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दुःख तो only wrong belief ही है। जिसको wrong belief है, वहाँ दुःख है। जिसको wrong belief नहीं, वहाँ दुःख ही नहीं है।
- दादाश्री
सर्व दुःखों से मुक्ति
दादा भगवान प्ररूपित
HISTLERTIST
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प्रकाशक : दादा भगवान फाउन्डेशन की ओर से
श्री अजित सी. पटेल 5, ममतापार्क सोसायटी, नवगुजरात कोलेज के पीछे, उस्मानपुरा, अहमदाबाद - 380014 फोन -7540408, 7543979 E-Mail: info@dadabhagwan.org
दादा भगवान प्ररूपित
संपादक के आधीन
प्रथम आवृति : प्रत ३०००,
मार्च, २००३
सर्व दुःखों से मुक्ति
भाव मूल्य : 'परम विनय' और
'मैं कुछ भी जानता नहीं', यह भाव! द्रव्य मूल्य : १० रुपये (राहत दर पर)
लेसर कम्पोझ : दादा भगवान फाउन्डेशन, अहमदाबाद,
संकलन : डॉ. नीरुबहन अमीन
मुद्रक
: महाविदेह फाउन्डेशन (प्रीन्टींग डीवीझन), पार्श्वनाथ चेम्बर्स, नई रिझर्व बैंक के पास, इन्कमटेक्स, अहमदाबाद-३८००१४. फोन : KK
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दादा भगवान कौन? जून १९५८ की एक संध्या का करीब छह बजे का समय, भीड़ से भरा सूरत शहर का रेल्वे स्टेशन। प्लेटफार्म नं. 3 की बेंच पर बैठे श्री अंबालाल मूलजीभाई |पटेल रूपी देहमंदिर में कुदरती रूप से, अक्रम रूप में, कई जन्मों से व्यक्त होने के लिए आतुर 'दादा भगवान' पूर्ण रूप से प्रगट हुए । और कुदरत ने सर्जित किया आध्यात्म का अद्भुत आश्चर्य। एक घण्टे में उनको विश्व दर्शन हुआ । 'मैं कौन ? भगवान कौन ? जगत कौन चलाता है ? कर्म क्या ? मुक्ति क्या ?' इत्यादि जगत के सारे आध्यात्मिक प्रश्नों के संपूर्ण रहस्य प्रकट हुए। इस तरह कुदरत ने विश्व के सन्मुख एक अद्वितीय पूर्ण दर्शन प्रस्तुत किया और उसकेमाध्यम बने श्री अंबालाल मूलजीभाई पटेल, चरोतर क्षेत्र के भादरण गाँव के पाटीदार, कान्ट्रेक्ट का व्यवसाय करने वाले, फिर भी पूर्णतया वीतराग पुरुष !
उन्हें प्राप्ति हुई, उसी प्रकार केवल दो ही घण्टों में अन्य मुमुक्षु जनों को भी वे आत्मज्ञान की प्राप्ति करवाते थे, उनके अद्भुत सिद्ध हुए ज्ञानप्रयोग से । उसे अक्रम मार्ग कहा। अक्रम, अर्थात बिना क्रम के, और क्रम अर्थात सीढ़ी दर सीढ़ी, क्रमानुसार उपर चढ़ना। अक्रम अर्थात लिफ्ट मार्ग । शॉर्ट कट ।
आपश्री स्वयं प्रत्येक को 'दादा भगवान कौन ?' का रहस्य बताते हुए कहते थे कि "यह दिखाई देनेवाले दादा भगवान नहीं है, वे तो 'ए. एम. पटेल' है। हम ज्ञानी पुरुष हैं और भीतर प्रकट हए हैं. वे 'दादा भगवान' हैं । दादा भगवान तो चौदह लोक के नाथ हैं । वे आप में भी हैं । सभी में हैं। आपमें अव्यक्त रूप में रहे हुए हैं और 'यहाँ' संपूर्ण रूप से व्यक्त हुए हैं । दादा भगवान को मैं भी नमस्कार करता हूँ।" ___ 'व्यापार में धर्म होना चाहिए, धर्म में व्यापार नहीं', इस सिद्धांत से उन्होंने पूरा |जीवन बिताया। जीवन में कभी भी उन्होंने किसी के पास से पैसा नहीं लिया। बल्कि अपने व्यवसाय की अतिरिक्त कमाई से भक्तों को यात्रा करवाते थे। ___ परम पूजनीय दादाश्री गाँव-गाँव, देश-विदेश परिभ्रमण करके समक्ष जनों को सत्संग और स्वरूपज्ञान की प्राप्ति करवाते थे। आपश्री ने अपने जीवनकाल में ही पूजनीय डॉ. नीरूबहन अमीन को स्वरूपज्ञान (आत्मज्ञान) प्राप्त करवाने की ज्ञानसिद्धि प्रदान की थी। दादाश्री के देहविलय पश्चात आज भी पूजनीय डॉ. नीरूबहन अमीन गाँव-गाँव, देश-विदेश भ्रमण करके मुमुक्षुजनों को सत्संग और स्वरूपज्ञान की प्राप्ति, निमित्त भाव से करवा रहे हैं, जिसका लाभ हजारों मुमुक्षु लेकर धन्यता का अनुभव कर रहे हैं।
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संपादकीय
सांसारिक दुःख किसे नहीं है? हर कोई उससे छूटना चाहता है। लेकिन वह छूट नहीं पाता। उससे छूटने का मार्ग क्या है ? ज्ञानी पुरूष मिलते ही सर्व दुःखो से मुक्ति मिलती है। ओरों को जो दुःख देता है, वह स्वयं दुःखी हुए बिना नहीं रहता ।
सर्व दुःखो से मुक्ति कैसे पायी जाये ? सुख-दुःख मिलने का यथार्थ कारण क्या है ? ओरों को सुख देने से सुख मिलता है और दुःख देने से दुःख मिलता है। यह सुख-दुःख प्राप्ति का कुदरती सिद्धांत है ! यह सिद्धांत संपूर्ण समज में आ जाता है, वही किसी को बिलकुल दुःख न देने की जागृति में रह सकता है। फिर मन से भी वह किसी को दुःख नहीं पहुँचा सकता है। इसके लिए ज्ञानी पुरुष ही यथार्थ क्रियाकारी उपाय बता सकते है। परम पूज्य दादा भगवान, जो इस काल के ज्ञानी हुए, उन्हों ने छोटा सा सुंदर और संपूर्ण क्रियाकारी उपाय बताया है और वह यह है कि हररोज सुबह में इतनी हृदयपूर्वक पांच बार प्रार्थना करो कि 'प्राप्त मन-वचन-काया से इस जगत में कोई भी जीव को किंचित् मात्र भी दुःख न हो, न हो, न हो।' इसके बाद आपकी जिम्मेदारी नहीं रहेगी। किसी भी जीव को मारने का हमारा अधिकार बिलकुल ही नहीं है, क्योंकि हम उसे बना नहीं सकते !
संसार में दुःख क्यों है ? उसका रूट कॉझ है अज्ञानता ! मैं स्वयं कौन हूँ ? मेरा असली स्वरूप क्या है ? यह नहीं जानने से सारे दुःख सर पर आ गये है। वास्तविकता में 'आत्मज्ञानीओं' को यही संसार में एक भी दुःख स्पर्श नहीं होता !
यदि आपको सुखी होना हो तो सदा वर्तमान में ही रहना ! भूतकाल गया सो गया। वह वापस कभी नहीं लौटता और भविष्यकाल किसी के हाथ में नहीं है। उसे कोई जानता ही नहीं। तो 'वर्तमान में रहे सो सदा ज्ञानी'!
गृहस्थ जीवन में बेटे-बेटीयाँ, पत्नी, माँ-बाप इनकी ओर से हमें जो दुःख मिलता है। हमारे ही मोह के रीएक्शन से मिलते है। वीतराग को कुछ भुगतने का आता ही नहीं जीवन में परम पूज्य दादा भगवान ने एक सुंदर बात बतायी है कि घर एक कंपनी है। इस कम्पनी में घर के सारे मेम्बर्स शेर होल्डर्स है। जिसका जितना शेर, उतना उसके हिस्से में भुगतने का आयेगा। फिर सुख हो या दुःख ! मुनाफा हो या घाटा !
भगवान ने कहा है कि अंतर सुख और बाह्य सुख का बेलेन्स रखना चाहिये। बाह्य सुख बढेगा तो अंतर सुख कम हो जायेगा और अंतर सुख बढेगा तो बाह्य सुख कम हो जायेगा ।
चिंता होने का कारण क्या है ? अहंकार, कर्तापन ! वह जाये तो चिंता जाये ।
कुदरत का दरअसल न्याय क्या है? हम अपनी भूलों से किस तरह से छूटे ? निजदोष क्षय किस तरह से किया जाये ? इन सारे प्रश्नों को पूज्यश्री ने आसानी से हल करने का रास्ता प्रस्तुत ग्रंथ में बताया है ।
• डॉ. नीरुबहन अमीन के जय सच्चिदानंद
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अनुक्रमणिका
निवेदन आप्तवाणी मुख्य ग्रंथ है, जो दादा भगवान की श्रीमख वाणी से. ओरिजिनल वाणी से बना है, वो ही ग्रंथ के सात विभाजन किये गये है, ताकी वाचक को पढने में सुविधा हो ।
1. ज्ञानी पुरूष की पहेचान 2. जगत कर्ता कौन? 3. कर्म का सिद्धांत 4. अंत:करण का स्वरूप 5. यथार्थ धर्म 6. सर्व दुःखो से मुक्ति 7. आत्मा जाना उसने सर्व जाना
परम पूज्य दादाश्री हिन्दी में बहुत कम बोलते थे, कभी हिन्दी भाषी लोग आ जाते थे, जो गुजराती नहीं समज पाते थे, उनके लिए पूज्यश्री हिन्दी बोल लेते थे, वो वाणी जो केसेटो में से ट्रान्स्क्राईब करके यह आप्तवाणी ग्रंथ बना है ! वो ही आप्तवाणी ग्रंथ को फिर से संकलित करके यह सात छोटे ग्रंथ बनाये गये है !
उनकी हिन्दी 'प्यार' हिन्दी नहीं है, फिर भी सुननेवाले को उनका अंतर आशय 'एक्झेट' समज में जाता है। उनकी वाणी हृदयस्पर्शी, हृदयभेदी होने के कारण जैसी निकली वैसी ही संकलित करके प्रस्तुत की गई है ताकि सुज्ञ वाचक को उनके 'डिरेक्ट' शब्द पहुँचे। उनकी हिन्दी याने गजराती. अंग्रेजी और हिन्दी का मिश्रण। फिर भी सुनने में, पढ़ने में बहुत मीठी लगती है, नेचरल लगती है, जिवंत लगती है। जो शब्द है, वह भाषाकीय द्रष्टि से सीधे-सादे है किन्तु 'ज्ञानी पुरुष' का दर्शन निरावरण है, इसलिए उनके प्रत्येक वचन आशयपूर्ण, मार्मिक, मौलिक और सामनेवाले के व्यु पोईन्ट को एक्झेट समजकर निकलने के कारण श्रोता के दर्शन को सुस्पष्ट खोल देते है और ओर ऊंचाई पर ले जाते है।
- डॉ. नीरबहन अमीन
१. व्यवहार की खास दो बातें! २. मारने का अधिकार किसे? ३. सुख-दुःख का वास्तविक स्वरूप। ४. सुखप्राप्ति के कारण !
क्या आपको दुःख है? ६. ऊर्ध्वगति के Laws ! ७. कुदरत की व्यवस्था का प्रमाण ! ८. 'ज्ञानी' मिले तो क्या लोगे? ९. व्यापार में धर्म रखा ? १०. Underhand के Underhand बन सकोगे? ११. वर्तमान में रहोगे कैसे? १२. अंतरसुख-बाह्यसुख का Balance ! १३. मनुष्य चिंता मुक्त हो सकता है? १४. क्या आप शंकर के भक्त हो? १५. माँ-बाप की जिम्मेदारी कितनी? १६. व्यवहार नि:शेष का equation ! १७. हिसाबी व्यवहार को कहां तक Real मानोगे? १८. व्यवहार के हिसाबी संबंध में समाधान कैसे ? १९. गृहस्थी में मतभेद - सोल्युशन कैसे? २०. बीबी से Adjustment की चाबी! २१. व्यवहार में शंका ? - समाधान विज्ञान से ! २२. पिछले जन्म की पत्नी का क्या? २३. View Point का मतभेद - उपाय क्या? २४. संसार - अपनी ही डखलों का प्रतिसाद! २५. कितने नुकसान झेलोगे? एक या दो? २६. निमित्त को निमित्त समझे, तो? २७. कुदरत का दरअसल न्याय! २८. अपनी भूल से छूटना कैसे? २९. 'निजदोष क्षय' का साधन !
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सर्व दुःखों से मुक्ति
सर्व दुःखों से मुक्ति
व्यवहार की खास दो बातें! प्रश्नकर्ता : हरेक आदमी जो जन्म लेता है, उसका व्यवहार में कर्तव्य क्या है?
दूसरी बात भगवान की क्या है कि बिना हक्क की कोई चीज मत लो। बिना हक्क याने कोई भी चीज जो तुम्हारी मालिकी की नहीं है, वहाँ तुम द्रष्टि भी मत बिगाडो। ये लोग रास्ते में घमते हैं तो कोई औरत अच्छी देखी कि उसकी द्रष्टि बिगड जाती है। जो आदमी भगवान को मानता है, वो आदमी तो ऐसा नहीं होना चाहिये। क्योंकि वो औरत दूसरे की है। तुम्हारे लिए बिना हक्क की है, तुम्हारा हक्क नहीं है उस पर। मनुष्य में भी बूरे विचार आये तो मनुष्य में और पशु में क्या फर्क है? द्रष्टि भी बुरी नहीं होनी चाहिये. मन भी बिगडना नहीं चाहिये। नहीं तो उसकी बहुत जोखिमदारी है। बिना हक्क का विषय भुगतना नहीं चाहिये। करान में भी लिखा है कि चार बार शादी करो मगर दूसरे की औरत पर द्रष्टि मग बिगाडो। दूसरे की औरत पर द्रष्टि बिगाडे तो उसे बिना हक्क का भुगतना बोला जाता है। हमारी इतनी बात सब की समझ में आ जाए तो हिन्दुस्तान देवलोक जैसा हो जायेगा।
दादाश्री : वो पेड़ होता है, उसका कर्तव्य क्या है? वो खुद से ही जमीन में से पानी पीता है और फल दूसरों को देता है। पेड़ को फिर तुम कुछ बदला देते हो? ऐसे आप सारा दिन सबको सुख देना, किसी को दु:ख नहीं देने का। फिर आपको सुख मिल जायेगा। दूसरा कुछ नहीं, इतना ही समझना है। अभी दुःख आये तो समझ जाने का कि ये पीछे का अपना कोई हिसाब है, उससे आया है मगर अभी तो दूसरे को सुख देने का व्यापार ही करने का है।
बुद्धि का दुरुपयोग करेगा तो पीछे mental हो जायेगा। जो सभी लोगों को फसाता है, वो बुद्धि के दुरूपयोग के बिना कोई आदमी को फसा नहीं सकता। आँख का दुरुपयोग हो गया तो फिर अगले जन्म में आँख नहीं मिलेगी। कम दुरुपयोग किया तो आँख मिलेगी मगर उसका दु:ख ही रहेगा और पूरा दर्शन नहीं होगा, ऐसे पूरा फायदा नहीं मिलेगा। हाथ का दुरुपयोग किया तो हाथ नहीं मिलेगा और वाणी का दुरुपयोग किया तो सारी वाणी ही चली जाएगी। सब इन्द्रियों का सदुपयोग होना चाहिये।
हक्क का विषय भुगतना चाहिये। बिना हक्क के विषय से बहुत नुकसान हो गया है, सब का mind fracture हो जाता है। औरत का mind fracture हो जाता है और पुरुष का mind भी fracture हो जाता है। अपना हक्क का विषय भुगतने में fear नहीं लगता और बिना हक्क में बहुत fear लगता है, विश्वासघात होता है। जो बिना हक्क का पैसा है, वो भी नहीं लेना चाहिये। कुदरत ने जो कुछ दिया है वो ही तुम्हारा हक्क का है, वो ही तुम्हारे लिए है। ये सब secondary stage की बात कही। वो real की बात है, वो stage तो बहुत ऊँचा है। वो real जानने का हो और आपकी समझ में आ जाये तो हमको कोई हरकत नहीं है, हम वो भी बता देंगे। सब बता देंगे। ज्ञान भी दे देंगे और self realisation भी हो जायेगा।
मारने का अधिकार किसे? Creation है, उसके अंदर भगवान नहीं है। Creation तो
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सर्व दु:खों से मुक्ति
सर्व दुःखों से मुक्ति
man made होता है। Man Made में भगवान नहीं है। Creatures के अंदर भगवान है, वो जिम्मेदारी समझ लेना। Creation को तोड डालेगा उसके मालिक को पछकर. तो कोई पाप नहीं लगेगा। Creature को मार डालेगा तो पाप लगेगा, क्योंकि अंदर भगवान बैठे हैं। ये Bugs (खटमल) होता है न, उसको कभी मारते हैं?
प्रश्नकर्ता : उसको तो देखते ही मार देता हूँ।
दादाश्री : ऐसा! इतना जोरदार आदमी(!!)
प्रश्नकर्ता : ऐसे बहुत सारे लोग है लेकिन यहाँ पर बैठने के बाद ऐसा नहीं बोलते कि मैं मारता हूँ।
दादाश्री : मगर जिम्मेदारी तो उनकी है न, मारने की? खटमल मारने से फिर खटमल काटते नहीं कभी? काटने का बंध हो जाता है?
प्रश्नकर्ता : दूसरे आ जाते है।
दादाश्री : वो बडे बडे मजबूत लोग भी जब नींद में होते है, तब ये खटमल उनके पास खाना खाते है। नींद में सारी रात काटते है। वो जागने के बाद नहीं खाने देता। कोई खटमल भूखा नहीं रहता! उनका खुराक ही Blood है। सब लोग सो गये कि वो सारी रात खाता है, तो फिर जागते खाने दो न! Hotel चाल रखो। मच्छर भी काटते है? उसका क्या करते हो?
प्रश्नकर्ता : मार देता हूँ।
दादाश्री : वो किसकी जिम्मेदारी है?! कोई Scientist एक भी मच्छर बना नहीं सकता। एक मच्छर भी कोई बना सकता है?
का अधिकार नहीं है। जो बना सकता है, उसको ही तोडने का अधिकार है। पुलिसवाला गाली देता है, तो क्या करता है? उसको मारता है?
प्रश्नकर्ता : उसके सामने तो चूप बैठना ही पड़ता है। दादाश्री : और बाघ के पास, शेर के पास क्या होता है?
सभी जीव के अंदर भगवान है, तो कोई भी जीव को तुम मारोगे क्या?
प्रश्नकर्ता : नहीं, ऐसा नहीं करना चाहिये।
दादाश्री : हाँ, अपने से कोई जीव को दुःख न हो, ऐसा करने का। छोटे से छोटा जीव हो तो भी उसको दु:ख नहीं हो ऐसे चलने का, ऐसे रहने का। घर में किसी को दु:ख देता है? Mother को, Father को?
प्रश्नकर्ता : बिलकुल नहीं। दादाश्री : तो फिर किसको दुःख देता है? प्रश्नकर्ता : किसी को भी नहीं। दादाश्री : और तुमको कोई दुःख देता है? कौन देता है? प्रश्नकर्ता : घर में कोई नहीं देता, मगर बाहर सब दु:ख देते
दादाश्री : सो-दो सो आदमी दुःख देते है या दो-चार आदमी दुःख देते है?
प्रश्नकर्ता : दो-चार।
दादाश्री : ओहोहोहो! इतनी बड़ी दुनिया में दो-चार का क्या हिसाब?! ये सारे room में मच्छर हो और सब मच्छर काटे तो ठीक
प्रश्नकर्ता : नहीं।
दादाश्री : तो फिर, जो चीज हम बना नहीं सकते, उसको मारने
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सर्व दुःखों से मुक्ति
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बात है। ये तो दो-चार मच्छर काटे तो कौन सी बड़ी बात है?!
प्रश्नकर्ता : दो आदमी दुःख देनेवाला रहा तो भी बहुत होता है।
दादाश्री : ऐसा? तम किसी को दुःख नहीं दोगे तो बाहरवाला कोई भी दु:ख नहीं देगा। तुमने कभी किसी को दुःख दिया था? दु:ख दिये बिना तो अपने को कोई दु:ख नहीं देता। हमको कोई दु:ख नहीं देता।
प्रश्नकर्ता : मुझे विश्वास है कि इस जन्म में मैंने किसी को दु:ख नहीं दिया, फिर भी लोग मुझे दुःख देते है।
दादाश्री : हाँ, वो ये जन्म का नहीं होगा, तो वो पीछे का हिसाब होगा। ये जन्म के चोपडे में नहीं मिलता है, ये पिछले चोपडे का है। मगर कुछ न कुछ तो होगा न? वो सब पीछे का चोपडा चल सकता है अभी। तुमको बहुत दु:ख देता है? मारता-पीटता है? जेल में रख देता है? क्या दुःख देता है? देखो, दु:ख तो किसको बोला जाता है कि कोई आदमी आपको खाना नहीं दे तो अपने को दु:ख है, सोने की जगह नहीं मिले तो दःख है, कपड़े पहनने को नहीं मिले तो दु:ख है। तो फिर तुमको क्या कपड़े पहनने को नहीं मिलते?
