Book Title: Sarva Dukho Se Mukti
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Foundation

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Page 13
________________ सर्व दुःखों से मुक्ति सर्व दु:खों से मुक्ति जो बुरी बात बताता है, जिसके साथ ठीक नहीं लगे तो उसका insult कर देने का। अपने पास कोई दःख ही नहीं है, दु:ख आनेवाला भी नहीं। सिर्फ भडकता ही रहता है कि ऐसा हो जायेगा, वैसा हो जायेगा। अरे, कुछ भी होनेवाला नहीं, हम मालिक है। मालिक को क्या होनेवाला है? सुख भी कीमती है और दुःख भी कीमती है। मुफ्त में तो किसी को सुख भी नहीं मिलता है और दुःख भी नहीं मिलता है। दुःख की कीमत देनी पडती है फिर दु:ख मिलता है। हमने कीमत भरी नहीं है, इसलिए हमको दुःख आता नहीं है। ये क्रोध, मान, माया, लोभ सब आपके पास तैयार है, इसलिए तुम वो भर देते हो, हमारे पास ये कुछ नहीं है। हमको तो ये सुख भी नहीं चाहिये और दःख भी नहीं चाहिये। ये सब कल्पित है। वो तो कल्पना किया है आपने। कोई आदमी बोले कि हमको लड्डू ठीक नहीं लगता है, तो उसको अच्छा नहीं लगेगा। और तुमको लड्डू ठीक लगता है, तो तुमको अच्छा लगेगा। तुमने कल्पना की तो तुमको अच्छा लगता है। आपने आत्मा का आनंद इसमें डाला, तो फिर आनंद लगा। किसी चीज में तो आनंद होता है। वो तो आपने कल्पना की, उसकी करामत है। बाहर की किसी भी चीज में आनंद नहीं है। आनंद तो, अपने खुद के अंदर ही है। खुद के स्वरूप में ही आनंद है। Really speaking, ये world में दुःख और सुख है नहीं। 'हमको ये दु:ख है, वो दुःख है' वो सब By relative view point से है. सिर्फ कल्पना है। आप बोलो कि, 'हम पैसे की लाँच(घूस) नहीं लेते'। इसमें ही हमको सुख है। और दूसरा बोलता है कि 'पैसे की लाँच(घूस) लेने में हमको सुख है।' वो relative view point है, not real view point ! जब तक भौतिक सुख प्रिय है, वहाँ तक भगवान नहीं मिलते है। हमको भौतिक सुख नहीं चाहिये, ऐसा कभी तय कर लिया तो भगवान मिल जाते है। हम भी खाते-पीते है मगर हमको नहीं चाहिये, फिर भी ऐसे ही आ जाता है। हमको अपना खुद का सुख मिला, फिर दूसरा क्या चाहिये। खुद का बहुत सुख आ जाये, उसको सनातन सुख बोला जाता है। अतीन्द्रिय सुख का किंचित् मात्र टेस्ट कर लिया तो दूसरा सब इन्द्रिय सुख फीका लगेगा। अतीन्द्रिय सुख नहीं मिला, वहाँ तक इन्द्रिय सुख अच्छा लगता है। इन्द्रिय सुख वह रिलेटिव सुख है। सच्चा सुख किसको बोला जाता है कि जो सनातन है। एक बार आया कि फिर कभी जाता ही नहीं। हम अभी आधि में है. व्याधि में है कि उपाधि में है? प्रश्नकर्ता : ऐसा कहा जाता है कि संसारी आदमी आधि, व्याधि और उपाधि से घेरा हुआ है। दादाश्री : हाँ, तो हम किस में है? आपको क्या लगता है? हम निरंतर समाधि में रहते है। कोई गाली दे तो भी हमारी समाधि नहीं जाती और कोई फूल चढाये तो भी हमारी समाधि नहीं जाती। आपको तो फूल चढाये, गाली दे तो समाधि चली जायेगी। आपको कोई पैर में गिरकर दर्शन करने आयेगा तो आप गभरा जाओगे। आप मान भी पचा नहीं सकते और अपमान भी पचा नहीं सकते। हमको तो मान मिले तो भी हरकत नहीं और अपमान मिले तो भी हरकत नहीं है। हमारे यहाँ valuation का devaluation हो गया है। सब जगह अपमान की devaluation थी, तो हमने उसका valuation कर दिया और मान की valuation थी, उसका devaluation कर दिया। दोनों को नोर्मल कर दिया! ऊर्ध्वगति के Laws ! प्रश्नकर्ता : जिंदगी में त्रास है और पीडा से परेशान हूँ, उसका कोई मार्ग चाहिये।

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