Book Title: Sarva Dukho Se Mukti
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Foundation

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Page 38
________________ सर्व दुःखों से मुक्ति सर्व दुःखों से मुक्ति दो ही गाली क्यं देता है? तीन क्यं नहीं देता है? एक क्यं नहीं देता है? आप फिर बोलेंगे कि 'भाई, दो गाली दिया, अभी और दूसरी दो गाली दे दो। तो वो बोलेगा कि क्या हम नालायक आदमी है? हम गाली नहीं देगा। गाली देना भी उसके हाथ में नहीं है। आपका हिसाब है, उतना ही मिलेगा। अगर आपको व्यापार चालु रखने का हो तो आप फिर से गाली दो और बंध करने का है तो गाली मत दो। हो, वो मनुष्य में होते हुए भी जानवर जैसा दिखता है। ३३% से पासवाला तुमने देखा है कि नहीं देखा? प्रश्नकर्ता : देखा है। दादाश्री : उनके साथ झगडा मत करो। जो ३३% से पास हुआ है, उसके साथ क्या झगडा करना?! जो ५०% से पास हुआ है, उसके साथ झगडा करो न! प्रश्नकर्ता : जहाँ देखो वहाँ लोग स्वार्थी ही दिखाई देते है, ऐसा क्यों? दादाश्री : कभी स्वार्थी आदमी तमने कोई देखा है? हम अकेले ही स्वार्थी है!!! क्योंकि हम 'स्व' के अर्थ के लिए जीते है। आप जिसको स्वार्थी कहते है, वो स्वार्थ तो भ्रांति का स्वार्थ है याने स्वार्थ नहीं, परार्थ है। परायों के लिए सच्चा-जूठा करता है, दखलबाजी करता है और अपार दुःख सहन करता है। वो सब परार्थी है। परार्थी तो खुद का स्वार्थ बिगाड़ता है। प्रश्नकर्ता : भगवान का न्याय और जगत का न्याय ये अलग है क्या? संसार - अपनी ही दख़लों का प्रतिसाद! प्रश्नकर्ता : आपने कहा है कि कोई जीव दूसरे किसी जीव में दखल नहीं देता है, वह कैसे? दादाश्री : वर्ल्ड में दख़ल करनेवाला कोई जीव है ही नहीं। वो जो दख़ल करता है, वो तुम्हारी दख़ल का प्रतिसाद है। तुम्हारी समझ में आ गया न? प्रश्नकर्ता : नहीं, नहीं, और ज्यादा समझाईए! दादाश्री : हमने कुछ दख़ल नहीं की है, तो हमको कोई दखल नहीं करता। वो तुमको जो दख़ल करता है, वो तुम्हारा आगे के जन्म का हिसाब है। आपको किसी ने दो गाली दिया, तो आप सोचना कि दादाश्री : दोनों अलग है। जगत का न्याय भ्रांति से होता है। ये सब भ्रांतिवाले न्यायाधीश है और भगवान का न्याय शुद्ध है। जैसा है वैसा ही न्याय करते है। दोनों न्याय अलग है। जगत का न्याय तो क्या बोलेगा कि, जिसने जेब काट ली, उसकी भूल है और भगवान का न्याय बोलता है कि जिसकी जेब कट गयी, उसकी भूल है। भगवान का सरल न्याय है। दरअसल न्याय!! एक सेकन्ड भी ये जगत न्याय बिना नहीं रहता है। जैसा है वैसा' ही न्याय देता है। तुमको दखल करनेवाला कोई वर्ल्ड में नहीं है। तुम्हारी दखल एक अवतार बंध हो जायेगी, फिर कोई दखल करनेवाला नहीं है। सारे बम्बई में गुंडागर्दी चलती है, मगर आपको कोई हाथ नहीं लगायेगा। प्रश्नकर्ता : यह दखल बंध कैसे करने की? दादाश्री : कोई गुंडा तुम्हारी होटल में आ गया, उसको तुमने झगडा करके निकाल दिया। बाद में तम 'दादा भगवान' को नमस्कार कर के बोलना कि, 'हे भगवान! मुझे ऐसा नहीं करने का विचार था, मगर मुझे करना ही पड़ा', तो ऐसे हमारे सामने आलोचना- प्रतिक्रमणप्रत्याख्यान वहाँ घर पर बैठकर भी याद करके करेगा, तो तुम्हारी दखल पूरी हो जायेगी।

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