सुख-दुःख का वास्तविक स्वरूप। ये दुनिया में दुःख है ही नहीं। मगर हर कोई आदमी दु:खी है, वो wrong belief से दु:खी है। और सारा दिन क्या बोलता है, 'मैं कितना दु:खी हूँ, मैं कितना दु:खी हूँ।' उसको पूछो कि 'आज खाने का चावल है? तेल है? सब कुछ है, तो तुमको कोई दुःख नहीं है।' मगर wife के साथ झगडा करता है, लडके के साथ झगडा करता है और दुःखी होता है।
दुनिया का कायदा क्या है? आपको अगले जन्म में क्या क्या चाहिये। उसका tender भरो। क्योंकि आपका उपरी कोई नहीं है। जो है वह आप खुद ही है। मगर आप जो mile पर है, वो mile की चीज ही आपको मिलेगी, दूसरे mile की चीज नहीं मिलेगी! आप 97 mile पर है तो 97 mile पर जो कुछ आपको चाहिये, वह बोल दो, तो आप बता देंगे कि 'हमको रहने का मकान भी चाहिये, तीन रूम चाहिये।' वो सब लिख लिया। फिर वो ही चीज तुमको मिलती है। तो फिर दुःख कैसे होता है? कि हमारे पास तीन room है और हमारे friend के पास नौ room है। ये दु:ख की शुरुआत हो गई, begining of misery! और tender में सिर्फ wife लिखी थी, मगर देने के समय सास-ससुर, साला-साली, वो सब भी साथ आयेंगे। आपको समझ में आया न? एक औरत के लिए कितनी जिम्मेदारी लेनी पडती है।
प्रश्नकर्ता : इस संसार में प्राणी दु:खी क्यों है? इसका निदान क्या है? इसका छूटकारा किस तरह मिले?
प्रश्नकर्ता : वो तो सब मिलता है।
दादाश्री : तो फिर क्या दुःख है तुमको? तुमको जो दुःख देता है, उसको हमारे पास ले आओ, तो हम बोल देगा कि इसका क्या हिसाब है, इसका हिसाब पूरा कर दो, सब जमा कर दो, खाता बंध कर दो। ऐसा करेगा न? हाँ, बुला लो। हम उसका खाता पूरा करा देंगे। तो सब दुःख पूरा हो जायेगा।
___ इधर आया है, हमको मिला है, तो उसके पास कोई दु:ख रहता ही नहीं।
दादाश्री : कोई भी प्राणी को जो दुःख है, तो वो उसकी अज्ञानता से है। चार आदमी ये रस्ते के बदले वो रस्ते पे चले गये तो उनको दु:ख होता है कि नहीं? बस, ऐसा ही दुःख है। अज्ञानता से दुःख है और ज्ञान से सुख है। अज्ञानता से माया का अपनी पर राज हो जाता है
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सर्व दुःखों से मुक्ति
सर्व दुःखों से मुक्ति
अंधा नहीं होता, तो दुःख ही नहीं। इसलिए वीतराग भगवान ने बोला था कि समकित कर लो। समकित हुआ तो थोड़ी थोड़ी आँखे खूल गयी और थोड़ा थोड़ा सुख बढ़ेगा। पूरी आँख खुल गई कि मोक्ष हो गया।
और ज्ञान से भगवान का राज हो जाता है।
एक बड़ा शेठ है, उसने दारू नहीं पीया तब तक तो कैसी अच्छी बातें करता है। फिर दारू की एक bottle पी ली, तो कोई अलग ही बातें बोलता है। वो कौन सी शक्ति काम करती है।
प्रश्नकर्ता : दारू काम करता है।
दादाश्री : तो ये जगत भी दारू से चलता है, मगर ये मोहरूपी brandy से चल रहा है। मनुष्य को मोह चला जाये फिर समाधि हो जाती है।
प्रश्नकर्ता : Train से आते वक्त platform पर एक अंधे को देखा, तब मेरे मन में हुआ कि दुनिया में सब दु:खी दु:खी है।
दादाश्री : जगत में दो प्रकार के अंधे मनुष्य है। एक तो अंधा जैसा आपने देखा था, जिसकी आँखे नहीं थी और अंधा हो गया था
और दूसरे, ये world में जो सब लोग है, वो भी अंधे है। आँख से अंधा है, वो अपना खुद का नुकसान नहीं करता है और ये दूसरे लोग अपना खुद का सारा दिन नुकसान ही करता रहता है। वो भगवान की भाषा में आँख से देखते हुए भी अंधे हैं।
भगवान की तो एक ही भाषा है और सबकी अलग-अलग Language है। तुम औरत को divorce देगा और दूसरा कहता है कि हमको औरत चाहिये। तुम्हारी language में वो औरत बहुत बूरी है और दूसरे की Language में वो बहुत अच्छी है। मगर भगवान की भाषा में वो दोनो बात गलत है। ये लोगों की भाषा की बात है।
दुनिया में दुःख है ही नहीं। मगर अंधा है, इससे दुःख लगता है। जब धीरे धीरे आँख खूलती है, फिर थोड़ा थोड़ा सुख लगता है। फिर जब पूरी आँख खुलती है तो दु:ख है ही नहीं दुनिया में। world में दु:ख होता ही नहीं कभी। वो दुःख अपनी अपनी भाषा में है। अंदर
Wrong belief को मिथ्या दर्शन बोलते है और right belief को सम्यक् दर्शन बोलते है। मिथ्या दर्शन से भौतिक सुख मिलता है। वो आरोपित सुख है, सच्चा सुख नहीं है। सच्चा सुख आत्मा में है। मगर ये क्या बोलता है कि ये जलेबी में सुख है। जलेबी में सुख है ही नहीं। मगर कोई लोग बोलेंगे कि जलेबी में सुख है और दूसरे सब लोग बोलेंगे कि जलेबी हमको पसंद नहीं है। कोई लोग जलेबी को हाथ भी नहीं लगाता। ये तो जैसा भाव किया ऐसा अंदर से ही सुख निकलता है। आत्मा का सुख आरोपित करता है कि जलेबी में सुख है, फिर जलेबी खाता है तो उसको अच्छा लगता है। हम तो सारी जिंदगी में ये घड़ी भी नहीं लाया। क्योंकि इसमें क्या सुख है? सुख तो आत्मा के अंदर है। वो स्वतंत्र सुख है। हमको जेल में ले जाये तो भी हमको अच्छा लगेगा कि हम घर पर बैठते है, तो दरवाजा भी हमें खुद ही बंध करना पडता है, इधर तो पुलीसवाला दरवाजा बंध करेगा। हमको तो फायदा ही है। ऐसी द्रष्टि बदल गयी तो कोई परेशानी है फिर? परेशानी सब लौकिक द्रष्टि से है। वो लौकिक द्रष्टि सब wrong belief है। सब लोग जिसमें सुख मानते है, उसमें आप भी सुख मानते है, वो wrong belief है। सब लोग जिसमें सुख मानते है, मगर उसमें से सुख तो मिलता ही नहीं और वो आरोपित भाव ही है। वो सुख के पीछे फिर दुःख आता है। आपने दुःख देखा है कभी? हमने पच्चीस साल से कभी दुःख नहीं देखा है। सुख भी नहीं, दुःख भी नहीं, हमको तो निरंतर परमानंद है। सुख और दुःख है, वो तो वेदना है। जिसको आम पसंद है, उसको आम खायेगा तो ठंड़क हो जाती है। वो शाता वेदनीय है और जिसको आम पसंद नहीं है, उसको आम
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सर्व दुःखों से मुक्ति
सर्व दु:खों से मुक्ति
खिलायेंगे तो उसको अशाता होती है। वो अशाता वेदनीय है। ये वेदनीय वो सच्चा सुख नहीं है। सच्चा सुख तो सनातन सुख है।
सारा दिन मछली तड़पती है, ऐसे पूरी दुनिया तड़प रही है। चिंता-worries हो गयी तो फिर वो relative adjustment करता है। नहीं तो दूसरी क्या medicine लगाये? सिनेमा में चलो, लेकिन इसको मालूम नहीं है कि ये दवा में क्या फायदा है? उससे तो वो अधोगति में जायेगा। अंदर खराबी हो गई, चिंता हो गई, उस समय कुछ योग में बैठ गया, भजन में बैठ गया और नहीं पसंद आये तो भी strong रहा तो वो उपर चढ़ता है। जो पसंद है, वहाँ मर्छित होता है और वो नीचे चले जाता है। ऐसा सिनेमा में जाने से नीचे ही चले जायेगा। 'नहीं पसंद आता' वो सब आत्मा का विटामीन है। मगर उसका खयाल नहीं है।
एक सेकन्ड भी क्लेश करने के लिए ये world नहीं है। जो हो रहा है वो न्याय ही हो रहा है। कोर्ट का न्याय तो पक्षपाती होता है, गलत भी होता है। मगर कुदरत का न्याय तो दरअसल न्याय ही होता है। जो दिव्यचक्षु से देख रहे है, उसको बिलकुल correct दिखता है। मगर जिसको वो द्रष्टि नहीं, उसको समझ में नहीं आयेगा, वहाँ तक वो दु:खी ही रहेगा।
अकेला real view point नहीं चलेगा, relative view point पहले चाहिये। दुःख relative में है और सारी दुनिया ही दुःखी है। real में दुःख नहीं है। real में द्रष्टि मिल गई, फिर कोई दु:ख नहीं है। मगर अभी तक द्रष्टि वो relative में ही है। हम आपकी relative द्रष्टि real कर देंगे, तो फिर आपको आनंद ही रहेगा। मात्र द्रष्टि का फर्क है। हम ये side देखते है, आप वो side देखते है।
सच्चिदानंद है वहाँ दुःख नहीं है कुछ और दुःख है वहाँ सच्चिदानंद नहीं है।
प्रश्नकर्ता : अब मैं मानता हूँ कि दुःख है ही नहीं।
दादाश्री : हाँ, दुःख तो है नहीं। दुःख तो सिर्फ wrong belief ही है। जिसको wrong belief है, वहाँ दुःख है। जिसको wrong belief नहीं, वहाँ दुःख ही नहीं है।
प्रश्नकर्ता : आध्यात्मिक द्रष्टि से तो दुःख है ही नहीं।
दादाश्री : हा, मगर ऐसी बात बोलने से तो नहीं चलेगा। अध्यात्म में तो कुछ दुःख ही नहीं है लेकिन ऐसा व्यवहार में नहीं चलेगा। हरेक आदमी को दु:ख होता है, वो fact बात है और 'ज्ञानी पुरुष' को तो आधि, व्याधि और उपाधि में भी समाधि रहती है, वो भी fact बात है। आपको कभी दुःख हुआ है?
प्रश्नकर्ता : मैं मान रहा हूँ कि अध्यात्म में दुःख है ही नहीं।
दादाश्री : वो तो आपकी मान्यता से है, आपकी belief में ऐसा है कि दुःख है ही नहीं। मगर आपको तो दुःख है कि नहीं?
प्रश्नकर्ता : वो तो वेदना है।
दादाश्री : वेदना? तो वेदना ही दुःख है। प्रश्नकर्ता : दु:ख मन को होगा, वेदना शरीर को होगी।
दादाश्री : नहीं, वेदना ही मन को होती है। शरीर को भी वेदना होती है। मगर वेदना क्यों बोला? कि मन है इसलिए वेदना बोला, मन नहीं होता तो वेदना नहीं होती थी। मन को ही वेदना होती है।
सारा जगत अंधश्रद्धा पे चलता है। ये पानी पीते है, तो उसमें किसी ने poison नहीं डाला उसकी क्या गारंटी है? मगर अंधश्रद्धा से पानी पीता है न?! ये खाना खाते है, उसमें क्या डाला है, उसकी क्या कुछ गारंटी है? मगर जगत में सब अंधश्रद्धा पे ही रहते है।
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सर्व दुःखों से मुक्ति
सर्व दुःखों से मुक्ति
प्रश्नकर्ता : श्रद्धा के बल पर हमारे दु:ख हम भूल सकते है के नहीं?
दादाश्री : श्रद्धा दो प्रकार की है - एक wrong belief है और एक right belief है। आपको wrong belief की श्रद्धा से कुछ फायदा नहीं मिलेगा। थोडी देर शांति रहेगी, मगर पूरा फायदा नहीं मिलेगा, problem solve नहीं हो जायेगा। आपका नाम क्या है?
प्रश्नकर्ता : रविन्द्र।
दादाश्री : क्या आप सचमुच रविन्द्र है? आप रविन्द्र है वह सच्ची बात है?
गाली दे तो भी सुख नहीं जाता। ये संसार के सब लोग क्या करते है? किसी ने गाली दिया तो बर्दाश्त कर लेते है। लेकिन जब खुद की पहचान हो गयी, फिर कुछ बर्दाश्त नहीं करना पडता। इतना आनंद होता है के फिर कुछ दुःख स्पर्श करता ही नहीं।
सुखप्राप्ति के कारण ! किसी भी आदमी को परेशान नहीं करना चाहिये। मानवधर्म तो होना चाहिये न? मानवधर्म क्या बोलता है कि आपको सुख कब मिलेगा? जब आप दूसरों को सुख देंगे तो आपको सख मिलेगा। दसरों
को जब दुःख देंगे तो आपको दु:ख मिलेगा। इसीलिए सबको सुख दो। इसमें first preference मनुष्य है। वो ही मानवधर्म है। इससे आगे भी धर्म है, वो last धर्म है। उसमें मन में भी हिंसा नहीं होनी चाहिये।
एक आदमी रोड पर चल रहा है और सामने से एक स्कटरवाला आया और टकरा गया, एक्सिडन्ट हुआ। रास्ते पर जानेवाले लोग है, उसको अंदर दुःख हो जायेगा, तो कोई एक आदमी तो अपना धोती फाडकर उसको बांध देता है। सो रुपये का धोती है, मगर उस समय हिसाब नहीं देखता कि मैं क्या कर रहा हूँ। जब धोती फाडकर बांधेगा, तब उसको आनंद होता है। धोती फाड दिया, उसका बदला उसी समय मिल जाता है। क्योंकि तुम्हारी जो चीज है, वह दूसरे के लिए दिया, उससे आनंद ही होता है। खुद के लिए लगाये तो आनंद नहीं होता है।
प्रश्नकर्ता : हमें तो सच लगता है।
दादाश्री : वो तो आपका नाम है, वो पहचानने के लिए है, मगर आप कौन है?
प्रश्नकर्ता : वो पहचानने की कहाँ ताकत है?
दादाश्री : वो पहचान ने की जरूरत है। आप रविन्द्र है, वो हम भी मानते है, वह पहचान करने के लिए है। मगर आपको ऐसी श्रद्धा हो गई है, कि मैं रविन्द्र ही हूँ। ये wrong belief है।
प्रश्नकर्ता : तो सच्ची belief क्या है?
दादाश्री : वो सच्ची belief 'ज्ञानी पुरुष' दे देते है। सब wrong belief fracture करते है और right belief दे देते है।
खुद का स्वरूप जान लिया, फिर बिलकुल शांति रहती है। जहाँ तक ये नहीं जाना, वहाँ तक दुःख है। 'ज्ञानी पुरुष' की कृपा से खुद की पहचान हो सकती है। फिर सब दु:ख चले जाते है। आसपास का दु:ख हो, उसी में भी समाधि रहे, उसका नाम वीतराग विज्ञान। कोई
हमारी life ऐसे पहेले से ही दूसरे के लिए ही है। हमने कभी हमारे लिए कुछ किया ही नहीं। तो हमको कितना आनंद होता होगा! उस समय हमको ज्ञान नहीं था, तो भी हम क्या करते थे कि भई, आपको क्या तकलीफ है? आपको क्या तकलीफ है? ऐसा सबको पूछते था और help करते थे।
प्रश्नकर्ता : भूतकाल भूला नहीं जाता तो क्या करना?
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सर्व दुःखों से मुक्ति
सर्व दुःखों से मुक्ति
है। अब घर को जाकर औरत को, बच्चों को बोल दो कि, 'अपने को भगवान ने बहुत दिया है और अपने को बहुत सुख है।' ऐसा बोलकर सब साथ में आराम से चाय पीओ। ये दुनिया अपनी ही है!!
दादाश्री : भूतकाल, past time gone for ever ! Don't worry for past time ! जो भूतकाल हो गया, उसके लिए तो कोई foolish आदमी भी नहीं सोचता। तो भूतकाल gone, वो सोचने का नहीं और भविष्यकाल 'व्यवस्थित' के ताबे में है। तो हमें क्या करने का? वर्तमान में रहने का। अभी हम इधर आये न, तो हम तुम्हारे साथ बात करते है, वो आराम से सुनने की। दूसरी कोई भी चीज की तलाश नहीं करने की। ऐसा वर्तमान में रहने का।
अंग्रेजी में जो बोलते है कि 'work while you work & play while you play'. तो वो foreign में कितने आदमी को ऐसा रहता है और इधर किसी आदमी को एसा नहीं रहता, क्योंकि यहाँ विकल्पी लोग है।
जिसके हाथ में वर्तमान आ गया, उसको भगवान से भी ऊँचा पद कहा जाता है।
क्या आपको दुःख है?
कहाँ से ऐसा ज्ञान लाये? ये overwise का ज्ञान आप कहाँ से लाये? सारे गाँव की चिंता लेकर फिरते हो !! किस लिए बुद्धि चलाते हो? बुद्धि के कहने पर चलेगा तो एक दिन बुद्ध हो जायेगा। जितने लोग बुद्धि को डेवलप करने को गये की सब बुद्ध हो गये। बुद्धि तो लाइट (प्रकाश) है मात्र । लाइट से काम लेने का है। हम ज्ञानी होकर भी हमारे पास बुद्धि बिलकुल नहीं है, हम अबुध है और आप तो बुद्धि चलाते हो, उसको डेवलप करते हो। बुध्धि को ज्यादा डेवलप मत करो, नहीं तो बुद्ध हो जाओगे। बुद्धि तो अंदर बोले कि, 'अपने को फ्लेट नहीं देगा, को क्या हो जायेगा?' इसमें क्या होनेवाला है?! तुम्हारे फ्लेट में वो रहता है, तो वो उनकी मरजी की बात है? उसको संडास (पाखाना) जाने की शक्ति ही नहीं है। तो रहनेवाला क्या करेगा? वो भी कर्म का गुलाम है। ये संसार में किसी का गुनाह नहीं है। जिसको अड़चन आती है, उसका गुनाह है। आपको परेशानी हुई तो वह आपका गुनाह है। इसमें आपका पाप है और सामनेवाला का गुनाह नहीं है, उसका पुण्य है। आज शाम को खाना तो मिल जायेगा न? आपको खाने-पीने की तकलीफ नहीं है न? वो मिल जायेगा तो बहत हो गया, आज हम दिल्ली के बादशाह है। कल की बात कल हो जायेगी। कल तो नींद से जाग गया और बिस्तर में से उठा तो समझ जाने का कि आज का दिन मिल गया। दूसरा आगे का विचार ही नहीं करने का। भगवान क्या बोलते है, 'मैं उसके लिए सोचता हूँ और ये अपने खुद के लिए सोचता है, तो फिर मैं छोड देता हूँ।' भगवान के पास बच्चे की तरह रहना चाहिये। अपने हाथ में लगाम नहीं लेने की।
और बुद्धि को बोलो कि, 'अब तुम्हारी बात हम सुननेवाले नहीं। हमको तुम्हारी सलाह पसंद नहीं आती है,' ऐसा बुद्धि का insult कर देने का।
प्रश्नकर्ता : हमने कितनी प्रामाणिकता से नौकरी की है. फिर भी आजकल हमारे सिर पर परेशानीयाँ बहुत है, कभी कभी रात को नींद भी नहीं आती। आप कुछ रास्ता दिखाईये।
दादाश्री : अरे, किस लिए परेशानीयों की चिंता रखकर फिरते हो? सारी दुनिया की परेशानीयाँ सिर पर रख ली, ये तो overwiseness है। Come to the wiseness !! और बोलो कि 'हमको कुछ तकलीफ नहीं। हमारे जैसा कोई सुखी आदमी नहीं है।' रात को इतनी खीचड़ी और थोड़ी सब्जी मिली तो फिर सारी रात बूम नहीं लगायेगा। आपने प्रामाणिकता से service की है, फिर आपके पास भगवान का सर्टिफिकेट है, नहीं तो ये काल में ऐसा सर्टिफिकेट कहाँ से लाये। देखो न, फिर भी सिर पर कितना बोज लेकर फिरता
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सर्व दुःखों से मुक्ति
सर्व दु:खों से मुक्ति
जो बुरी बात बताता है, जिसके साथ ठीक नहीं लगे तो उसका insult कर देने का। अपने पास कोई दःख ही नहीं है, दु:ख आनेवाला भी नहीं। सिर्फ भडकता ही रहता है कि ऐसा हो जायेगा, वैसा हो जायेगा। अरे, कुछ भी होनेवाला नहीं, हम मालिक है। मालिक को क्या होनेवाला है?
