Book Title: Shadavashyak Balavbodha
Author(s): Merusundar Gani, Niranjana Vora
Publisher: Niranjana S Vora

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Page 129
________________ ११४ મેરુસુંદરગણિરચિત પડાવશ્યક બાલાવબોધ सत्तावणइ सहस्सा, लक्खा छप्पन्न अट्ट कोडीओ ॥ बत्तीसयबासिआई, तिअ लोए चेइए वंदे ॥४॥ पन्नरस कोडिसयाईं, कोडी बायाल लक्ख अडवन्ना । छत्तीस सहस असिआई, सासय बिंबाई पणमामि ||५|| अथ जं किंचि सूत्र जं किंचि नामतित्थं, सग्गे पायालि माणुसे लोए । जाई जिण बिंबाई, ताई सब्बाई वंदामि ॥१॥ ___अथ जावंति चेइआईं जावंति चेइआईं, उड्ढेअ अहेअ तिरिअ लोएअ ।। सव्वाईं ताई वंदे, इह संतो तत्थ संत्ताई ॥१॥ छ अथ जावंत के वि साहू जावंत के वि साह, भरहेरवय महाविदेहे अ॥ अव्वेसिं तेसिं पणओ, तिविहेण तिदंडविरयाणं ॥१॥ __ श्रीउपसर्गहर स्तवन उवसग्गहरंपासं, पासं वंदामि कम्मधणमुक्कं । विसहर विसनिन्नासं, मंगलकल्लाणआवासं ॥१॥ विसहरफुलिंगमंतं, कंठे घारेइ जो सया मणुओ। तस्स गह रोग मारी, दुट्ठजरा जंति उवसामं ॥२॥ चिट्ठउ दूरे मंतो, तुज्झ पणामोवि बहुफलो होइ । नरतिरिएसु वि जीवा, पावंति न दुक्खदोगच्चं ॥३।। तहु सम्मते लद्धे, चिंतामणिकप्पपायवम्बहिए । पावंति अविग्धेणं, जीवा अयरामरं ठाणं ॥४॥ इअ संथुओ महायश । भतिब्भर निब्भरेण हियएण ॥ ता देव दिज्ज बोहिं, भवे भवे पास । जिणचंद ।।५।। __ अथ जयवीरराय सूत्र जयवीयराय । जगगुरु । होउ ममं तुह पभावओ भयवं । भवनिव्वेओ मग्गा-णसारिआ इट्रफलसिद्धि ॥१॥ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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