरादेवीति तस्प्रिया / सर्वालङ्कारवण्याऽलता च रतिश्रिया // 5 // इतो भाद्रपदे कृष्णसाम्यां भरणीगते / चन्द्रे सर्वग्रहेषच्चस्थानस्थेषु निशान्तरे // 6 // च्युत्वा सर्वार्थतो मेघरयास्मात्मायुषः श्रने / अवतीर्णोऽचिरादेव्याः झुक्षौ / सासि हंसवद // तस्मिंश्च समये देवी मुला चतुर्दवा / महास्वप्नान् ददशैतानीसागरिकता सका / मातङ्गवृषहर्यक्षः सारिनेकेन्दिरा तथा पुष्पमालेन्दुसर्यो च वजकुम्भो सरोवरम् // 9 // सागरश्च विमानं ख रत्नान सव्यस्तथा / निधूमो हुन चेलि स्वर भागमभाविता // 10 // दृष्ट्वा स्वप्नानिमान् देवी जातनिद्राक्षा समाव / गत्वा (बो) पराजमाचल्यो प्रमोदभसनिर्भस // 12 // प्रहष्टमुखपद्मोऽथ जमाद जमनीपतिः / सर्वलक्षणसमर्णो मावी देवि ! सामना // 12 // प्रसन्नवदना धर्मचिन्मास रत्रिोपकम् / अतिक्रमयति स्पैषा कुस्वप्नालोकसाहिता // 13 // सञ्जातेऽथ प्रगेष्टानिमिसानपरिहताः / भूसुजाष्टावुपामाया बाहूता निजपूरुषः // 14 // कृतमङ्गलोपचाराः सम्प्रसास्ते नृमौकमि / दत्तासने पविष्टाचार्चिता कुसुमादिभिः // 14 // सुस्वप्नानां फलं राजा पृष्टाने समामिरे / अस्मच्छास्त्रे विचस्वामित्र साप्ता नगतीबवे // 16 //
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