सुख भी कीमती है और दुःख भी कीमती है। मुफ्त में तो किसी को सुख भी नहीं मिलता है और दुःख भी नहीं मिलता है। दुःख की कीमत देनी पडती है फिर दु:ख मिलता है। हमने कीमत भरी नहीं है, इसलिए हमको दुःख आता नहीं है। ये क्रोध, मान, माया, लोभ सब आपके पास तैयार है, इसलिए तुम वो भर देते हो, हमारे पास ये कुछ नहीं है। हमको तो ये सुख भी नहीं चाहिये और दःख भी नहीं चाहिये। ये सब कल्पित है। वो तो कल्पना किया है आपने। कोई आदमी बोले कि हमको लड्डू ठीक नहीं लगता है, तो उसको अच्छा नहीं लगेगा।
और तुमको लड्डू ठीक लगता है, तो तुमको अच्छा लगेगा। तुमने कल्पना की तो तुमको अच्छा लगता है। आपने आत्मा का आनंद इसमें डाला, तो फिर आनंद लगा। किसी चीज में तो आनंद होता है। वो तो आपने कल्पना की, उसकी करामत है। बाहर की किसी भी चीज में आनंद नहीं है। आनंद तो, अपने खुद के अंदर ही है। खुद के स्वरूप में ही आनंद है।
Really speaking, ये world में दुःख और सुख है नहीं। 'हमको ये दु:ख है, वो दुःख है' वो सब By relative view point से है. सिर्फ कल्पना है। आप बोलो कि, 'हम पैसे की लाँच(घूस) नहीं लेते'। इसमें ही हमको सुख है। और दूसरा बोलता है कि 'पैसे की लाँच(घूस) लेने में हमको सुख है।' वो relative view point है, not real view point !
जब तक भौतिक सुख प्रिय है, वहाँ तक भगवान नहीं मिलते है। हमको भौतिक सुख नहीं चाहिये, ऐसा कभी तय कर लिया तो
भगवान मिल जाते है। हम भी खाते-पीते है मगर हमको नहीं चाहिये, फिर भी ऐसे ही आ जाता है। हमको अपना खुद का सुख मिला, फिर दूसरा क्या चाहिये। खुद का बहुत सुख आ जाये, उसको सनातन सुख बोला जाता है। अतीन्द्रिय सुख का किंचित् मात्र टेस्ट कर लिया तो दूसरा सब इन्द्रिय सुख फीका लगेगा। अतीन्द्रिय सुख नहीं मिला, वहाँ तक इन्द्रिय सुख अच्छा लगता है। इन्द्रिय सुख वह रिलेटिव सुख है।
सच्चा सुख किसको बोला जाता है कि जो सनातन है। एक बार आया कि फिर कभी जाता ही नहीं। हम अभी आधि में है. व्याधि में है कि उपाधि में है?
प्रश्नकर्ता : ऐसा कहा जाता है कि संसारी आदमी आधि, व्याधि और उपाधि से घेरा हुआ है।
दादाश्री : हाँ, तो हम किस में है? आपको क्या लगता है? हम निरंतर समाधि में रहते है। कोई गाली दे तो भी हमारी समाधि नहीं जाती और कोई फूल चढाये तो भी हमारी समाधि नहीं जाती। आपको तो फूल चढाये, गाली दे तो समाधि चली जायेगी। आपको कोई पैर में गिरकर दर्शन करने आयेगा तो आप गभरा जाओगे। आप मान भी पचा नहीं सकते और अपमान भी पचा नहीं सकते। हमको तो मान मिले तो भी हरकत नहीं और अपमान मिले तो भी हरकत नहीं है। हमारे यहाँ valuation का devaluation हो गया है। सब जगह अपमान की devaluation थी, तो हमने उसका valuation कर दिया और मान की valuation थी, उसका devaluation कर दिया। दोनों को नोर्मल कर दिया!
ऊर्ध्वगति के Laws ! प्रश्नकर्ता : जिंदगी में त्रास है और पीडा से परेशान हूँ, उसका कोई मार्ग चाहिये।
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दादाश्री : परेशानी अच्छी नहीं लगती?
प्रश्नकर्ता : परेशानी से तो आदमी को अक्कल आती है, नहीं तो अक्कल कभी नहीं आये।
दादाश्री : हाँ, तो परेशानी आपके पास रखो। क्युं फेंक देते हो? आपको परेशानी पसंद है?! परेशानी मार्ग पर रहना या तो शांति मार्ग पर रहना। दो मार्ग है। शांति में परेशानी नहीं रहती। आपको कौन सा मार्ग पसंद है?
प्रश्नकर्ता : वो जो तकलीफ है, वो सिर्फ मेरे लिए सीमित रहे, limited रहे तो ठीक है, लेकिन वो मेरे बाल-बच्चे को सबको परेशानी होती है, तो इसका ये तो मतलब नहीं कि कुदरत हम सबको ऊर्ध्वगति में ले जाना चाहती है?
दादाश्री : हाँ, वो family ऊर्ध्वगति में जानेवाला है। ऊर्ध्वगति में जानेवाला को ये संसार में राग नहीं हो, ऐसी चीज मिलती है। उसको पसंद नहीं हो ऐसा होता है। अधोगति में जानेवाला को मोह ज्यादा बढ़ता है और ऊर्ध्वगति में जानेवाले का मोह तूट जाता है। जैसे जिसको अच्छा लड़का हो, अच्छी लड़की हो, वो भगवान का नाम भूल जाता
प्रश्नकर्ता : हमको तो शांति मार्ग ही पसंद है। लेकिन इस समय परेशानी है।
दादाश्री : हाँ, तो परेशानी का उपाय है। मगर फिर शांति मार्ग अपने हाथ में आ जाता है। शांति मार्ग और परेशानी मार्ग. दोनों का Mixture मत करना । Mixture करेगा तो आपको फायदा नहीं मिलेगा।
प्रश्नकर्ता : एक ही मार्ग शांति का रखेगा। दादाश्री : वो ठीक बात है।
प्रश्नकर्ता : मगर जो भलाई करता है, उसी पर ही ज्यादा परेशानीयाँ, ज्यादा दु:ख आता है। ऐसा क्यों?
दादाश्री : जो भलाई करता है, उधर परेशानी का First preference है और जो चोर है, बदमाश है, उसके लिए परेशानी का preference नहीं है।
कुदरत का काम कैसा है? कुदरत क्या बोलती है कि जो अधोगति में जानेवाला है, इसको help करो और जो ऊर्ध्वगति में जानेवाला है, उसको पकड़ाओ। चोर ने गुनाह किया है और अधोगति में जानेवाला है, इसलिए उसको कुदरत पकड़ा नहीं देती। Straight forward आदमी को कुदरत पकड़ा देती है।
प्रश्नकर्ता : नहीं, ऐसा नहीं है। अच्छे लडके-लडकीवाले भगवान का नाम भी लेते है।
दादाश्री : मगर इसमें मोह ज्यादा बढ़ता है। ये हमारा लडका ऐसा है. ये हमारी लडकी ऐसी है', ऐसा उसको मोह होता है। कुदरत का क्या नियम है कि जिसको ऊर्ध्वगति में ले जाने का है, उसको हेल्प करता है।
प्रश्नकर्ता : वो कैसे?
दादाश्री : राग न हो ऐसी चीज देता है कि जिससे ये संसार अच्छा नहीं है, ऐसी उसको belief हो जाती है। जिसको अधोगति में जाने का है, उसको तो ये संसार में इधर बहुत आनंद है कि मेरा लडका भी अच्छा है, ये मकान भी अच्छा है, पैसा भी बहुत है।
__ प्रश्नकर्ता : हमारे साथ के जो लोग है, उनको नया धंधा है, उनको कमाई बहुत है, घर अच्छा है, सब मझे में है और हमारे पास अगर कोई आये, तो उनको देने के लिए बराबर सा आसन तक नहीं है, तो हमको शर्म महेसूस होती है।
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सर्व दुःखों से मुक्ति
सर्व दुःखों से मुक्ति
दादाश्री : ऐसी कोई जरूरत नहीं। हमारा बड़ोदा में घर है। वहाँ हमारी बैठने की रूम १० x १२ की है। हम ठेकेदारी का धंधा करते है, बहुत बड़ा धंधा करते है लेकिन हमारे यहाँ सोफासेट भी नहीं है। कहाँ से लाये वो? वो सच्चे पैसे से नहीं होता है। हमारी कम्पनी बहुत कमाती है लेकिन घर में हम छहसो-सातसो रूपये ही देते है।
हमारे पास एक बड़े जज आये थे। उनकी पत्नी उसको क्या बोलती थी कि, 'तुम्हारे सब फ्रेन्ड सर्कल ने बंगला बाँध लिया है और हमको भाड़े के मकान में रहना पड़ता है। वो मेरे को पूछने लगा कि 'हमारी पत्नी ऐसा बोलती है, क्या करना चाहिये?' उसकी पत्नी बोलती है कि मकान क्यों नहीं बनाया? तो उसकी मरजी में क्या आता है? 'रिश्वत तो लेनी चाहिये' ऐसी belief बदलती है। उसके सभी फ्रेन्डस रिश्वत लेते थे मगर वो कभी रिश्वत नहीं लेता था। तो हमने बोल दिया, 'तुम्हारी belief नहीं बदलनी चाहिये। ये तो examination
समझना चाहिये न? जिम्मेदारी क्या है, उसको मालूम नहीं है, ऐसी ही कितनी जिम्मेदारी लेता है। You are whole and sole responsible for yourself. God is not responsible for your life | दूसरा कोई आदमी, आपकी पत्नी, आपका लडका आपकी जिंदगी के लिए जिम्मेदार नहीं है। तो जो विचार करने है, वो अच्छे विचार करना। जो काम करने है, वो अच्छे काम करना, क्योंकि जिम्मेदारी आपकी है। फिर भगवान भी इसमें से छुड़ा नहीं सकते।
ये जन्म तो मनुष्य का मिला है मगर ऐसे विचार करेगा तो दूसरा जन्म मनुष्य का आयेगा या नहीं भी आयेगा। ऐसा है, पूर्वजन्म के संस्कार अच्छे हो तो आज इसको तकलीफ नहीं होगी, रिश्वत नहीं लेगा। और अभी संस्कार बिगाड़ दिये तो अगले जन्म में सब परेशानी हो जायेगी।
घर ऐसी कम्पनी है के उसमें सबका share (शेर) है, घर के सब मेम्बर (सदस्य) है, वो सब शेरहोल्डर है। ये सब बोलते है कि. 'हमको ये होना चाहिये, ये होना चाहिये।' मगर सबको ऐसा नहीं मिलेगा। क्योंकि सबका share है। कम्पनी एक ही है, मगर जितना जितना share है, उसको उतना ही मिलता है। ऐसे बात समझने की है।
भगवान क्या बोलते है, जो रिश्वत लेता है मगर बोलता है, 'ऐसा नहीं करना चाहिये, ऐसा क्यों हो जाता है। तो भगवान उसको छोड देता है। और जो रिश्वत नहीं लेता और बोलता है, रिश्वत लेनी चाहिये, वो सच्चा गुनहगार है, वो पकड़ा जाता है। जो रिश्वत नहीं लेता लेकिन लेने का विचार किया वो causes है। फिर effect ऐसी आयेगी कि वो रिश्वत लेगा। जो रिश्वत लेता है मगर नहीं लेने का विचार है. ऐसे causes है, फिर effect में वो रिश्वत लेगा ही नहीं।
सबने रिश्वत ली और मकान बाँध दिया और इसने रिश्वत नहीं ली। अभी वो सारी जिंदगी कितनी भी कोशिश करे तो भी वो नहीं ले सकेगा। मगर उसकी पत्नी ने क्या बोल दिया, 'तुम रिश्वत लेते नहीं, इसीलिए हमारा मकान नहीं है'। तब उसकी belief बदल जायेगी कि रिश्वत लेनी चाहिये। ये कितनी जोखिमदारी है। जोखिमदारी है, वो तो
प्रश्नकर्ता : बराबर समझ में आ गया। अभी सिर्फ ये जानना चाहता हूँ कि हमको ये सब जो परेशानी है, उसको बर्दाश्त करने के वास्ते शक्ति प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिये?
दादाश्री : वो तो हम कर देंगे। ऐसा पाँच हजार आदमीओं को कर दिया है, फिर कभी कोई परेशानी ही न हो ऐसा।
प्रश्नकर्ता : फिर भी मुझे बर्दाश्त करने के लिए कुछ उपाय है?
दादाश्री : हाँ, उपाय तो बहुत है। जितना रोग है न, उतने उसके उपाय होते है, remedy होती है। Remedy के बिना दुनिया
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है नहीं। वो सब बोलते है कि हमको ये दुःख है; ये दुःख है, तो हमारे पास आ जाते है, तो सबका दुःख निकल जाता है। क्योंकि हम दुःखी कभी हुए नहीं । हमने दुःख कभी देखा ही नहीं। हम मोक्ष में, निरंतर मुक्त भाव से रहते है।
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प्रश्नकर्ता : वो मैंने मान लिया कि मुझे कोई दुःख नहीं होगा । लेकिन मेरा छह साल का बच्चा है, वो चल भी नहीं सकता, बोल भी नहीं सकता, बिमार ही रहता है, उसको बहुत परेशानीयाँ है, अगर मैं अकेला रहुं और बच्चा अकेला रहे तो मैं adjust करके चला लूँ। लेकिन बच्चे की माँ को क्युं भुगतना पडता है? वो मेरे से देखा नहीं
जाता।
दादाश्री : नहीं, वो भी पार्टनर है न ? शेरहोल्डर है न? तुम्हारे अकेले का कर्म नहीं, सब शेर होल्डर है। जो ज्यादा भुगतता है, उसका share ज्यादा है।
प्रश्नकर्ता: और ऐसा होने से भगवान पर जो faith है, विश्वास है, वो भी कम होना शुरू हो जाता है।
दादाश्री : आपको भगवान पर श्रद्धा कम हो जाती है लेकिन भगवान इसमें कुछ करता ही नहीं। उसके उपर ये आक्षेप लगाते है कि 'भगवान ने हमारे लडके को दुःख दिया, ऐसा बना दिया, हमको ऐसा नुकसान किया।' भगवान ऐसा कुछ करता ही नहीं। भगवान तो भगवान ही है, संपूर्ण ऐश्वर्य के साथ है और आपके अंदर बेठा हुआ है। हम वो देख सकते है।
The world is the puzzle itself! God has not puzzled this world at all. Itself puzzled हो गया है और उसमें से puzzle ही होता है। आपको नहीं, हरेक आदमी को puzzle ही होता है। जो 'ज्ञानी' है, इसको puzzle नहीं होता और हमने जिसको ज्ञान दिया है, उसको puzzle नहीं होता, क्योंकि वो
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ज्ञान में ही रहते है ।
प्रश्नकर्ता: हमारे जीवन में ये प्रसंग भगवान क्युं लाये ? वो हमारी समझ में नहीं आता।
दादाश्री : ये दुनिया में सभी जात के लोग है, मगर तुम्हारे रागद्वेष जहाँ पर है, उसके साथ तुम्हारा संबंध होता है। अच्छे आदमी के साथ राग करता है, तो उसके साथ संबंध होता है और बूरे आदमी के साथ द्वेष करता है, तो उसके साथ भी संबंध हो जाता है। द्वेष किया तो भी वो आपके यहाँ आयेगा और राग किया तो भी वो आपके यहाँ आयेगा। वो बच्चे के लिए पूर्वजन्म में आपने क्या किया था ? दूसरे सब लोगों से उस बच्चे को परेशानी आ गयी, तब आपकी उससे कुछ पहचान नहीं थी, फिर भी वो protection के लिए आया तो आपने क्या बोला कि 'हमारी पूरी जिंदगी जायेगी फिर भी उसको हम बचायेगें'। वो हिसाब joint हो गया। दूसरा कुछ नहीं, ऐसे संबंध में आ गये।
प्रश्नकर्ता : ये फर्ज जो हम बजाते है, उसके लिए सिर्फ शक्ति चाहते है, और कुछ नहीं ।
दादाश्री : हाँ, बरोबर है, वो शक्ति तो माँगनी ही चाहिये। क्यों कि फर्ज बजानी ही चाहिये। अपने Indian संस्कार है, ऐसे छोड देने का नहीं। आपने पकड़ लिया, हाथ दिया, फिर छोड़ने का नहीं। औरत को divorce भी नहीं दे सकते है, क्योंकि अपना Indian Cultured है न?
प्रश्नकर्ता: जब प्रेरणा हो गयी आपके पास आने के लिए, तो कोई अच्छी चीज होनेवाली है।
दादाश्री : हम तो निमित्त है, हम कोई चीज के कर्ता नहीं है। मगर हमारा ये यशनाम कर्म है कि जिसको अच्छा होने का हो तो वो
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फिर हमारे पास आ जाता है, ऐसा हमारा यश है। हम कुछ करते नहीं, यश ही सब काम करता है।
कुदरत की व्यवस्था का प्रमाण !
प्रश्नकर्ता : आज तो दुनिया में हर जीव द:खी है। हम इससे छूटकारा कैसे पायें?
दादाश्री : 'ज्ञानी' मिले तो दुःख से छूटकारा हो जाये।
प्रश्नकर्ता : सबको तो ज्ञानी मिल नहीं सकते तो सब सुखी कैसे हो सकते है?
दादाश्री : नहीं, नहीं, सबके लिए सुख नहीं है। ये कलयुग है, दुषमकाल है। भगवान ने कहा था कि दुषमकाल में सुख की इच्छा ही मत करो, उसको मांगो ही मत। ऐसा बोलना कि भगवान, कुछ दुःख कम करो। सख तो 'ज्ञानी पुरुष' हो तो ही सुख हो सकता है। नहीं तो इसमें सुख नहीं है। समकिती आदमी के पास बैठो तो सुख आयेगा। मिथ्यात्वी के पास से सुख नहीं आयेगा।
प्रश्नकर्ता : फोरेन में लोग दु:खी है, इससे भी ज्यादा दुःखी यहाँ है।
दादाश्री : वो बात ठीक है। यहाँ के लोग को ज्यादा चिंताworries है, क्योंकि इधर विकल्पी लोग है और वो लोग सहज है। सहज याने बालक के जैसे और इधर बड़े उमरवाले जैसे है। बड़े उमरवाले को ज्यादा दु:ख रहता है।
प्रश्नकर्ता : अपने India में बहुत से लोग को खाना खाने का भी पूरा नहीं मिलता।
दादाश्री : कौन बोलता है कि खाना भी नहीं मिलता? ये सब गलत बात है। खाना खाये बिना कोई आदमी मर नहीं गया।
प्रश्नकर्ता : अभी गरीबी है वो ठीक है?
दादाश्री : वो गरीबी है नहीं, जो है वो बरोबर है। कुदरत ने बिलकुल करेक्ट रखा है। कौन गरीब है? आपको गरीबी किसने बतायी, गरीब किधर देखा आपने? और हमको बताओ कि कौन गरीब नहीं है? ये बड़ौदा शहर में कौन गरीब नहीं है? गरीब की डेफिनेशन ऐसी नहीं है। गरीब आप आँख से देखते है वो गरीब है, ऐसा मान लिया ये ठीक नहीं है। अमुक जातवाले को खाने का ही मिलना चाहिये, उसके पास नगद रकम तो होनी ही नहीं चाहिये। ये कुदरत का ही खेल है। कुदरत ने ही ऐसा हिन्दुस्तान के लिए रखा है, बाहर के लिए कुछ भी हो। कुदरत ने जो हिन्दुस्तान के लिए किया है, वो बरोबर, ठीक है।
'ज्ञानी' मिले तो क्या लोगे? दादाश्री : किस लिए धंधा करते हो? किस लिए पैसा बचाते हो? वो सब कभी सोचा है?
प्रश्नकर्ता : वह तो जिंदगी का एक भाग है।
दादाश्री : हाँ, मगर पैसे बचाकर क्या करने का? वो सब लोग तो चले जाते है न? last station जाते है न? तो वो साथ में ले जाते है?
प्रश्नकर्ता : यहाँ अपनी आवश्यकता पूरी करने के लिए. शांति से जीने के लिए।
दादाश्री : हाँ, मगर उसका फायदा क्या? पैसा कमाना जरुरी है, वो तो हम भी स्वीकार करते है मगर किस हेतु के लिए है? खानेपीने के लिए? शांति के लिए? तो शांति किस लिए? क्या फायदा? कोई बुजुर्ग आदमी को पूछा नहीं?
प्रश्नकर्ता : तो आप बताईए। दादाश्री : 'ज्ञानी पुरुष' मिले तो उनके पास अपना 'self
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realise' हो जाये, तो फिर अपने को परमेनन्ट मुक्ति मिल जाती है। ये संसार से मक्ति मिल जाती है। और 'ज्ञानी पुरुष' नहीं मिले तो क्या करने का? कि दूसरे सब आदमी को, कुछ न कुछ सुख देने का। इससे अपने को अगले जन्म में सुख मिलेगा। अच्छा ही काम करने का, तो इससे अपने को अच्छा मिलेगा।
'ज्ञानी पुरुष' मिले तो 'मैं कौन हैं वो समझ लेना है। फिर कभी चिंता नहीं होगी। क्रोध-मान-माया-लोभ सब चले जायेंगे और आपको परमेनन्ट शांति रहेगी।
प्रश्नकर्ता : पुण्य क्या चीज है?
