Book Title: Shantinath Charitram
Author(s): Amrutsuri, Abhaydevsuri
Publisher: Jain Sahitya Vardhak Sabha
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________________ 356] तत्रापि पूर्वविधिना साधिता सिन्धुदेवता / आगत्याऽऽढौकयत् स्नानपीठं रत्नमयं विभोः // 15 // शातकुम्भमयाः कुम्भा रौप्या मृन्मयकास्तथा / अन्यां च स्नानसामग्री सुवस्त्राभरणानि च // 16 // ऊये च सर्वदा स्वामिनाज्ञाकारिण्यहं तव / इत्युक्त्वा साऽपि स्वस्थानं विसृष्टा विभुना ययौ // 17 // उत्तीय चर्मरत्नेन सिन्धु सेनापतिस्ततः / विभूपान्ते साधयित्वा प्रतीचीखण्डमागतः // 98 // कृतपूर्ण ततश्चक्रं वैताव्यस्यागमत्तले / वैतात्याद्रिकुमारश्च वशवयं भवत् प्रभोः // 19 // गुहाखण्डप्रपाताया द्वारमुद्घाटितं स्वयम् / कृतमालसुरश्चाज्ञा जगद्भः प्रपन्नवान् // 10 // तत्रोन्मग्नाऽथ निर्मग्ना द्वे नद्यावतिदुस्तरे / चकार वर्धकिः सद्यः पद्यां तत्र मनोहराम् // 1.1 // गुहायाँ प्रविवेशाऽथ प्रभुः सैन्यसमन्वितः / / काकिन्याऽथ तमो हतुं विदधे मण्डलानि च // 102 // पश्चाशयोजनान्येकोनपश्चाशच्च मण्डली / एवं जज्ञे ससैन्योऽथ परतो निरगाद् बहिः // 1.3 // तत्रापातचिलातोख्यान् म्लेच्छान् भरतचक्रिवत् / वशे चकार तरसा महापुण्यप्रभावयुक् // 104 // सेनान्या साधयित्वाऽय द्वितीयं सिन्धुनिष्कुटम् / हिमवत्पर्वतस्याषिदेवं साधयति स्म सः // 10 // गिरौ वृषभकूटाख्ये निजं नाम लिलेख छ। महोतरं निकटं चासाधय बाहिनीपतिः // 10 // समिसापां नाबमालं संसान निरमा विछ /
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