दादाश्री : आपके पास बैंक में क्रेडिट है, तो आप जब भी चाहे तब पचास रुपये, सो रुपये किसी को दे सकते है और जिसको क्रेडिट नहीं है वो क्या करेगा? पुण्य याने आपकी मरजी के मुताबिक और पाप याने आपकी मरजी के खिलाफ।
वो मजदूर लोग सारा दिन बहुत महेनत करता है लेकिन उसको ज्यादा पैसा नहीं मिलते है। पैसा मजदूरी से नहीं मिलता है, वो पुण्य का फल है। पिछले भव में जो तुमने पुण्य किया है, उसके फल स्वरुप यह है। यह संसार में खाना-पीना मिला, पैसा मिला, वो सब पाप और पुण्य का फल है और हमें जाना कहाँ है? मोक्ष में। तो मोक्ष में जाने के लिए पुरुषार्थ होना चाहिये। पैसा वो सब चीज तो आपको ऐसे ही मिलेगी। अपने को तो काम करने का है सारा दिन। मगर मोक्ष में जाने के लिए तो बात अलग है।
दादाश्री : धंधा ऐसे ही चाल रखना। अंदर बैठे है. वो ही भगवान सब सुनता है। अभी दूसरा बहारवाला भगवान किसी का सुनता नहीं। क्योंकि बाहरवाले को तो बहुत फोन आते है तो किसी की बात सुनता ही नहीं। इसलिए आप अंदरवाले को फोन करना। उनका नाम क्या है? 'दादा भगवान' है। रोज सुबह में पाँच दफे बोलना कि, 'हे दादा भगवान, हमको ये ऐसा बूरा धंधा अच्छा नहीं लगता। अभी परेशानी ऐसी आ गयी है और समाज भी ऐसा हो गया है मगर हमको बहुत बुरा लगता है। हम इसके लिए माफी माँगते है, फिर ऐसा कभी नहीं करेंगे।' इतना बोलने से कोई अडचन नहीं आयेगी। धंधे में तो तुम्हारे सब हरीफ है, वो हरीफ के साथ चलना ही पडता है न? मगर ऐसे रोज माफी माँगना। तो तुम्हारी जोखिमदारी नहीं। बाद में तीनचार साल में तुम्हारे हाथ से धंधे में बिलकुल कपट नहीं होगा।
व्यापार तो ऐसी चीज है कि दो साल अच्छा भी जाता है और दो साल बूरा भी जाता है। व्यापार का दो ही किनारे है, मुनाफा और घाटा। Elevate भी होता है और कभी depress भी होता है। मगर खुद का realise हो गया तो अंदर शांति हो जायेगी। वो शांति बढ़ती बढ़ती फिर बिलकुल समाधि ही रहेगी, सदा के लिए। फिर depress नहीं होगा।
अपनी सेफसाइड़ के लिए धर्म समझना चाहिये। दुनिया में दो चीज काम करती है, पाप और पुण्य । जब पुण्य प्रगट होता है तो अच्छी जगह मिलती है, सब जगह में अच्छा खाना-पीना मिलता है, सब संयोग अच्छे अच्छे मिलता है। जब पाप प्रगट होता है, तो सब संयोग बुरे हो जाते है। वो time क्या करने का? सेफसाइड कैसे रहेगी? ऐसी safe side के लिए धर्म समझना चाहिये।
अन्डरहेन्ड के अन्डरहेन्ड बन सकोगे? ये धर्म क्या है? वो relative है। वो भौतिक सुख के लिए है।
व्यापार में धर्म रखा?
प्रश्नकर्ता : दादाजी, हमारा धंधा ऐसा है कि उसमें झूठ और छल-कपट करना पडता है, हमको वह पसंद नहीं है, फिर भी करना पडता है, तो इसके लिए क्या करना? धंधा छोड देना?
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था? अपने अन्डरहेन्ड को जो बोलते है और उसके साथ गुस्सा करता है, वो बिलकुल पाशवता है। अन्डरहेन्ड की तो रक्षा करनी चाहिये। वो हमें बड़ा मानता है, वो हम से तो बेचारा छोटा है, इसलिए उसकी रक्षा करनी चाहिये।
आपका boss है कि नहीं?
प्रश्नकर्ता: हाँ, boss है न।
इससे आदमी आगे जाता है, मगर वो ही पूरी सच्ची बात नहीं है। सच्ची बात तो यही है कि जागृति पूरी होनी चाहिये। जागृतिपूर्वक आगे जाना चाहिये। जागति के लिए ही हिन्दुस्तान में मनष्य का जन्म है। ये तो लोग नींद में रहते है और हररोज औरत के साथ झगडते है, बोस के साथ झगडते है, अन्डरहेन्ड के साथ झगडते है। आप कभी अन्डरहेन्ड के साथ झगडते है?
प्रश्नकर्ता : हाँ, होता है कभी।
दादाश्री : जो अपना अन्डरहेन्ड है, उसकी तो रक्षा करनी चाहिये। जिसकी रक्षा करने की है, उसके साथ ही लड़ते है, तो वो जागृत कैसे बोला जायेगा?
प्रश्नकर्ता : वो तो नींद में है उसको जागृत करने के लिए हम लड़ते हैं।
दादाश्री: अरे, उसके साथ लड़ते है, वो ही अजागृत है। वह तो अपनी निर्बलता है। जो छोटे आदमी को दंड देता है, अपने अन्डरहेन्ड को दंड देता है, वह तो उसकी निर्बलता है। बोस को क्यों दंड नहीं देते हो? बोस जब भी बोलते है, तब सुन लेते है। ये क्या तरीक़ा है? बोस को भी दंड दो, उसको भी जागृत करो न! उसको बोलो कि 'तुम तुम्हारी औरत के साथ लड़कर आया है और इधर गुस्से में हमें क्यों सताते हो?!' ऐसा स्पष्ट बोलो!! लेकिन अन्डरहेन्ड को ही सभी सताते है, वो जागृत की निशानी नहीं और इसमें सारा दिन बंधन ही हो रहा है, वो भी मालुम नहीं है। इसमें फिर आदमी जानवर में जायेगा, ये भी मालुम नहीं उसको। क्योंकि वो पशु होने का cause चार्ज करता है, तो effect पशु की हो जायेगी। Cause मनुष्य का करे तो मनुष्य होता है, देव का cause करे तो देवलोक में जाता है, नर्क का cause करे तो नर्कगति में जाता है। जैसे जैसे cause करता है, ऐसी ऐसी effect होती है। आपने कभी पाशवता का cause किया
दादाश्री : कभी गुस्सा करता है? बोस को उसकी औरत के साथ कभी झगडा हो गया तो इधर ओफिस में आकर उसका क्रोध हम पर निकालता है। देखो, ऐसी बात है। तो हम आपको ऐसा protection दे देंगे कि आपको कुछ दुःख होगा ही नहीं। फिर ओफिस में बैठकर भी समाधि रहेगी, बोस गाली दे तो भी समाधि नहीं जायेगी। ये ज्ञान मिल जायेगा तो फिर तुम्हारा कोई बोस ही नहीं रहेगा। वो 'रविन्द्र' को बोस रहेगा, तुम्हारा खुद का बोस नहीं। तुम खुद और रविन्द्र दोनों अलग हो जाओगे और अलग ही काम चलेगा सब। फिर औरत के साथ रह सकता है, लडके की शादी भी करा सकता है और सिनेमा देखने को भी जा सकता है। व्यवहार सब कुछ कर सकता है। कुछ भी त्यागने की जरूरत नहीं। इधर त्याग तो अहंकार और ममत्व का हो जाता है, फिर त्याग करने की कोई जरूरत ही नहीं।
प्रश्नकर्ता : इस व्यवहार में रहकर भी अलिप्त रहना चाहिये।
दादाश्री : हा, ऐसा अल्पित हो जाता है।
हिन्दस्तान में लोगों को सच्चा मार्ग नहीं मिला। इसलिए सब मोह में डूब गये। इधर मार्ग नहीं मिलने से लोग उधर चले जाते है। सच्चा मार्ग मिले तो हिन्दुस्तान के लोग एक घंटे में भगवान हो सकते है। भगवान किसको बोला जाता है? आदमी धंधेवाला हो या कुछ भी करता हो, मगर जो आदमी को 'कढापा-अजंपा' नहीं होता, वो भगवान बोला
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जाता है। 'कढापा - अजंपा' तुमको समझ में आता है? तुम्हारी language में क्या बोलते हो? 'कढापा अजंपा' याने तुमको मैं समझाता हूँ।
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तुम्हारे यहाँ कोई महेमान बेठे है और नौकर चाय के दस कप ट्रे में लेकर आया और कुछ अड़चन आयी, तो उसके हाथ में से ट्रे गिर गयी तो आपको अंदर कुछ होता है?
प्रश्नकर्ता : मेरी चीज है तो effect होती है। पड़ौसी की होगी तो मुझे कुछ नहीं होगा ।
दादाश्री : आपकी चीज हो और आप विचारशील होते, तो आप मुँह से कुछ नहीं बोलेंगे, क्योंकि आप सोचते है कि सब लोग के सामने मैं नौकर के साथ लडुंगा तो सबके सामने मेरी इज्जत चली जायेगी । इसलिए मुँह से कुछ नहीं बोलता है, मगर अंदर में बोलता है कि सब लोग जायेगें फिर नौकर को मारूँगा। मन में जो effect होती है, उसको 'अजंपा' बोला जाता है और मुँह से लड़ने लगा तो उसको 'कढापा' बोला जाता है। किसी को दुःख हो ऐसी speech नहीं होनी चाहिये । वर्तमान में रहोगे कैसे?
गोवा से खंभात आये तो थकान नहीं लगी? Tired नहीं हो गये? प्रश्नकर्ता: नहीं, आपके पास आने से सब थकान चली गयी।
दादाश्री : हाँ, मगर थकान लगी थी न? क्योंकि आप क्या बोलते है कि मैं गोवा से खंभात आया। सच तो गाडी इधर आई है, मगर आप बोलते है कि मैं आया। लेकिन आप तो गाडी में सीट पर बैठे थे! आपकी समझ में एसा आये कि मैं नहीं आया, मुझे गाडी लेकर आयी। फिर psychology effect ऐसी हो जायेगी, तो थकान नहीं लगेगी।
सर्व दुःखों से मुक्ति
हम बम्बई से गाड़ी में बैठते है और गाड़ी बडौदे जाती है, तो हम देखते है कि सब लोग ऐसा बोलते है कि 'बडौदा आया, बडौदा आया'। तो हम उतर जाते है, बस । बम्बई से हम नहीं आये, ये गाडी आयी। और जो बम्बई से आया वो घर पहुँचते ही क्या बोलता है कि 'अरे भाई, अभी चाय रख दे, जल्दी चाय रख दे, मैं थक गया हूँ।' अरे, तुं तो गाड़ी में बैठकर आया था, तो फिर कैसे बोलता है कि मैं थक गया ? !
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प्रश्नकर्ता: This is real scince !
दादाश्री : हाँ, मैं तो ऐसे ही करता हूँ। हमको जब 'ज्ञान' नहीं हुआ था, तब हम बम्बई से बडौदा आते थे, तो सब लोग हमको स्टेशन पर छोडने को आते थे। गाडी शुरू हुई तो सब लोग चले जाते थे, तो 'मैं' ये 'A.M.Patel' को क्या बोलता था कि Contractor साब, बम्बई छूट गया और अभी बडौदा आया नहीं। गाडी ने whistle मार दी तो बम्बई बिलकुल छूट गया, बडौदा अभी आया नहीं तो हम अभी मोक्ष में ही है। बम्बई से छूट गया, बडौदा से बंधन हुआ नहीं, तो अभी मुक्त हो गये, मोक्ष में ही है। देखो न, सोते सोते मोक्ष में रहने का ।
अंतर सुख - बाह्य सुख का बेलेन्स !
भौतिक सुख तो सब अपने हिसाब का लेकर आये है, वो ही भुगतने का है। मगर आंतरिक सुख की जरा भी कमी पड़े तो आनंद नहीं आता। भौतिक सुख के साथ अंतर सुख भी होना चाहिये ।
भगवान ने क्या कहा था कि अंतर सुख और बाह्य सुख, दोनों सुख साथ चाहिये। उसमें अगर भौतिक सुख ज्यादा बढ़ गया तो आंतरिक सुख कम हो जायेगा। आंतरिक सुख कम हो गया तो आदमी के दिमाग की खराबी हो जायेगी। ये भौतिक सुख थोडा कम हो तो चलेगा मगर आंतरिक सुख तो होना ही चाहिये। आंतरिक सुख होतो
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ही भौतिक सुख की मजा आयेगी। आंतरिक सुख नहीं होगा तो भौतिक सुख 'पोईझन' जैसा हो जायेगा। भौतिक सुख ज्यादा बढ़ गया तो फिर बाद में ब्रान्डी है, जुआ है, ऐसे दूराचार में चला जायेगा। नहीं तो मनुष्य को अंतर सुख तो बहुत है, बाहर के किसी भी सुख की जरूरत ही न पड़े, इतना अंतर में सुख है। 'नेसेसिटी' की इच्छा भी करने जैसी नहीं है। वो अंतर सुख जो मिल गया, तो काम हो गया।
अभी जो लोग आंतरिक सुख के लिए खुद ही प्रयत्न करते है, वो किसके जैसी बात है, कि डॉक्टरी के पुस्तक में देखकर खुद ही prescription बना ले तो चलेगा? उससे पूरा फायदा नहीं मिलता। मगर डॉक्टर के पास जाये तो फिर पूरा फायदा है। वो डॉक्टर कैसा होना चाहिये कि बगैर Fee का होना चाहिये। जिधर Fee है, वहाँ सच्ची दवा नहीं है। जिधर Fee नहीं होती, वहाँ सच्ची दवा है।
प्रश्नकर्ता : फोरेन कंट्रीझ में बहुत से लोग दारू, चरस, गांजा लेते है आनंद के लिए, मोझ करने के लिए और कहते है कि दूसरी दुनिया में जा सकते है। तो वो दूसरी दुनिया क्या है? वह जानना है।
दादाश्री : दूसरी दुनिया जैसी कोई चीज ही नहीं है। वो जो नशा करते है, उससे अंदर जो संवेदन होता है, वो बिलकुल darkness हो जाती है। उसमें उसको आनंद दिखता है। उसको वो second world का आनंद बोलता है।
प्रश्नकर्ता : मुझे यह लगता है कि second world जैसा कुछ होना चाहिये, क्योंकि पाँच-छह महिने का छोटा बच्चा होता है, वह रोता है, हँसता है, उसे feelings है, वह second world को देखकर ही होनी चाहिये या मनुष्य मृत्यु के बाद second world में जाता होगा ऐसा लगता है।
दादाश्री : second world जैसी कोई चीज ही नहीं। हम ज्ञान में सब देखकर बोलते है। ये world क्या है, उसका creator कौन है,
किसने ये सब बनाया, किस तरह से ये चलता है, सब कुछ हम देखकर बोलते है। किताब में पढ़कर नहीं बोलते है। आपको वो second world देखने में interest है और ये आपकी belief में ये first world है, मगर ऐसा नहीं है।
____ Full darkness में क्या होता है? वो गांजा-चरस कोई भी चीज से वो Full darkness में चला जाता है, वहाँ बिलकुल effect नहीं होती, अंदर कोई effect नहीं होती है। वो जो दूसरी दुनिया की आपकी belief है, वो world of darkness है। वो गांजा-चरस सब पीकर ये दूसरी दुनिया में चला जाता है। आदमी को इतना थोडा भी उजाला दिखाया कि अंदर अजंपा चालु हो जाता है, क्योंकि light effective है न? light is effective. जब full light हो जाती है तो full light is uneffective और full darkness हो गयी तो full darkness is uneffective फिर full darkness में दुःख मालूम नहीं होता है, उसको ही वो आनंद मानता है।
सारी दुनिया में हम अकेले आदमी अबुध है। हमको बुद्धि नहीं है। हमारे पास indirect light नहीं है। हमारे पास direct light है, full light है, तब full समाधि हो जाती है। बुद्धि से समाधि नहीं रहेती है। तो वो ब्रांडी, गांजा कछ पीता है तो भी वो अबुध हो जाता है, तब भी समाधि होती है। मगर वो darkness की समाधि है। बुद्धि का light आदमी को emotional करता है। तो बात समझ गये न? Light is effective ! full light uneffective sit full darkness uneffective.
'ज्ञानी पुरुष' के पास सायन्टिफिक सब बात होती है। हम मोटर में भी घुमते है फिर भी निरंतर समाधि में रहते है। हम बिलकुल full light की दुनिया में ही रहते है। वो चरस-गांजा पीकर full darkness की दुनिया में चला जाता है। दूसरी दुनिया end वाली है और सच्ची दुनिया है, वो endless है।
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प्रश्नकर्ता : जिसकी जरूरत है, वह चीज क्यों नहीं मिलती?
दादाश्री : आप अगर normality में रहो तो जो चीज आपको जरूर है वो चीज घंटे, दो घंटे, तीन घंटे में आप जिधर बैठे है, वहाँ हाजिर हो जायेगी। भगवान अंदर बैठे है। मगर मनुष्य normality में नहीं रहता। लोग लोभ करने को गये, above normal लोभ करने को गये, उसको भगवान क्या कहते है, 'अब हमारी शक्ति तुमको नहीं मिलेगी। अब आपकी शक्ति से जाओ, खुद की जिम्मेदारी पर जाओ। हम आपको light देंगे।' light के बिना चलता ही नहीं न?! भगवान light देने को तैयार है मगर जिम्मेदारी नहीं लेते। वो तो खुद की शक्ति से जाओ। भगवान को आप प्रार्थना करेंगे कि हे भगवान! हमको हेल्प करो, तो भगवान आपको जरूरी हेल्प करता है। वो प्रकाश ही देने का काम करते है, दूसरा कुछ नहीं।
मनुष्य चिंता मुक्त हो सकता है? दादाश्री : कभी worries होता है क्या? प्रश्नकर्ता : होता है।
दादाश्री : अगर नींद चली ना जाये, नींद permanent हो जाये तो आपकी क्या स्थिति हो जाती है?
प्रश्नकर्ता : तो दूसरे लोग उसको dead कहेंगे।
दादाश्री : सोते समय कभी चिंता होती है कि सबेरे नहीं उठ सका तो मैं क्या करूँगा?
प्रश्नकर्ता : नहीं, उसकी चिंता तो नहीं रहती। दादाश्री : अगर इतनी चिंता हो जाये तो कल्याण हो जाये। प्रश्नकर्ता : परमात्मा के साक्षात्कार के लिए क्या विधि है? दादाश्री : क्या नाम है आपका?
प्रश्नकर्ता: रविन्द्र।
दादाश्री : वो आप really speaking रविन्द्र है? सचमुच आप कौन है? रविन्द्र तो आपका नाम है, पहचान करने के लिए। आप खुद कौन है?
प्रश्नकर्ता : वो तो जैसे सब आत्मा है, वैसे मैं भी एक आत्मा
दादाश्री : तो क्या medicine ली आपने? प्रश्नकर्ता : worries की तो medicine ही नहीं है।
दादाश्री : मगर mental worries तो वो Doctor को भी रहती है न? सबको ही mental worries रहती है। हमको mental worries कभी नहीं होती है। आपको worries निकालने की है? कभी worries न हो ऐसा करने का है?
दादाश्री : हाँ, ये आत्मा की पहचान होनी चाहिये। आत्मा की पहचान हो गयी फिर रविन्द्र temporary adjustment है। वो पहचान हम करा देते है। फिर परमात्मा का साक्षात्कार हो जाता है। फिर कभी चिंता-worries कुछ नहीं होता है और एक-दो अवतार (जन्म) के बाद मोक्ष में चला जाता है।
ये दफे बोम्बे में जन्म लिया है, तो उसके पहले किधर जन्म लिया था? मालूम नहीं? और अगले जन्म में किधर जन्म लोगे वो भी मालूम नहीं। और अभी किधर जाने का वो भी मालूम नहीं। ऐसा कैसे चलेगा?
आप रात को नींद में किधर चले जाते हो?
प्रश्नकर्ता : वह नहीं मालूम।
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कभी चिंता होती है? दवाई नहीं करते है? बिना दवाई ऐसे ही आराम हो जाता है?
प्रश्नकर्ता : आराम है ही कहाँ?
दादाश्री : कोई जगह पे आराम नहीं है? वो आराम हराम हो गया है? एक दिन भी चिंता बंध नहीं होती? दिवाली के दिन तो बंध रहती है कि नहीं?
प्रश्नकर्ता : दिवाली में तो चिंता बढ़ती है।
दादाश्री : दिवाली के दिन चिंता ज्यादा बढ़ती है? वो दिन तो खाना-पीना अच्छा मिलता है, कपडे अच्छे मिलते है, फिर भी?
प्रश्नकर्ता : खाने-पीने के लिए तो हम महसूस ही नहीं करते।
दादाश्री : हाँ, मगर वो चिंता तो बढ़ती है। ऐसा कहाँ तक चलेगा? कितना स्टोक है? अभी खतम नहीं हुआ?! सारे दिन में चिंता नहीं हो, ऐसा एक दिन मिले तो कितना आनंद हो जाता है न ! लेकिन एक दिन भी ऐसा नहीं मिलता है। तुम्हारे यहाँ सभी लोगों का ऐसा रहता है?
'कीमिया' कैसा अच्छा किया है(!) कि कोई परेशानी ही नहीं बताये।
और औरत के साथ घर में झगड़ा होता है, तो वो थोडा रोकर बाहर निकलता है, तब तो मूंह धोकर बाहर निकलता है। ऐसे दुनिया चल रही है।
ऐसा है, सच्ची बात जानने की है। वो सच्ची बात जानने को नहीं मिली लोगों को और जो लौकिक बात है वो ही बात सब लोग जानते है। अलौकिक बात क्या चीज है, कभी सुना भी नहीं, पढ़ा भी नहीं
और हमने बताया ऐसे जाना भी नहीं। अलौकिक बात जाने तो सब परेशानीयाँ चली जाती है। इधर अलौकिक बात जानने को मिलती है। Self का realisation हो सकता है, फिर चिंता कभी नहीं होती और business भी आप कर सकते है।
प्रश्नकर्ता : मानो या न मानो, मगर सबको worries तो रहती ही है।
दादाश्री : क्यों रहती है? आप खुद को पहचाना नहीं और आप बोलते है, 'मैं रविन्द्र हूँ। ऐसा egoism (अहंकार) करते है। ये सब मैं चलाता हूँ' ऐसा भी egoism करते है। और इससे worries ही रहती है। जो egoism नहीं करता, उसको कुछ worries नहीं है।
प्रश्नकर्ता : जिसको चिंता नहीं होती, वो तो भगवान ही हो गया।
दादाश्री : हमारी साथवाले सब आदमी है, उनको कभी एक भी चिंता ही नहीं होती। worries है नहीं बिलकुल। और जेब काट ले तो भी चिंता नहीं। ये बात मानने में आती है? क्या ये world में बिना worries कोई आदमी कभी होता है? कभी चिंता नहीं हो ऐसा ज्ञान है, ऐसी अपनी Indian Phylosophy है। जेब काट ले तो भी कुछ होता नहीं, गाली दे गया तो भी कुछ होता नहीं, No depression, फूल चढाये तो elevation नहीं, ऐसा uneffective हो जाता है (ज्ञान से)।
प्रश्नकर्ता : सबका क्या पत्ता?
दादाश्री : कितने लोग आनंद में रहते है, उसकी तलाश नहीं की? आप अकेले को ही नहीं, सारी दुनिया में सभी लोगों को चिंता है। सभी लोगों को आधि-व्याधि-उपाधि, worries !! और पूछेगे कि 'क्यं भाई. कैसा है?' तब वो बोलता है कि, 'बहुत अच्छा है, बहुत अच्छा है।' मगर यह सब जूठी बातें है। ऐसा नहीं बोले, तो उसकी आबरू चली जाये। इसलिए उसकी आबरू रखने के लिए ऐसा बोलते है कि, कुछ परेशानी नहीं और खुद जानते है कि कितनी परेशानीयाँ है। परेशानी कोई बता देता है? परेशानी गुप्त ही रखते है, वो भगवान ने
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प्रश्नकर्ता : यह stage कब आती है? दादाश्री : वो stage हम सिरपे हाथ रखके कर देता है। प्रश्नकर्ता : चिंता का कारण क्या है?
दादाश्री : चिंता का कारण egoism है। अपनी belief में ऐसा है कि 'मैं ही चलाता हूँ' ऐसा egoism है, इससे चिंता होती है। कौन चलाता है, वो मालूम हो जाये तो इसकी worries नहीं होगी। लेकिन सच मालूम होना चाहिये। लेकिन वो तो शंका है। इसलिए पल में बोलता है, भगवान चलाते है। थोडी देर में बोलता है, 'मैं चलाता है'। फिर बोलता है, 'मी काय करूं(मैं क्या करूं)।' इसको शंका है। ये world को भगवान चलाते ही नहीं और आप भी चलाते नहीं है। भगवान तो कुछ कर सकते ही नहीं। वो दूसरी शक्ति है, वो ही सब चलाती है। ये बात नहीं जानते इसलिए मन में ऐसा होता है कि मैं ही चलाता हूँ और इससे worries होती है, चिंता हो जाती है। चिंता वो egoism है एक प्रकार का।
चिंता किस लिए करते हो? कोई भी जानवर चिंता नहीं करते, तुम क्युं चिंता करते हो? सबको जो जरूरी चीजें है, वो मिल जाती है
और आपको भी मिल जाती है। फिर ज्यादा मिले ऐसी आशा रखते है. वो गलत है। स्वार्थ के लिए बहुत आशा रखते है, वो ही दुःख है। नहीं तो देह के लिए सब चीजें ऐसे ही मिल जाती है।
दो मिलवाला सेठ होता है, तो उसको एक पल भी शांति नहीं रहती। वो तीसरी मिल बनाने के लिये तैयारी करता है। उसको खाने के लिए भी टाईम नहीं। एक सेठ ने तीसरी मिल बनायी थी, dinner के लिए हमको बुलाया था। हम साथ में खाने बैठे थे और उनकी वाईफ सामने आकर बैठी। तो सेठ ने बोला कि 'क्यु इधर आयी?' तो वो बोली कि 'आज आप ज्ञानी पुरुष के साथ बैठे है, तो आज तो आराम से खाना खाईए।' तो मैं समझ गया कि आराम से कभी वो खाता नहीं।
फिर सेठानी हमें बोली कि 'हम खाना टेबल पर रख देते है, वो रखने के पहेले ही सेठ मिल में पहुँच जाते है और फिर Body ही इधर खाती है।' फिर मैंने बोल दिया कि, 'सेठ, आप खाना खाने के time चित्त को absent मत रखो। चित्त को present रखो। नहीं तो आपको Blood pressure हो जायेगा और heart attack भी हो जायेगा!! कैसी जिम्मेदारी आप लेते हो? किसके लिए ये करते हो? कितना लोभ है आपको? आप आराम से खाओ।'
कृष्ण भगवान क्या कहेते है कि प्राप्त को भुगत, अप्राप्त की चिंता मत करो। अपनी पास है वो आराम से खाओ।
प्रश्नकर्ता : लेकिन चिंता और worries ये सब क्या है? दादाश्री : चिंता और worries वो सब egoism है। प्रश्नकर्ता : तो What is egoism?
दादाश्री : आप जो है, वो जानते नहीं और आप नहीं है, वो नाम दिया है, तो वो मान लिया कि मैं रविन्द्र हूँ, वो wrong belief हो गयी, वो ही egoism है। 'मैं रविन्द्र हूँ' ऐसा व्यवहार में तो बोलना चाहिये। मगर व्यवहार में तो only dramatic होना चाहिये और आप तो really बोलते है। Relatively बोलना चाहिये। 'मैं रविन्द्र हूँ' वो बोलना तो चाहिये मगर ऐसी belief नहीं होनी चाहिये। वो तुम्हारे को belief हो गयी है, वो ही भूल है। दूसरी कोई भूल नहीं है। वो ही egoism है। 'मैं इसका Father हूँ', वो दूसरी wrong belief है। 'मैं इसका हसबन्ड हूँ', वो तीसरी wrong belief है। ऐसी कितनी wrong belief है?
wychaf: So I am nothing?
दादाश्री: नहीं, Right belief है न। हम ये सब wrong belief frecture कर देते है और Right belief दे देते है।
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सर्व दु:खों से मुक्ति
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सर्व दुःखों से मुक्ति
क्या आप शंकर के भक्त हो? दादाश्री : चिंता-worries होती है, तो क्या दवाई ले आते है? प्रश्नकर्ता : भगवान को याद करते है। दादाश्री : कौन से भगवान?
प्रश्नकर्ता : कोई भी दिल में आया, उनका नाम लेते है। कभी शंकर बोलते है, कभी विष्णु।
दादाश्री : भगवान तो एक ही तय करना चाहिये। सब भगवान को रखेंगे तो कौन तुम्हारा काम करेगा? आप एक भगवान को तय कर लो।
प्रश्नकर्ता : तो फिर शंकर भगवान।
दादाश्री : हाँ, तो विष पीया था कभी तुमने? वो शंकर भगवान तो जहर पीकर शंकर हो गये। तो आपको भी कुछ पीना चाहिये न? तो फिर आप भी शंकर हो जायेंगे। हमने जहर पीया, तो हम शंकर हो गये।
प्रश्नकर्ता : मतलब किसी तरह का दुःख वैसे जीवन में होता रहता है।
दादाश्री : हाँ, तो जैसे cold drink पी जाते है, ऐसे यह ज़हर आराम से पी सकते हो? वो आराम से पी लेने का। उसके लिए खराब ध्यान भी नहीं करना चाहिये, प्रतिकार भी नहीं करना चाहिये और इसको cold drink की तरह पी लेने का। तो फिर इससे शंकर हो जाओगे। It is also a cold drink to be a shankar ! धीरे धीरे जैसे cold drink पीते है ऐसे आराम से पीने का। एकदम पीयेगा तो आपको उसके पर रूचि नहीं है, उसका भय लगता है, ऐसा मालूम हो जायेगा।
प्रश्नकर्ता : लोग कहते है कि शंकर भगवान की जटा है और उसमें से गंगा बहती है। तो लोग ये विश्वास करते है फीर भी किसी ने देखा तो नहीं है।
दादाश्री : वो तो अवलंबन है। वो सब प्राकतिक गण है। वो help करता है। शंकर के स्वरूप समझने की जरुरत है। वो लिंग है न, उसके दर्शन करते है। लिंग वो शंकर का स्वरूप नहीं है। शंकर का स्वरूप तो कल्याण स्वरूप है और मोक्ष स्वरूप है। ऐसे शंकर के दर्शन हो जाये तो काम हो जाता है। शंकर के दर्शन करने की सबको इच्छा होती है, किन्तु बात समझ में नहीं आती। हम शंकर के दर्शन करा देता है।
कोई शंकर की भक्ति करे, कोई माताजी की भक्ति करे, ये सब लोक व्यवहार है। बचपन में जो संजोग मिलते है, उसके अनुसार व्यवहार करता है और उससे संसार चलता है और अपना मन भी ठीक रहता है। मोक्ष में जाने के लिए तो अंदर बैठे है वो ही भगवान को पहचानना होगा। अंदर जो है वो ही सबसे बड़े महादेव है। अंदरवाले महादेवजी की कभी भक्ति की थी?
A
.
कभी तुम्हारी औरत तुमको जहर देती नहीं? तुमको ऐसा नहीं बोलती कि, 'तुम्हारे में अक्कल नहीं है। तुम मूर्ख आदमी हो, तुम अच्छे आदमी नहीं हो' ऐसा तैसा?
प्रश्नकर्ता : कभी कभी एसा कहती है।
दादाश्री : वो राजीखुशी से पी लेना, वो ही ज़हर है। ऐसा ज़हर पी लेने का, तो आप भी शंकर हो जायेंगे। शंकर को कभी खुश करना हो तो तुमको कोई गाली दे दे, तो प्रतिकार नहीं करने का। उसको निगल जाने का। कोई कैसा भी ज़हर दे तो पी जाने का। तुमको कोई जहर का glass देता है?
प्रश्नकर्ता : नहीं।
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सर्व दुःखों से मुक्ति
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सर्व दुःखों से मुक्ति
दादाश्री : तो बाहरवाले महादेवजी की ही भक्ति की है? प्रश्नकर्ता : बाहरवाले ही तो सब दिखाते है।
दादाश्री : मगर अंदर जो है न, वो ही सच्ची बात है। इससे बड़ा देव कोई नहीं है। जहाँ तक इसकी पहचान न हो वहाँ तक दूसरे देव की भक्ति करनी चाहिये।
प्रश्नकर्ता : पहले बाहर का ही कुछ होगा तो अंदर जायेगा न?
दादाश्री: मगर अंदर के जो साक्षात्कार हो गये तो काम पूरा हो जाता है। बाहरवाले की भक्ति तो बहत दिन से करते है. कितने जन्म से करते है, फिर भी पूरी नहीं हो होगी। वो तो जन्मोजन्म चालू ही रहेगी। कितने जन्म से ये बाहर का ही करते है लेकिन अंदरवाले की पहचान कभी नहीं हुई।
प्रश्नकर्ता : वो अंदरवाले की पहचान कैसे हो?
दादाश्री : वो 'ज्ञानी पुरुष' करा सकते है। कृपा से सब कुछ होता है, फिर साक्षात्कार हो जाता है और वो कभी जाता नहीं है, फिर दिन-रात पल-पल उसकी ही भक्ति होती है।
दादाश्री : पहले तो आप Father कैसे हो गये? क्या सच्चे Father हो गये? Certified father है आप?
Father कैसे होने चाहिये? Certified Father होने चाहिये और Mother भी certified होनी चाहिये। ये तो without any certificate father-mother हो गया। वो बच्चे ने कुछ छोटी सी गलती की, तो उसको मार मारेंगे। अरे, Father-Mother किस तरह से हो गये? जब कि आपके पास कोई भी सर्टिफिकेट नहीं है?!
__Father-Mother की जिम्मेदारी कितनी है? कि जैसे ये Prime minister साहब है, उनको सारे हिन्दस्तान की जिम्मेदारी है. वैसे आपको चार लडके की जिम्मेदारी है। वो जिम्मेदारी तो समझता नहीं और Father हो गये है और बोलते है, हम लडके के Father है!
एक लडके का Father था। वो लडके की Mother को बोलता था कि, 'देख, देख, देख। अरे, किधर गई, इधर आ। देख, ये अपना लडका क्या कर रहा है! पाँव ऊँचा करके मेरी जेब में से दो आने निकाल लिए। कितना होशियार हो गया है।' और फिर Mother आई
और यह देखकर खुश हो जाती है कि अपना बेटा कितना होशियार हो गया है। ऐसा कौन बोलते है? लडके के Father-Mother बोलते है। वो बेटा समझता है कि ओहोहो! मैंने आज बहुत बड़ा काम किया। ये तो बेटे को चोर बना रहे है!! माँ-बाप की जिम्मेदारी का कुछ भान ही नहीं है और माँ-बाप हो बैठे है। Responsibility होगी कि नहीं?
प्रश्नकर्ता : हाँ। तो फिर certified father-Mother याने क्या?
दादाश्री : Certified याने संस्कारी होना चाहिये। संस्कारी नहीं है, तो पहले संस्कार सीखने चाहिये। जहाँ संस्कारी पुरुष रहते है, वहाँ जाकर संस्कार समझ लेने चाहिये. कि बच्चों के साथ कैसा बर्ताव रखना, wife के साथ कैसा बर्ताव रखना चाहिये। वो सब समझ लेना
प्रश्नकर्ता : ज्ञानी की पहचान कैसे हो कि ये 'ज्ञानी' है?
दादाश्री : वो हमें ऐसा साक्षात्कार कराये और वो साक्षात्कार सफल हो जाये तो हमें समझ जाने का कि ये 'ज्ञानी' है। सफल नहीं हुआ तो अज्ञानी है ऐसा समझ जाने का। दूसरी क्या परीक्षा करने की? साक्षात्कार तो होना चाहिये न? उधार नहीं चाहिये। नग़द ही चाहिये।
माँ-बाप की जिम्मेदारी कितनी?
प्रश्नकर्ता : अपना बच्चा हो, तो बाप को अपनी duty समझकर उसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिये?
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सर्व दुःखों से मुक्ति
चाहिये। अभी तो अपने यहाँ संस्कार की कोई college भी नहीं है न!!!
व्यवहार निःशेष का equation ! आप लोग Father को क्या बोलता है? प्रश्नकर्ता : डेड़ी। दादाश्री : और वो डेड़ी अपने लडके को क्या बोलता है? प्रश्नकर्ता : बेटा।
दादाश्री : बेटा? हा, तो वो बेटा बडा हो तो डेडी उसको क्या बोलते है? बेटा? और चालीस साल का हो जाये तो क्या बोलते है?
प्रश्नकर्ता : बेटा ही बोलते है।
दादाश्री : वो बेटा हररोज डेड़ी को डेड़ी, डेड़ी करके खुश करता है। एक दिन बेटा गुस्से में आ गया और डेडी को बोल दिया कि 'तम नालायक आदमी हो, तुम ऐसे हो, वैसे हो' तो फिर? ये puzzle कैसे solve होगा? जैसे algebra में equation करते है, तो इसमें कैसे equation करेगा?
प्रश्नकर्ता : बेटे को Father की माफी माँग लेनी चाहिये।
दादाश्री : मगर लडका माफी माँगता नहीं। माफी माँगता तो काम हो जाता, तो equation हो जाता। मगर चालीस साल का बेटा, वो deputy collector of Goa है, तो क्या होगा?
wychaf : Problem will remain as it is, no settlement. वैसे ही रहेगा या तो कोई ऐसा काम बाहर से आ जाये. कोई incidence हो जाये, उसमें दोनों की जरूरत हो तो दोनों एक हो जायेंगे।
दादाश्री : तो भी डेड़ी के मन में से नहीं जायेगा, वो तो debit ही रहेगा। Profit and loss account भरपाई नहीं हो जायेगा। Account भरपाई होना चाहिये न? Alegebra में equation होता है, तो व्यवहार में भी equation चाहिये, नहीं तो balance कैसे करेगा? तो व्यवहार में equation कैसे करेगा? बेटा तो डेड़ी को क्या बोलता है कि 'तुम जैसा था वैसा मैंने बोल दिया।' इसलिए उसको equation नहीं मंगता। मगर डेड़ी को तो नींद नहीं आती है, तो क्या करने का?
एक आदमी व्यापारी के पास से तीन हजार रुपये ले गया और फिर दस साल तक भरपाई नहीं किया तो व्यापारी क्या करता है? घाटे के खाते में उधार करके व्यापारी उसके नाम जमा कर देता है। वो उसके नाम पर जमा कर देता है कि नहीं? Equation तो करना चाहिये न? तो डेड़ी के mind में से worries निकल जाये ऐसा कुछ करना चाहिये न? तो क्या करोगे?
___ वो डेड़ी हमको मिल जाये तो हम बता देंगे कि 'तुम equation कर दो।' वो बोलेगा कि कैसे equation करने का?' तो हम बतायेंगे for You are not permanent daddy. You are temporary daddy. डेड़ी परमेनन्ट है कि टेम्पररी?
प्रश्नकर्ता : टेम्पररी।
दादाश्री : हाँ, और वो लडका भी टेम्पररी है। डेड़ी भी टेम्पररी है और बेटा भी टेम्पररी है, तो equation से डेड़ी कैसे हो गया? Eye witness से ये डेड़ी हो गया है और eye witness से ये बेटा हो गया है मगर सच्चे witness से, real witness से कोई किसी का बेटा भी नहीं और डेड़ी भी नहीं है। फिर equation कैसे करने का? equation ऐसे करने का कि eye witness से मैं इसका डेड़ी हूँ और दूसरे relative witness से ये मेरा डेड़ी है और मैं इसका बेटा हूँ।
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सर्व दुःखों से मुक्ति
सर्व दुःखों से मुक्ति
Equation ऐसा किया तो बेटा भी खुश हो जायेगा। फिर बेटे को डेड़ी पर प्रेम हो जायेगा। ऐसा equation आप करेगा कभी? तुम्हारे life में equation करना पड़ेगा कि नहीं करना पड़ेगा?
प्रश्नकर्ता : करने का है। दादाश्री : तो ये समझ में आ गया, equation कैसे करने का? प्रश्नकर्ता : मगर Father ऐसी रीत नहीं ले, इस तरह से न सोचे
का बोज़ लगेगा न? तो फिर मैं मन में ऐसा बोल दिया कि 'वो मेरा चाचा है, मैं उसका भतीजा हूँ।' तब बोज़ कम हो गया।
ऐसा equation कर देगा न? तो लोग क्या बोलेंगे कि 'मैंने इतना सब कुछ बोल दिया तो भी इनके मुँह पर कुछ असर नहीं है। हमने इतना बोल दिया, तो भी आपको कुछ नहीं लगता?' तो आपको बोलने का कि मेरे को लगता तो है, मगर तेरे प्रेम की वजह से मेरे को कुछ नहीं लगता।' तो फिर वो तुम्हारे पर ज्यादा प्रेम रखेगा।
तो?
दादाश्री : ऐसा करना ही पड़ेगा। Equation की रीत ही यह है और ये रीत से equation नहीं करेगा तो सब relation तूट जायेंगे। क्योंकि बेटे के साथ father का relative adjustment है, not real adjustment ! Father, Mother, Wife, बेटा सब relative adjustment है। ये body के साथ भी relative adjustment है, तो mother के साथ कैसे real होगा? All these are relative adjustment, वो सब eye witness से है।
जब आपकी शादी हो जायेगी और कभी आपकी औरत बहुत गुस्सा हो गई, तो फिर क्या दवाई लगाओगे? आपको बोलेगी कि you are unfit. ऐसा-वैसा बोलेगी, तो आप क्या medicine करोगे?
___चोबीस तीर्थंकरों का मार्ग कैसा है? उसका Foundation व्यवहार का है। पहले व्यवहार चाहिये। व्यवहार बिलकुल correct चाहिये, आदर्श व्यवहार चाहिये।
हिसाबी व्यवहार को कहाँ तक रियल मानोगे?
प्रश्नकर्ता : हमारा पौत्र गुजर गया है, उसका दु:ख दूर हो जाये और मन को शांति मिले, इतना ही चाहिये।
दादाश्री : हम सब रोने को शुरू करे तो वो बच्चा वापस आ जायेगा?
प्रश्नकर्ता : ऐसा तो नहीं होता। आज तक ऐसा नहीं हुआ है।
दादाश्री : तो फिर कुदरत की मरजी के खिलाफ क्युं चलते हो? और दूसरे बच्चे हो जायेंगे, इसमें क्या गभराने का?
प्रश्नकर्ता : ऐसा होता है कि इतने थोडे समय के लिए हमारे पास आकर हमको दुःख देकर क्यों चला गया?
दादाश्री : वो चोपडे में जितना हिसाब था, वो सब हिसाब चूकते कर दिया और जितना दुःख देने का था, उतना दुःख देकर चला गया।
प्रश्नकर्ता : हिसाब क्या चीज है?
प्रश्नकर्ता : Same equation आ गया?
दादाश्री: हाँ, Husband is wife's wife. ये equation लगा देने का, फिर कोई परेशानी नहीं। हम ज्ञानी नहीं हुए थे, वहाँ तक हम equation से सब जगह ऐसे ही रहते थे।
हमारा भतीजा हमको 'काका, काका' बोलता था। क्या बोलते है आपकी भाषा में? चाचा बोलता है न? तो हमको चाचा बोले तो हमारे को बोज़ बढ़ जाता था। हमको ज्यादा मान दे दिया, तो मान
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सर्व दुःखों से मुक्ति
सर्व दुःखों से मुक्ति
दादाश्री : वो तो पूर्वजन्म की लेन-देन है, दूसरा कुछ है नहीं, कोई संबंध ही नहीं है। कोई real Father भी नहीं है और कोई real लडका भी नहीं। वो तो सब relative है। real लडका हो तो Father जब मर जाता है, तो लडके को भी उसके साथ जाना चाहिये। मगर कोई जाता नहीं उनके साथ, ये तो सब relative है। सिर्फ हिसाब ही है। उसका थोड़ा दुःख होता है, मगर इतना ज्यादा दु:ख नहीं होना चाहिये।
आप रोते हो तो भगवान को बूरा लगता है। आज रो रहा है, कल रोयेगा, परसो रोयेगा अगर कितना भी रोयेगा तो भी एक दिन रोना तो बंध करना ही पड़ेगा न?! इसमें क्या फायदा? घर में पाँच आदमी इक्टठे होते है, वो सबका हिसाब ही है मात्र। दूसरा कोई संबंध नहीं। व्यापारी और ग्राहक के जैसे संबंध है। दूसरा कोई संबंध है नहीं। ये तो आपने संबंध बनाया है कि, 'ये हमारी mother है। ये हमारी wife है।' वो सब विकल्प है। ये तो खाली adjustment लिया है आपने। सब सब का हिसाब लेने के लिए जमा हुए है। जिसका हिसाब पूरा हो गया, वो चला जाता है। Father भी चले जाते है। सच्चा लडका कभी आपने देखा है? जो मर गया, वो आपका सच्चा लडका था?
प्रश्नकर्ता : भौतिक देह में ऐसे कह सकते है कि वो सच्चा था।
जगत चलता है।
प्रश्नकर्ता : वो ऋणानुबंध क्या है? कैसे होता है?
दादाश्री : आपका और आपके लडके का जो व्यापार चल रहा है, उसमें आप अतिरेक करते हो, इससे फिर ऋणानुबंध शुरु हो जाता है। साधारण व्यवहार हो तो कुछ हर्ज नहीं है। आपने लडके को गाली दिया, तो वो भी तय करता है कि, 'मैं भी उनको मार दें।' इससे सब दूसरे जन्म में इक्टठे होते है और जो दिया था, वो फिर वापस आता है। जो लिया था, वो ही वापस देता है। बस, वो ही धंधा है।
प्रश्नकर्ता : कोई बाईस साल का या चोबीस साल का होकर लडका मर जाये और दुःख पहोंचाकर जाये तो वह कौन से कर्म का फल है?
दादाश्री : ये दुनिया ऐसी है, आप दूसरों को दुःख दोगे तो लोग आपको दुःख देंगे। आप दूसरों को सुख दोगे तो लोग आपको सुख देंगे। ये सब ऐसी ही व्यवहार की बात है। जैसा आप करेंगे, उसका ही बदला मिलता है।
प्रश्नकर्ता : मगर ये तो छोटा बच्चा था, निर्दोष था, मासूम था।
दादाश्री : वो तो आपका जो थोडा हिसाब था, वो complete हो गया। थोडा खर्चा कराने का और दःख देने का भी थोडा हिसाब था। उतना पूरा हो गया, तो फिर वो चला गया। अगर बाईस साल का हो गया फिर मर गया होता तो आपको कितना दुःख होता था?
दादाश्री : वो real लडका नहीं था आपका। अगर real लडका होता तो उसको जब जला दिया, तब तुम भी उसके साथ बैठे होते थे। क्यों नहीं बैठे? वो real नहीं है, वो relative है। सच्चा संबंध नहीं है, relative संबंध है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन उसकी आत्मा चली जाती है फिर अपना उसके साथ संबंध नहीं रहा न?
दादाश्री : हाँ, मगर वह संबंध relative संबंध था और आपके के साथ कुछ हिसाब बाकी था, वो ऋणानुबंध था। और उससे ही सारा
दूसरे आदमी का लडका नहीं मर जाता? जब आपका पौत्र मर जाये तो आपको दु:ख लगता है तो दूसरे का लडका मर जाये तो भी उतना ही दु:ख होना चाहिये। हमें तो समान होना चाहिए न? आपको कैसा लगता है? ये तो अपने खुद के लिए रोता है। दूसरों के लिए आपको कुछ नहीं होता?
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सर्व दुःखों से मुक्ति
सर्व दुःखों से मुक्ति
प्रश्नकर्ता : नहीं, सबके लिए होता है।
दादाश्री : सबका? ये world में सबके लिए आपको ऐसा दुःख होता है? नहीं, आपको सबके लिए ऐसा नहीं होता है। समानता होनी चाहिये। समानता हो जाये तो सब तुम्हारी इच्छा के मुताबिक हो जाये। ऐसी समानता नहीं होती है आपको, इसलिए ऐसा दुःख होता है। समानता चाहिये न? ये तो स्वार्थ की बात है कि ये दूसरे का है, वहाँ आपको समानता नहीं रहती।
ये जो दुनिया के संबंध है, वो तो रिलेटिव संबंध है, रियल नहीं है। All these relatives are temporary adjustments. जो
आँख से देख सकते है, कान से सुन सकते है, वो सब टेम्पररी एडजस्टमेन्ट है और आप परमेनन्ट है । जो relative adjustment है, वो तो temporary ही है। कोई जल्दी जाता है, कोई देरी से, वो भी relative है। सब relative है। उसमें कोई real है, permanent है, ऐसा मान लेना ही नहीं।
तब हमने friend circle को बड़ी पार्टी दी थी। बच्चा भी ऐसा रूपवाला था, beautiful था। सब लोग बोलते था कि हमने जो संतो की सेवा की थी, उसका फल मिला है। देढ साल के बाद वो off हो गया। इधर हमने friend circle को फिर से बड़ी पार्टी दी, जलसा करवाया। सब लोग समझने लगे कि दसरा लडका आ गया। वे सब पूछने लगे। वो पार्टी पूरी होने के बाद हमने बोल दिया कि जो गेस्ट आया था, वो चला गया!!! इसके बदले में मैंने पार्टी दी है। उसके थोडे साल बाद लडकी हो गई। वो भी चली गयी। फिर उसके लिए भी पार्टी दिया!!! क्योंकि मैं जानता हूँ कि कोई आत्मा किसी का लडका हो सकता ही नहीं। वो सिर्फ wrong belief ही है। आपका लडका हो तो उसको तुम एक घंटे खूब गाली दो, मारपीट करो, तो फिर वो क्या बोलेगा?
प्रश्नकर्ता : बाप का मानेगा नहीं।
दादाश्री : नहीं, वो आपके साथ झगडा करेगा और court में चले जायेगा। अपना लडका हो तो ऐसा नहीं करेगा। उसको मार डालो तो भी ऐसा नहीं करेगा। मगर अपना लडका होता नहीं न? सिर्फ wrong belief है और relative view point है। वो real view point नहीं। इधर कोई आदमी मर जाता है तो फिर Father के पीछे उसका लडका कोई मर जाता है क्या?
जितना आपको इनके साथ संबंध था. हिसाब था. उतना हिसाब पूरा हो गया, चूकते हो गया तो वो चला जायेगा। ये तो गेस्ट है सब। अपने घर गेस्ट आते है, वो फिर चले जाते है कि नहीं चले जाते? अच्छा गेस्ट हो तो आप उसको बोले कि 'आप नहीं जाओ, आपके घर को नहीं जाओ, हमारे यहाँ रहो' तो क्या वो रहेगा? नहीं रहेगा। ऐसे ये सब कुदरत के गेस्ट है। आप भी कुदरत के गेस्ट है। कोई किसी का लडका नहीं है। ये सब dramatic है। जैसे drama में लडका होता है, तो वो drama के time तक ही होता है। इस तरह लडका कोई किसी का होता ही नहीं।
प्रश्नकर्ता : नहीं।
दादाश्री: तो ये real बात नहीं है। ये सब relative बात है। आपका लडका हो, उसको एक घंटा गाली दो तो वो एक घंटे में अलग हो जाता है न? और wife के साथ झगडा हो जाये तो? Divorce भी हो जाता है न?
इधर जो belief है, कि मेरे को मकान नहीं है, मेरे को लडका नहीं है, मेरे को लडकी नहीं है, ये सब wrong belief है।
1928 में हमको पहला लडका हुआ था। उसका जन्म हुआ,
प्रश्नकर्ता : हाँ, हो जाता है।
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सर्व दुःखों से मुक्ति
सर्व दुःखों से मुक्ति
बाद में बहुत खुश हो गया। वो लडका फिर वकील को बोलने लगा, 'वकील साहब, एक काम करो तो आपको तीन सौ रूपये ज्यादा दे दूँगा।' वकील ने पूछा, 'क्या काम करना है?' तब लडके ने बताया. मेरे Father की court में थोडी नाककट्टी होनी चाहिये!!! वो वकील ने बोला कि, 'वो तो सरल बात है, हम नाककट्टी करा देंगे।'
बोलिये, अब खुद का लडका कैसा हो सकता है? ये तो ऋणानुबंध है, हिसाब है। हिसाब में कुछ बाकी हो तो जरूर आयेगा और हिसाब नहीं हो, चोपडा (बही) में क्लीयर हो तो कोई नहीं आयेगा!
दादाश्री : फिर ये correct नहीं है, temporary है। मगर temporary भी नहीं पूरा। Temporary भी जो 50 years, 60 years correct होता तो फिर हर्ज नहीं। मगर temporary भी correct नहीं है। ये खाट है, इसके साथ ऐसे आधार रखकर बैठे तो इसका आधार अच्छा है कि हम कभी गीर नहीं जाते। मगर ये जिन्दे आदमी का आधार रखा तो कभी भी गीर जाते है। मगर nature का arrangement ऐसा है कि एक दूसरे के बिना चलता ही नहीं। ऐसा temporary भी थोडे time के लिए रहता है, एकदम चला नहीं जाता। मगर वो खाट भी कोई दफे तो तूट जाती है न? याने ये भी relative है। ये सब adjustment है और वो सब relative है। और ये body के साथ भी अपना relative adjustment है, real adjustment नहीं है। ये body भी एकदम चली नहीं जाती, मगर वो भी real adjustment तो नहीं है।
ये मनुष्य का शरीर है, तो इससे अपना काम कर लेना है। Self realisation कर लो। फिर ये शरीर चला जाये तो कोई हर्ज नहीं। ये काम कर लो। काम नहीं कर लिया तो मनुष्य जन्म ऐसे ही व्यर्थ चला जाता है, waste चला जाता है।
ये जो आपका लडका है, उसका आपके साथ ग्राहक और व्यापारी के जैसा संबंध है। व्यापारी को पैसा नहीं दिया तो माल नहीं देगा और व्यापारी माल अच्छा देगा तो ग्राहक लेगा, ऐसा व्यापारीग्राहक का संबंध है। आप लडके को प्रेम दोगे तो वो भी आपके साथ अच्छा रहेगा, आपको नुकसान नहीं करेगा। उसको तुम गाली दोगे, तो वो भी तुमको मारेगा। ये लडका-लडकी, सच्चे लडका-लडकी नहीं रहते किसी के।
आज के लडके कैसे हैं कि उसको बाप जरा गाली दे, गुस्सा करे तो वो क्या करेंगे? बाप को छोड़कर चले जायेंगे। अरे, Court में दावा भी करेंगे। एक लडका उसके बाप के सामने केस जीत गया।
प्रश्नकर्ता : पत्नी के प्रति फर्ज है, पुत्र के प्रति फर्ज है, वो सब फर्जे तो अदा करनी पड़ेगी न?
दादाश्री : फर्ज याने फरजियात। आप नहीं करो, आपके विचार में नहीं हो तो भी करना पडेगा। वो सब फरजियात है। ___कोई चीज ये दुनिया में voluntary है नहीं। जन्म से मृत्यु तक कोई चीज voluntary नहीं है। वो सब उसको मानते है voluntary है, मगर exactly में ऐसा नहीं है।
प्रश्नकर्ता : तो voluntary क्या है?
दादाश्री : Voluntary है, मगर वो जानते नहीं। Voluntary अंदर है, वो मालूम नहीं है और जो voluntary नहीं है, फरजियात है, उसको वो अपना duty बोलते है।
प्रश्नकर्ता : Society में रहते है, तो ये सब relation maintain करने चाहिये।
दादाश्री : हाँ, संसार में रहना ही चाहिये और औरत के साथ सिनेमा में जाना चाहिये, लडके के साथ बैठना चाहिये, साथ में खाना
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प्रश्नकर्ता : लोग तो ऐसा कहते है कि धर्म ही चाहिये और संसार को छोड देना चाहिये। यह सब है क्या?
पीना चाहिये। मगर सच्ची बात समझकर करनी चाहिये। मगर सच्ची बात क्या है, वो तो समझनी चाहिये न? एक आदमी ने brandy पीया तो वो नाज-नखरे करता है न? ऐसे ये भी सब नाज-नखरे है। और अगर brandy नहीं पीये तो कोई परेशानी नहीं रहती है। ऐसी बात समझ गये तो brandy के जैसी कोई परेशानी नहीं रहती है। सच्ची बात तो समझनी चाहिये न? ऐसी झूठी बात कहाँ तक चलेगी?
दादाश्री : नहीं, धर्म बिना संसार ही नहीं। पहला धर्म चाहिये। किस चीज को धर्म बोलती हो? आपके भाई के साथ आप धर्म रखोगी या अधर्म रखोगी? भाई को गाली देगी?
प्रश्नकर्ता : ये life भौतिक है और भौतिकवाद में कुछ tension होना जरूरी है। tension के बिना तो कुछ नया हो नहीं सकता, कुछ प्राप्ति नहीं कर सकते।
दादाश्री : आप क्या नया करेंगे? क्या नया आविष्कार करेंगे? नयी दुनिया बनायेंगे? जो आविष्कार करते है, उसको tension रहता ही नहीं। जो महेनत करता है, उसको ही tension रहता है। मैं सारी दुनिया में फिरता हूँ मगर मेरे को बिलकुल tension नहीं है।
प्रश्नकर्ता : आपकी stage तो अलग है।
दादाश्री : नहीं, मगर वो realise हो गया तो क्या होता है कि सब संसार का tension नहीं रहता और संसार में सबको बहुत अच्छा प्रेम, सच्चा प्रेम मिलता है। अभी तो आपके पास प्रेम नहीं है, आसक्ति है. इसीलिए तो थोडे थोडे time पर गुस्सा हो जाते हो। ये क्या रीत है? सच्चा प्रेम होना चाहिये। गुस्सा कभी भी नहीं होना चाहिये।
व्यवहार के हिसाबी संबंध में समाधान कैसे?
प्रश्नकर्ता : नहीं।
दादाश्री : क्योंकि गाली देना अधर्म है और गाली नहीं देना, मेरा भाई अच्छा है, ऐसा कहना वो धर्म है। वो धर्म तो होना ही चाहिये। संसार को व्यवहार बोला जाता है। हम व्यवहार में आदर्श रहते है और सारा दिन धर्म में ही रहते है। हम किसी को गाली नहीं देते, किसी का बुरा नहीं करते। हमको कोई पत्थर मारे तो भी हम गाली नहीं देते और आपको कोई पथ्थर मारे, तो आप क्या करोगी?
प्रश्नकर्ता : मैं भी पथ्थर लेकर मारूँगी।
दादाश्री : हमको कोई पथ्थर मारे तो हम गाली नहीं देते और खुदा को बोलते है कि इसको सद् बुद्धि दो। दो नुकसान नहीं होने चाहिये। एक तो पथ्थर लग गया, फिर गाली देकर दूसरा नुकसान क्युं करे!
प्रश्नकर्ता : पहला नुकसान physical और दूसरा spritiual!
दादाश्री : हाँ, जेब काट ली तो पाँच हजार तो गये फिर उसके साथ झगडा क्युं करें? झगडा करने से दोनों नुकसान होते है। एक तो नुकसान हो गया और फिर दूसरा झगडा किया। उससे नींद भी नहीं आयेगी। उसको आशीर्वाद दे दिया तो अपने को नींद आयेगी। ये बात पसंद आयी आपको?! और शादी करेगी, फिर हसबन्ड के साथ कैसे रहेगी?
प्रश्नकर्ता : यह संसार है, उसमें हम घर में रहते है, मोटर- बंगले है, इन सबमें रहते हुए भी, हम धर्म कर सके ऐसा हो सकता है क्या?
दादाश्री : वो धर्म के बिना तो संसार चलता ही नहीं। पहला धर्म चाहिये और संसार उसके साथ रहना चाहिये।
प्रश्नकर्ता : धर्म के साथ।
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सर्व दुःखों से मुक्ति
सर्व दुःखों से मुक्ति
दादाश्री : हाँ, कभी हसबन्ड का दिमाग गर्म हो गया तो हमें शांत रहने का। हसबन्ड दो गाली दे दे तो भी शांत रहने का। हम क्या बोलते है कि 'adjust everywhere.' सास अच्छी न हो तो उसके साथ भी एडजस्ट हो जाना।
प्रश्नकर्ता : चूप हो जाने का?
भी वो उसको निकाल देगा और बोलेगा कि 'ये बड़े आदमी है।' बड़ा आदमी किसको बोलते है? जो गाली देता है उसको?
प्रश्नकर्ता : नहीं, वो तो बहुत छोटा होता है। दादाश्री : जिसमें चारित्रबल है, वो ही बड़ा है।
वाईफ और हसबन्ड का झगडा होता है कि नहीं होता? बहत होता है, तो आपने सोचा नहीं कि हसबन्ड के साथ क्या करुंगी? पहले से सोचा नहीं था?
प्रश्नकर्ता : मैं वो ही सोचती थी कि मैं क्या करूँ।
दादाश्री : चूप नहीं होना, एडजस्ट हो जाना। उसके अंदर खुदा बैठे है, उसको प्रार्थना करना कि 'हे खुदा, उसको अच्छा दिमाग दो, सद् बुद्धि दो।' तो उसको फोन पहुँच जायेगा। खुदा सबके अंदर बैठे है न? और गाली देगी तो बुद्धि अच्छी नहीं रहेगी। हमने बताया ऐसा करेगी तो सास भी खुश हो जायेगी। वो कहेगी, 'ऐसी बहु तो देखी ही नहीं हमने।' वो जो कुछ दुःख हमको देगी, वो तो उसके साथ हमने अधर्म किया था वो ही होगा। तुम फिर से उनके साथ अब अधर्म नहीं करना।
हसबन्ड मुझे कायम के लिए दबा देगा, ऐसा डर मन में नहीं रखना। ऐसे कोई दबा नहीं सकता। हसबन्ड गाली दे और आप एडजस्ट हो गई तो वो आप से डर जायेगा, गभरा जायेगा। तब आप बोलना कि, 'गभराना मत, मैं आपकी हूँ', ऐसा करने से आपका चारित्रबल उत्पन्न होगा। जिसका चारित्रबल है, उससे सब आदमी गभराते है।
प्रश्नकर्ता : ये चाबी मुझे बहुत पसंद आयी।
दादाश्री : हाँ, इससे ही चारित्र उत्पन्न होता है, इससे ही शील उत्पन्न होता है। शील से सामनेवाले पर अपना प्रभाव पड़ता है, सामनेवाला गभराता है।
दादाश्री: हाँ, तो हमने जो बता दिया है. ऐसे रखना। कभी मन में ऐसा नहीं सोचो कि हमको हसबन्ड दबा देगा। हमेशा कोई भी बात आप छोड़ देना। जितना आप छोड़ दोगी, उतना चारित्रबल प्रगट होगा। दूसरी बात यह है कि कभी कोई गाली दे तो उसको आशीर्वाद देना। गाली देनेवाला कितनी गाली देगा? जितना आपका हिसाब है. उतनी ही गाली देगा। उससे ज्यादा गाली नहीं देगा। उसकी भी हद होती है। हसबन्ड के साथ झगडा हुआ तो फिर संसार फ्रेकचर हो जायेगा। फिर दोनों साथ में रहते है मगर मन तूट जाते है। इतनी बात समझ में आ गया तो बहुत हो गया।
गृहस्थी में मतभेद - सोल्युशन कैसे?
कोई आदमी हमें पथ्थर मारे और फिर हमारे पास आये, बोले कि 'मेरी भूल हो गयी।' फिर हम कुछ नहीं करेगा, तो हमारे पास फिर ऐसा कभी नहीं करेगा। कोई दूसरा हमको पथ्थर मारने को आयेगा तो
दादाश्री : आपको कृष्ण भगवान के साथ झगडा नहीं है न? प्रश्नकर्ता : नहीं है।
दादाश्री : कृष्ण भगवान को तीर लगा था, वो मालूम है? तो ये कैसी दुनिया है? और रामचंद्रजी को क्या कुछ कम अड़चने आयी थी?
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सर्व दुःखों से मुक्ति
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सर्व दुःखों से मुक्ति
कभी औरत के साथ क्रोध हो जाता है? प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री : जो अच्छा अच्छा लड्डू देती है खाने को, उनकी साथ भी क्रोध करते हो? उधर तो क्रोध नहीं करना चाहिये। बाहर पुलीसवाले के साथ क्रोध करो तो कोई हर्ज नहीं है। वहाँ क्रोध नहीं करता? वहाँ क्यों control में रहते हो?
प्रश्नकर्ता : वहाँ डर है।
प्रश्नकर्ता : हाँ, उन्हें बनवास जाना पड़ा था और 'सीता, सीता' करके घूम रहे थे।
दादाश्री : बनवास का तो ठीक है। अभी तो ये सब लोग बैठे है न, इन सबको क़ायम का बनवास है। जन्मे वहाँ से ही बनवास है। मगर रामचंद्रजी की पत्नी को तो हरण करके ले गया था। ऐसा ये सबको तो इधर नहीं होता न? कितना आनंद है! ऐसी कोई अड़चन तो आपको नहीं आयी न?
प्रश्नकर्ता : अभी तक तो नहीं आयी।
दादाश्री : आपको औरत के साथ कोई दिन झगडा नहीं हुआ था?
प्रश्नकर्ता : सांसारिक जीवन में होता ही रहता है।
दादाश्री : ऐसा झगडा होता है तो फिर शादी करने का क्या फायदा? एक आदमी हमारे पास आया, वो हमको बोलने लगा कि, 'मेरी औरत ने मुझे मारा।' तो उसका क्या न्याय करने का? आप कहो, आपकी मरजी में क्या न्याय लगता है? औरत को फाँसी पर लगाना चाहिये?
प्रश्नकर्ता : फाँसी पर क्या लगाने का! मर्द और औरत का तो आपस का संजोग है।
दादाश्री : ये पुलीसवाले के पास निडर हो जाव और इधर घर में डरो। जो खाना खिलाती है, सबेरे में चा-नास्ता देती है, वहाँ क्रोध करोगे तो खाने-पीने का सब बिगड जायेगा। वाईफ का धनी हो जाता है?! धनी होने में हर्ज नहीं है मगर धनीपना नहीं करना चाहिये। It is a drama, तो आप drama के धनी हो। The world is the drama itself!
प्रश्नकर्ता : हम गृहस्थ है, हमें लोकाचार का पालन तो करना पडता है।
दादाश्री : लोकाचार भी तुम्हारा अच्छा नहीं है। कभी कभी औरत के साथ मतभेद हो जाता है, Friend के साथ मतभेद हो जाता है न? लोकाचार आदर्श होना चाहिये। हमारे को भी औरत है, मगर वो तो 'पटेल' को है, 'हमारे' को तो कोई औरत नहीं है। ये 'पटेल' को औरत है, मगर एक भी मतभेद उसके साथ नहीं है।
प्रश्नकर्ता : ये कैसे संभव है? मतभेद तो रहेगा ही।
दादाश्री: तो फिर मार खाने का? ऐसी शादी में क्या फायदा कि जहाँ मार भी खाने का?!!! मगर सब लोग शादी करता है न! फिर 'ये मेरी wife, ये मेरी wife' करता है मगर वो पिछले जन्म की wife का क्या हुआ? वो सब पिछले जन्म के लडके का क्या हुआ? वो सब उधर छोडकर आया और ऐसे यहाँ छोडकर आगे जायेगा। क्या ये ही धंधा है? ये puzzle solve तो करना चाहिये न? कहाँ तक ऐसे puzzle में रहोगे?
दादाश्री : मतभेद तो कभी हुआ ही नहीं। वो कभी बोले कि, 'आप ऐसे हो, वैसे हो, भोले हो, लोगों को सब दे देते हो'। तो मैं बोलता हूँ कि, भाई, पहेले से ही मैं ऐसा था, आज से नहीं। फिर कैसे
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सर्व दु:खों से मुक्ति
सर्व दु:खों से मुक्ति
मतभेद होगा? अभी तो ऐसा कुछ बोलती ही नहीं है और हमारा दर्शन करती है।
बीबी से Adjustment की चाबी! प्रश्नकर्ता : अपनी बीबी-बच्चों से adjustment कैसे करना?
दादाश्री : बीबी के साथ कभी झगडा नहीं करने का। बीबी झगडा करे तो हमें बोलने का कि किस लिए झगडा करती हो? इसमें क्या फायदा है? फिर भी वो बोलती है तो बोलने दो, कोई एतराज नहीं।
में वो जागेगी और उसी रूम में मैं जागँगा। इसमें फायदा क्या है? बीबी हमको गाली देगी. मगर बीबी को हम गाली नहीं देगा। बीबी को हम नहीं मारेगा।' मैंने कहा, 'क्यों?' तो कहता है कि, 'बीबी तो हमको सुख देती है। बीबी कितना अच्छा खाना बनाती है, अच्छा मटन भी बनाती है। फिर उसके साथ ही क्युं झगडने का? हम तो पुलीसवाले को मारेगा, बाहरवाले को मारेगा, घर में किसी को नहीं मारेगा।' अपने लोग क्या करते है कि बाहर से मार खाकर आते है और घर में औरत को मारते है।
प्रश्नकर्ता : वो बोलेगी और हम रोकेंगे नहीं तो उसमें ओर खराबी हो जायेगी न?
दादाश्री : उसको क्या मूछे आ जायेगी? वो क्या पुरुष हो जायेगी? ये तो खाली डर है। ये तो डर से जग में झगड़े चलते है। हमने देखा है कि एक जन्म का किसी के हाथ में नहीं है। आप उसको मार-मार करोगे तो भी वो बोलेगी। इसमें आपका भी नुकसान होता है और बीबी का भी नुकसान है। ये सब छोड दो और क्या होता है, क्या हो रहा है, वो 'देखो'। हम सबको क्या बोलते है कि Adjust everywhere!
एक मियांभाई हमारा पहचानवाला था। मैंने उसको बोल दिया कि 'भाई, औरत के साथ ठीक रहता है कि नहीं?' तो कहने लगा कि 'हमारा सब ठीक है।' मैंने पूछा कि 'ये सब को बीबी के साथ झगडा होता है और तुम्हारा कभी झगडा नहीं होता?' तो बोला कि, 'हमको कभी नहीं होता। बीबी के साथ झगडा करके क्या फायदा?' मैंने पूछा कि, 'बीबी किसी दिन गुस्सा नहीं हो जाती?' तो बोलने लगा कि, 'कभी गुस्सा हो जाती है। मगर बीबी के साथ झगडा करने में तो. देखो न. हमारे तो दो ही रूम है, तो इधर झगडा करेगा तो सारी रात जो रूम
औरत तो देवी है। उसके साथ झगडा कैसे हो सकता है? उसका दिमाग गरम हो जाये, तो कोई भी हर्ज नहीं। थोडी देर में दिमाग ठंडा हो जायेगा। फिर समझाना कि 'तुम क्या क्या चाहती हो, हमको एक दफे बोल दो', ऐसे उसको पटाना। आप दुकान में कैसे सबको खुश कर देते हो, वैसे घर में सबको खुश कर देना है।
ये अपनी wife है, ऐसा मत मानो और ये अपने पर चढ़ बैठेगी ऐसा मत मानो। अरे, क्या चढ़ बैठेगी? उसको मूछे नहीं आयेगी, वो
औरत ही रहेगी। एक जन्म में जो तय किया है, वो ही होगा, ऐसा ही करेगा। तो औरत के साथ आराम से रहने का, File का निकाल समभाव से करने का।
एक जन्म की बात आपकी समझ में आ गयी? देखो, हम घर में अकेले हो और बाहर निकलने का हो गया, तो हम दरवाजा खुल्ला नहीं रखेंगे, ताला लगायेंगे। क्युं ऐसा करते है? कि ये जिंदगी में तो कुछ होनेवाला नहीं, मगर वो दरवाजा खुल्ला देखकर दूसरे किसी को विचार आयेगा चोरी करने का। आज तो कुछ नहीं होगा, मगर वो अगले जन्म में चोर हो जायेगा। इसलिए ऐसे दरवाजा खुल्ला नहीं रखने का, ताला लगाकर जाने का।
"ये मेरी औरत है' बोलते है न, वो relative में है। real में
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सर्व दुःखों से मुक्ति
अपने कोई सगे ही नहीं रहते है। बोलते है न कि ये मेरी माँ है, तो वो भी real सगाई नहीं है। ये body के साथ भी real सगाई नहीं है, तो mother के साथ real सगाई कैसे हो सकती है? वो सब relative है।
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Mother के साथ real सगाई हो तो माँ मर जाये, तो उसके दो-चार लड़के हो तो वो भी उसके साथ मर जाते। मगर कोई माँ के साथ नहीं मर जाता न?! वो relative सगाई है। relative याने body का आधार है। ये body भी relative है और उसका आधार भी relative है, real नहीं है। Mother के साथ blood relation है और friend होगा, तो उसके साथ neighbour relation है। मगर सब relation ही है खाली ।
व्यवहार में शंका ? - समाधान विज्ञान से !
कोई आदमी अपने यहाँ आता है और एक दिन हमारे कोट की जेब में से दोसो रुपये ले गया और ये भाई ने देख लिया। मगर दूसरे किसी ने नहीं देखा। ये भाई ने बोल दिया कि ये आदमी आपकी जेब में हाथ डालके कुछ रुपये ले गया। तो मेरी समझ में आ जायेगा कि ये आदमी हमारे दो सो रुपये ले गया। मगर दूसरे दिन फिर हमारे पास आयेगा तो हमको उसके लिए शंका नहीं होगी। ऐसे कितने आदमी को शंका नहीं होगी ?
प्रश्नकर्ता: नहीं, सबको शंका तो हो ही जाएगी।
दादाश्री : तो जब तक शंका है, वहाँ तक आपको ज्ञान नहीं है। ये आदमी आये और कुछ ले जाये, मगर हमको शंका नहीं होगी। कोई ले सकता ही नहीं, ये दुनिया ऐसी है। वो आदमी दूसरी दफे भी ले जायेगा, तो उसका कुछ passport है, उससे ही लेता है। नहीं तो कोई कुछ भी ले सकता ही नहीं। ये दुनिया में किसी के हाथ में ड जाने की खुद की शक्ति नहीं है। All are tops !! जो खुद की शक्ति
सर्व दुःखों से मुक्ति
है, वो उसको मालूम नहीं है। हम निःशंक है, कौनसे आधार से ये करता है, वो हम जानते है । कोई आदमी कुछ भी ले सकता है तो उसके पीछे कुछ आधार है। नहीं तो कोई आदमी कुछ ले सकता ही नहीं। वो आधार जिसको मालूम हो गया, फिर उसको क्या परेशानी? उसको किसी के साथ झगडा करने की जरूरत ही नहीं है। आपको अभी थोडी शंका हो जाती है? पूरे निःशंक नहीं हो जाये, तब तक शंका हो जायेगी।
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ये world में किसी से कोई चीज हो सकती ही नहीं। क्योंकि this is a result. जन्म हुआ, वहाँ से last station तक result ही है खाली । परीक्षा अंदर हो रही है, मगर उसको मालूम नहीं है। जब result आता है तो झगडा करता है, कि ये आदमी हमारा पैसा ले गया। इससे संसार खड़ा है। सच्ची द्रष्टि नहीं है, इससे सब दुःख है।
कोई आदमी कुछ भी कर सकता ही नहीं। जो आगे से type हो गया है वो ही बात है इसमें। हमारे को किसी के साथ मतभेद नहीं है। कोई रुपये ले जाये, उसके साथ भी मतभेद नहीं है। वो आदमी फिर आये तो हम उसको बोलेंगे, 'आओ, बैठो !' ऐसा नहीं बोलेंगे तो हमको उसके साथ द्वेष हो जायेगा और हमारी समाधि चली जायेगी। जिधर द्वेष है, वहाँ समाधि नहीं है। मगर हमको निरंतर समाधि रहती है। ऐसा 'अक्रम विज्ञान' आज खुल्ला हुआ है। ये world क्या चीज है? कैसे चल रहा है? कौन चलाता है? वो दोसो रुपये ले गया है, वो कैसे ले गया? वो सब चाबी हमारे पास है। क्योंकि ये विज्ञान सर्व समाधानी विज्ञान है। सर्व समाधानी याने at any place, at any time, at any संयोग। सांप आये, बड़े लूटेरे आये, तो भी ये विज्ञान वहाँ समाधान देता है।
पिछले जन्म की पत्नी का क्या?
प्रश्नकर्ता : ये भाई गृहस्थी में ब्रह्मचारी है, 'सात प्रतिमा' है
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सर्व दुःखों से मुक्ति
सर्व दुःखों से मुक्ति
(ब्रह्मचर्यव्रतधारी), लेकिन उनका दुःख ऐसा है कि मेरे मरने के बाद पत्नी का क्या होगा, इसकी बड़ी चिंता है। आप इनका समाधान करवाईए।
दादाश्री : वो पिछले जन्म की पत्नी का क्या हुआ है?
प्रश्नकर्ता : पिछले जन्म का क्या मालूम?
दादाश्री : तो फिर किस लिए चिंता करते हो? वो आपकी पत्नी कैसे है? वो तो सब व्यवहार से है। वो कर्म के उदय से है। जहाँ तक उसने divorce नहीं लिया, वहाँ तक आपकी पत्नी है और divorce ले ले तो?!
वो तो लकडी लेकर मारता, सब कुछ कर सकता। Mental का क्या गुनाह? कोई गुनाह नहीं न!
एक बैल खडा है उधर, तो हर एक को आप पूछेगे कि क्या दिखता है उधर? तो कोई बोलेगा कि बैल दिखता है। कोई बोलेगा, हमको गाय दिखती है। कोई बोलेगा. हमको धोडा दिखता है। जिसकी जैसी द्रष्टि पहुँचे, वेसा वो बोलेगा। द्रष्टि नहीं पहुँचे तो फिर क्या करेगा? फिर बोलेगा. हमको गध्धा दिखता है। तो क्या बुरा मानने का? क्या हमें उस पर गुस्सा हो जाने का कि बैल है और तुम क्यों गध्धा बोलते हो? उसको दिखता नहीं, फिर उसका क्या गुनाह है बेचारे का? ऐसी ही सब भूल है दुनिया में। सच्चा दिखता नहीं, इसलिए भूल होती है।
कोई आदमी हमको बोले कि तुम गधे हो, तो हम समझ जायेगा कि वो बात सच्ची है। उसको जैसा दिखता है, ऐसा ही बोलता है। उसको मार मार के उसका view point बदलवाना ये अच्छा नहीं है। उसको समझाकर view point बदलवा सकते है। जैसा जिसका view point है, ऐसा ही वो करता है। कुत्ता, गध्धा, सभी जीव और सभी आदमी भी जिसका जो view point है, ऐसा ही करते है। ___ प्रश्नकर्ता : ये दूसरी योनि में से मनुष्य में वापस आ सकते है
प्रश्नकर्ता : यं तो divorce जैसा ही है। ब्रह्मचर्य का मतलब ही यह है कि पति-पत्नी का संबंध ही नहीं है।
दादाश्री : ब्रह्मचर्यवाला पत्नी की परवाह नहीं करता। आप खुद की परवाह कर लो। जहाँ तक पत्नी अपने साथ है, वहाँ तक उसकी सेवा करना, दूसरों की भी सेवा करना। वो तुम्हारे पीछे क्या हो जायेगा वो क्या मालूम? आपका 'वहाँ' जाकर क्या हो जायेगा वो भी क्या मालूम? आपके पास कोई certificate है कि वहाँ जायेगा तो कछ स्थान मिलेगा? और औरत को पूछेगे तो औरत ना बोलती है कि 'तुम हमारी फिकर मत करो।' आप खुद ही ऐसा करते हो। ब्रह्मचारी ऐसा नहीं होना चाहिये।
View Point का मतभेद - उपाय क्या?
क्या?
ये वर्ल्ड Mental Hospital हो गया है। हमको कोई बोलता है कि 'आप Mental है। तो हम बोलते है, 'भाई, तुम्हारी बात सच्ची है। तुमने हमको बताया, वो भी तुम्हारा उपकार है।' आप Mental है, इतना शब्द बोलकर छोड दिया, वो तो हम पर कितना उपकार किया। नहीं तो दूसरा तो Mental इतने शब्द से ही नहीं छोड देता,
दादाश्री : वो सब दूसरी योनि में से ही इधर आते है। पशु में से कुत्ता, गध्धा वो सब इधर ही आते है। ३२% से गध्धा होता है और ३३% से मनुष्य होता है। ३३% से पास होता है।
प्रश्नकर्ता : मनुष्य के सिवा दूसरे जो प्राणी है, वह प्रामाणिक है। उनकी योनि में भी बहुत अच्छे गुण है।
दादाश्री : हाँ। उनके Percent अच्छे रहते है। जो ३२% से नापास हुआ हो वो मनुष्य जैसा ही दिखता है और ३३% से पास हुआ
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सर्व दुःखों से मुक्ति
सर्व दुःखों से मुक्ति
दो ही गाली क्यं देता है? तीन क्यं नहीं देता है? एक क्यं नहीं देता है? आप फिर बोलेंगे कि 'भाई, दो गाली दिया, अभी और दूसरी दो गाली दे दो। तो वो बोलेगा कि क्या हम नालायक आदमी है? हम गाली नहीं देगा। गाली देना भी उसके हाथ में नहीं है। आपका हिसाब है, उतना ही मिलेगा। अगर आपको व्यापार चालु रखने का हो तो आप फिर से गाली दो और बंध करने का है तो गाली मत दो।
हो, वो मनुष्य में होते हुए भी जानवर जैसा दिखता है। ३३% से पासवाला तुमने देखा है कि नहीं देखा?
प्रश्नकर्ता : देखा है।
दादाश्री : उनके साथ झगडा मत करो। जो ३३% से पास हुआ है, उसके साथ क्या झगडा करना?! जो ५०% से पास हुआ है, उसके साथ झगडा करो न!
प्रश्नकर्ता : जहाँ देखो वहाँ लोग स्वार्थी ही दिखाई देते है, ऐसा क्यों?
दादाश्री : कभी स्वार्थी आदमी तमने कोई देखा है? हम अकेले ही स्वार्थी है!!! क्योंकि हम 'स्व' के अर्थ के लिए जीते है। आप जिसको स्वार्थी कहते है, वो स्वार्थ तो भ्रांति का स्वार्थ है याने स्वार्थ नहीं, परार्थ है। परायों के लिए सच्चा-जूठा करता है, दखलबाजी करता है और अपार दुःख सहन करता है। वो सब परार्थी है। परार्थी तो खुद का स्वार्थ बिगाड़ता है।
प्रश्नकर्ता : भगवान का न्याय और जगत का न्याय ये अलग है क्या?
संसार - अपनी ही दख़लों का प्रतिसाद!
प्रश्नकर्ता : आपने कहा है कि कोई जीव दूसरे किसी जीव में दखल नहीं देता है, वह कैसे?
दादाश्री : वर्ल्ड में दख़ल करनेवाला कोई जीव है ही नहीं। वो जो दख़ल करता है, वो तुम्हारी दख़ल का प्रतिसाद है। तुम्हारी समझ में आ गया न?
प्रश्नकर्ता : नहीं, नहीं, और ज्यादा समझाईए!
दादाश्री : हमने कुछ दख़ल नहीं की है, तो हमको कोई दखल नहीं करता। वो तुमको जो दख़ल करता है, वो तुम्हारा आगे के जन्म का हिसाब है। आपको किसी ने दो गाली दिया, तो आप सोचना कि
दादाश्री : दोनों अलग है। जगत का न्याय भ्रांति से होता है। ये सब भ्रांतिवाले न्यायाधीश है और भगवान का न्याय शुद्ध है। जैसा है वैसा ही न्याय करते है। दोनों न्याय अलग है।
जगत का न्याय तो क्या बोलेगा कि, जिसने जेब काट ली, उसकी भूल है और भगवान का न्याय बोलता है कि जिसकी जेब कट गयी, उसकी भूल है। भगवान का सरल न्याय है। दरअसल न्याय!! एक सेकन्ड भी ये जगत न्याय बिना नहीं रहता है। जैसा है वैसा' ही न्याय देता है। तुमको दखल करनेवाला कोई वर्ल्ड में नहीं है। तुम्हारी दखल एक अवतार बंध हो जायेगी, फिर कोई दखल करनेवाला नहीं है। सारे बम्बई में गुंडागर्दी चलती है, मगर आपको कोई हाथ नहीं लगायेगा।
प्रश्नकर्ता : यह दखल बंध कैसे करने की?
दादाश्री : कोई गुंडा तुम्हारी होटल में आ गया, उसको तुमने झगडा करके निकाल दिया। बाद में तम 'दादा भगवान' को नमस्कार कर के बोलना कि, 'हे भगवान! मुझे ऐसा नहीं करने का विचार था, मगर मुझे करना ही पड़ा', तो ऐसे हमारे सामने आलोचना- प्रतिक्रमणप्रत्याख्यान वहाँ घर पर बैठकर भी याद करके करेगा, तो तुम्हारी दखल पूरी हो जायेगी।
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सर्व दु:खों से मुक्ति
सर्व दुःखों से मुक्ति
दादाश्री : आप मानते है ऐसा नहीं, सारी दुनिया मानती है। मगर आप सोचेंगे तो आपको खयाल में आ जायेगा कि इसका गुनाह नहीं
प्रश्नकर्ता : चोर का गुनाह तो अभी नहीं है, लेकिन जब पकडा जाता है, तब गुनाह क्यों हो जाता है?
दादाश्री : नहीं, वो टाईम तो उसका गुनाह पकडा गया। तुमने चोरी पहले किया था, तो आज आप पकडे गये। ऐसा उसने चोरी आज किया मगर पुलीस ने पकडा तब उसका गुनाह पकडा जायेगा। 'भुगते उसी की भूल', जो भुगतता है उसी की ही भूल है।
प्रश्नकर्ता : फिर भी कभी कभी ऐसा लगता है, यह संसार में बहुत बड़ा अन्याय होता है।
क्या करने का समझ गया न? देखो एसा बोलने का, 'हे दादा भगवान, हमने गुंड़े को बहुत मार दिया। हमको पश्चाताप होता है। उसका मैं माँफी माँगता हूँ, फिर ऐसा नहीं कहुँगा' ऐसे बोलेगा तो बहुत हो गया।
आपकी दख़ल फिर कब हो जायेगी कि जब गुंड़े को आपने मार दिया और पीछे तुम बोलोगे कि गुंड़े को तो मारना ही चाहिये। तो ये दखल हो गई। तुम्हारा अभिप्राय फीट हो गया कि मारना ही चाहिये। तो दख़ल चालु रहेगी और अगर तुम्हारा ओपिनियन ऐसा फीट हो गया कि मारना नहीं चाहिये और ऊपर से प्रतिक्रमण किया तो तुम्हारी दखल बंध हो जायेगी।
ये सब वीतराग भगवान की बात है। चोबीस तीर्थंकरों की बात है। कितनी अच्छी ये बात है!!!
__ आपकी जेब जो काटता है, वो सचमुच गुनेगार नहीं है। वो तो निमित्त है। वो गुनाह आपका है। आपके गुनाह का फल आपको मिलने का हुआ, तब वो निमित्त मिला है। उसका कोई गुनाह नहीं है। आज आपके गुनाह से वो निमित्त आ गया है। वो काटनेवाला तो अभी इधर से पैसा काटके ले गया। उसको तो बहुत आनंद है, होटल में जायेगा, खाना खायेगा। दु:ख किसको होता है? जिसको दुःख है उसका ही गुनाह है और वो आदमी जब पोलीस के हाथ में पकडा जायेगा, तब वो उसका गुनाह पकडा जायेगा। आज आपको दःख होता है, तो आपका गुनाह पकडा गया। ऐसा हरेक मामले में है। आपको कोई गाली दे तो वो गनाह आपका है, गाली देनेवाले का नहीं। सब लोग क्या मानते है कि ये गाली देता है, इसका ही गुनाह है। चोरने जेब काटी तो चोर ही गुनहगार है ऐसा बोलते है न सब लोग?!
दादाश्री : ये संसार में कभी अन्याय नहीं होता। जो भी कुछ होता है, वो न्याय ही होता है। हरेक जीव अपना खुद का whole and sole responsible है। दूसरा कोई इसमें दखलबाजी करता नहीं है। दूसरा कोई जो कुछ करता है, वो निमित्त है। कोई किसी को कुछ कर सकनेवाला ही नहीं है। मगर अपनी भूल से वो निमित्त होता है। जिसकी भूल नहीं, उसको निमित्त नहीं मिलता। महावीर को कोई निमित्त नहीं था। क्योंकि उनकी भूल पूरी हो गयी थी। भूल थी वहाँ तक उनके निमित्त थे और वहाँ तक उनको उपसर्ग भी आये थे। किसी भी जीव को कुछ भी दुःख नहीं देना चाहिये। कोई अपने को दु:ख दे तो सहन कर लेना चाहिये। किसी को दुःख देने से बहुत responsibility आती है।
कितने नुकसान झेलोगे? एक या दो? तुम्हारी जेब काट ली और पचास हजार चले जाये फिर तुम चोर को गाली देता है मगर वो रूपये फिर वापस आते है कि नहीं?
प्रश्नकर्ता : अभी तक तो मैं भी वो ही मानता था कि गनहगार चोर ही है।
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सर्व दुःखों से मुक्ति
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सर्व दुःखों से मुक्ति
प्रश्नकर्ता : नहीं आयेंगे।
दादाश्री : नहीं? तो तुम एक घाटे में दो नुकसान झेलते हो। एक घाटा तो निर्माण हुआ थी और आप दूसरा भी खाते हो। किसी को एक ही लडका होवो मर जाये तो वो लडका तो गया, वो एक घाटा तो हुआ और पीछे रोता है, सर फोड़ता है, कितना दु:खी होता है मगर लडका फिर वापस आता है? घर के सभी आदमी रोने लगे तो भी वापस नहीं आता? ऐसे सभी लोग दो नुकसान झेलते है।
पाँच लाख का मकान हो, वो 'मेरा मकान, मेरा मकान' बोलता है मगर मकान जल जाये तो कितना दु:ख होता है? मकान जल गया वो एक नुकसान है, फिर रोता है वो दूसरा नुकसान है।
पाँच लाख का मकान हो और बनाने के बाद जल गया तो दु:ख होता है। कितना दु:ख होता है? पाँच लाख के हिसाब में दुःख होता है। वह मकान बेच दिया, दस दिन जाने के बाद वह मकान जल गया तो? उसके पाँच लाख रूपये ले लिये, फिर मकान जल गया तो क्या होगा?
प्रश्नकर्ता : तब कुछ नहीं, अभी अपना क्या?
दादाश्री : वो पाँच लाख रूपये अपने घर लाये, वो सब रूपये चोरी हो गये, फिर दूसरे दिन मकान जल जाये तो? तो भी असर नहीं होती न? पाँच लाख रुपये उसके हाथ में नहीं रहे, मकान बेच दिया था, फिर मकान जल गया मगर उसको कुछ असर नहीं होती, क्यों? वो ममता दुःख देती है। तुमको ममता है? ये घडी तुम्हारी है, उसकी ममता तुमको है? ऐसी कितनी सारी चीजों में तुम्हारी ममता है? ऐसी सब चीजों लिख लिया, list बना दे तो कितने कागज होंगे?
प्रश्नकर्ता : बोल नहीं सकते कि कितने कागज हो जायेंगे? दादाश्री : और जब मरने की तैयारी होती है, तब ये सब इधर
ही छोडकर जाने का। तो दुःख कौन देता है? सब जगह पर ममता किया वही दुःख देती है। मगर तुम पहले से जानते नहीं कि ये सब छोड़ के जाने का है? अपने Father भी छोडकर चले गये थे, वो आप जानते नहीं है?
प्रश्नकर्ता : फिर भी आँख से दिखता है, वो मिथ्या कैसे माने?
दादाश्री: जब experience हो जाता है, तब मिथ्या मालूम हो जाता है। अभी एक लडके ने शादी किया तो उसकी wife आयी, वो मिथ्या नहीं लगती है। वो सत्य ही लगता है। और छह महिने के बाद diverce दिया फिर? तो मिथ्या हो गया। मगर experience नहीं हुआ, वहाँ तक मिथ्या नहीं लगता। आँख से दिखता है, बुद्धि से समझ में आता है, वो सब मिथ्या है। आँख से जो दिखता है वो सब भ्रांति है. सच्ची बात नहीं है। जैसा एक आदमी ने दारू पीया, खूब दारू पीया, फिर बोलता है, वो दारू के नशे में बोलता है। ऐसे ये सब लोग भी नशे में ही बात करता है। मोह के नशे में है। मोह का दारू बहुत भारी है, ये सब लोग सारा दिन मोह के दारू में ही घूमते है।
ये wife को 'मेरी है, मेरी है' करता है, मगर जब उसके साथ एक घंटा झगडा हो जाये फिर? फिर क्या होता है? divorce. और बाप-बेटे का एक घंटा झगडा हो गया तो? तो दोनों Court में चले जायेंगे। ऐसा ये सब मिथ्या है। मिथ्या सत्य कैसे हो जायेगा? कभी नहीं होगा। All these relatives are only temporary adjustment, not permanent adjustment ! this permanent adjustment तुमने देखा? नहीं? सब temporary? क्योंकि ये देह भी temporary है, तो वो temporary में से permanent कहाँ से हो जायेगा? और आप खुद आत्मा है, वो permanent है। उसका realise हो जाये तो फिर permanent का अनुभव होता है। फिर ये मोह चला जाता है, निरंतर permanent सुख, निरंतर परमानंद ही रहता है।
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सर्व दुःखों से मुक्ति
सर्व दुःखों से मुक्ति
निमित्त को निमित्त समझे, तो? एक आदमी जानबूझकर पथ्थर मारता है और दूसरा बन्दर है, वो आपके उपर पथ्थर गीराता है। वो पथ्थर आपको बहुत जोर से लग जाता है। दोनों के उपर आपका भाव बिगडता है. दोनों के उपर आपको गुस्सा आता है? आपने देखा कि ये तो बन्दर है, तो आप क्या करते है?
प्रश्नकर्ता : उसे भगा देते है। दादाश्री : मगर बहुत गुस्सा क्यों नहीं किया उस पर? प्रश्नकर्ता : कुछ purposely तो नहीं किया है उसने। दादाश्री : और वो आदमी जानबूझकर पथ्थर मारता है तो? प्रश्नकर्ता : वहाँ गुस्सा आ जाता है।
दादाश्री : वो जो पथ्थर मारता है न, वो सभी बन्दर की तरह ही है। आपको वो खयाल नहीं है। आपको लगता है कि वो जानबूझकर मारता है मगर ऐसा नहीं है। वो भी बन्दर की तरह ही है। हम देखते है कि सब बंदर की तरह ही है। इतना समझ गये तो कितनी गलती कम हो जायेगी?!
___ जहाँ झगडा है, वहाँ पशुता है। भगवान ने क्या बोला है कि तुमको दो गाली तुम्हारी पाडोशी दे, तो वो देता ही नहीं। बन्दर पथ्थर मारता है, उस तरह समझ जाने का है। वो तुम्हारे ही कर्म का फल मिलता है और वो तो निमित्त है। तुम्हारे को गाली पसंद हो तो फिर आप व्यापार करना। उसको तीन गाली दोगे तो तीन गाली वापस आयेगी। पाँच गाली दोगे तो फिर पाँच आयेगी। जितनी गाली दोगे उतनी ही वापस आयेगी। एक दफे कुछ भी नहीं बोला तो ये तुम्हारा खाता पूरा हो गया। मोक्ष में जाना है, तो सब खाते बंध तो करने पड़ेंगे न?
कोई भी आदमी नुकसान करे तो वो निमित्त ही है और निमित्त को मारने से क्या फायदा?
ये जन्म का नहीं होगा तो पिछले जन्म का है। ये दुनिया ऐसी है। नयी कोई चीज मिलेगी नहीं। जो दिया है वो ही मिलेगा। तुमको पसंद नहीं हो तो फिर मत दो। पसंद हो तो ही दो। वही धर्म समझने का है। ऐसा धर्म समझ के आगे कभी साक्षात्कार के संजोग मिलते है। मगर धर्म ही समझे नहीं तो फिर क्या करे? पाशवता ही हो जाये। पडौशी के साथ झगडा करता है, लड़ाई करता है, ये क्या मानवता है?
प्रश्नकर्ता : व्यवहार में कभी कभी करना पडता है।
दादाश्री : व्यवहार में जो करना पडे, वो न्याय से होना चाहिये। व्यवहार में कोई हर्ज नहीं, न्याय से होना चाहिये। न्याय के बाहर नहीं होना चाहिये।
कुदरत का दरअसल न्याय! प्रश्नकर्ता : जिस आदमी में Heart की purity रहती है, वह अच्छा है, प्रामाणिक है, फिर भी उसे संसार में promotion क्यों नहीं मिलता?
दादाश्री : नहीं, वो Promotion तो नहीं मिले मगर उनको खाना भी नहीं मिले, क्योंकि वो प्रारब्ध के हाथ में है। खाना मिलना, Promotion मिलना, वो सब प्रारब्ध के हाथ में है।
प्रश्नकर्ता : वह प्रारब्ध कौन लिखता है?
दादाश्री : कोई लिखनेवाला नहीं है। वो ऐसे ही लिखा जाता है, जैसे machine चलता है न? ऐसे ही चलता है।
प्रश्नकर्ता : अपने प्रारब्ध में ऐसे दु:ख भुगतने का क्यों आता है? इसमें भूल कहाँ होती है?
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सर्व दुःखों से मुक्ति
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सर्व दुःखों से मुक्ति
दादाश्री : दूसरे को दुःख देने का भाव किया, उसका फल दुःख ही आयेगा और दूसरे को सुख देने का भाव किया तो उसका फल सुख ही आयेगा।
प्रश्नकर्ता : मगर हम सुख देने का भाव करते है, फिर भी ऐसा तो होता नहीं।
प्रश्नकर्ता : एक बेटा दारू पीकर आता है और घर में आने के बाद अपने माँ-बाप को मारता है, तो उसमें भूल किसकी है?
दादाश्री : माँ-बाप की। जो मार खाता है, उसकी ही भूल है। दूसरे माँ-बाप को क्यों मार नहीं पडता? इसको क्यों मारता है? वो माँबाप की भूल है।
प्रश्नकर्ता : तो माँ-बाप ने मार नहीं खाना फिर?
दादाश्री : मार नहीं खायेगा तो क्या करेगा?
दादाश्री : नहीं, ये पीछे जो भाव हो गये थे, उसका फल ये भव में मिलता है और अभी नये भाव करते है, वो आगे के भव में फल आयेगा, इस भव में नहीं आयेगा। पीछे जो भाव किये थे, उसका फल तैयार हो गया और फल परिपक्व होके बाद में मिलता है।
प्रश्नकर्ता : तो पिछले भव के कर्म के फल से आज कोई आदमी चोरी करता है, तो उसको आगे के जन्म में कुछ बिगडे नहीं, ऐसा हो सकता है?
दादाश्री : हाँ, चोरी करने के बाद वो बहुत पश्चाताप करे कि, 'मैंने बहुत खराब किया, ऐसा नहीं करना चाहिये।' तो आगे के भव के लिए बहुत अच्छा होगा।
प्रश्नकर्ता : पश्चाताप तो मन का है न? दादाश्री : हाँ, बस ऐसा पश्चाताप हो गया, तो बहुत हो गया। प्रश्नकर्ता : लेकिन उसे जेल में भी तो जाना पड़े न? दादाश्री : वो जेल में गया, वो तो चोरी किया उसका फल मिला।
प्रश्नकर्ता : ऐसे फल मिलने से उसका समाज में जो मान है, इज्जत है, वो तो चले जायेंगे न?
दादाश्री : हाँ, समाज में चोरी किया, तो समाज में मान रहता ही नहीं।
प्रश्नकर्ता : अगर कुछ कर सकता है तो मार नहीं खाना न !
दादाश्री: मार नहीं खायेगा, तो क्या करेगा? वो मार ही मारेगा। वो दारू पीयेगा, सब कुछ करेगा और पीने के पानी के अन्दर ज़हर भी डाल देगा और तुम सबको मार डालेगा।
प्रश्नकर्ता : तो इसमें बाप का क्या गुनाह है? दादाश्री : माँ-बाप का बहुत ही गुनाह है। प्रश्नकर्ता : कैसे?
दादाश्री : वो पूर्वजन्म का हिसाब है। देखो, मैं तुमको समझाता हूँ। किसी ने आपकी जेब काट ली और पाँच हजार लेकर भाग गया
और वो फिर आप के हाथ में नहीं आया। सब लोग क्या बोलेंगे कि 'जो भाग गया उसकी भूल है।' आप तो यहाँ रोते है। कौन रोता है? जिसकी भूल है, वो ही रोता है। चोर तो अभी मोज कर रहा है, वो जब पकडा जायेगा तब रोयेगा, तब उसकी भूल है। आज तो जो रोता है, वो ही पकडा गया है। ये तो 'भुगतता है उसी की भूल'। ऐसा ये फाधर-मधर आज पकडे गये है।
आपकी होटेल में कोई आदमी ने १०० रूपये का चाय-नास्ता
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सर्व दुःखों से मुक्ति
सर्व दुःखों से मुक्ति
किया और रूपये आपको नहीं दिये, तो वो आपकी भूल है, उसकी भूल नहीं है। आप आज पकडे गये। इसलिए उसको गाली मत दो। भगवान ऐसा बोलते है कि आपकी भूल से ही वो आपको मिल गया। वो तो आपके १०० रूपये का नुकसान करने के लिए निमित्त है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, अभी ये संसार में हम रहते है तो ऐसा हर बार छोड देने से काम कैसे चलेगा?
दादाश्री : नहीं चलेगा तो फिर क्या करोगे तुम?
प्रश्नकर्ता : देखिए, हमारी होटेल है। उसमें झगडे करनेवाले लोग भी आते है। अगर उनको रोकेंगे नहीं, तो वो हमेशा झगडे करते ही रहेंगे।
दादाश्री : उनको तो रोकना ही चाहिये। रोकने में कोई हर्ज नहीं है। मगर जिसने मार खाया उसकी भूल है। आपको मार दिया तो आपकी भूल है। जो सहन(बर्दाश्त) करता है, उसकी भूल है।
प्रश्नकर्ता : तो फिर सहनशीलता कितनी हद तक आदमी को रखनी चाहिये?
दादाश्री : सहनशीलता रखने की जरूरत ही नहीं। सहनशीलता ज्यादा रखेंगे तो spring की तरह ऊछलेगी और झगडे हो जायेंगे। सहनशीलता कायदेसर (नियमानुसार) नहीं है।
प्रश्नकर्ता : इसका मतलब यह कि कर्म तो करते ही जाना?
दादाश्री : कर्म तो करना ही है। कोई गुंडा आये तो बोलने का कि 'हम तुमको मार देगा।' 'हम मार खायें' ऐसा नहीं करने का। लेकिन उसके सामने हो गये, फिर जिसने मार खाया उसकी भूल है।
एक आदमी स्कूटर पर जाता है और सामने से एक कार टकरा गई और इसका पाँव तोड दिया, तो वहाँ पर किसकी भूल है? जिसका
पाँव तूट गया उसकी भूल है। कारवाला तो जब पकडा जायेगा तब उसकी भूल है। मगर स्कूटरवाले को उसकी भूल हो गयी थी, उसका फल मिल गया।
प्रश्नकर्ता : लेकिन उसकी भूल कैसे, दादाजी?
दादाश्री : पूर्वभव की भूल है, आज उसको फल मिल गया। वो सबको क्यों नहीं मिलता? ये हिसाब है। ये सब आपको मिला है, हम आपको मिले है, ये पूर्वभव का हिसाब है। आपको कुछ समाधान हुआ क्या?
प्रश्नकर्ता : हाँ, हो गया।
दादाश्री : ये मच्छर है वो कभी दंश लगाता है, तो आदमी क्या करता है? उसको मार देता है। वो 'बबूल का शूल' होता है और ऐसा रास्ते में पड़ा है और आप बिना चप्पल चलते है, तो वो पाँव ऐसा उसके उपर आ गया तो पाँव में लग गया, तो उसके लिए कौन गुनहगार है? वहाँ पर तो मच्छर गुनहगार है, इसके लिए उसको मार दिया लेकिन इधर वो शूल पाँव के अंदर चली गयी, वहाँ कौन गुनहगार है?
प्रश्नकर्ता : हम खुद ही गुनहगार है।
दादाश्री : हाँ, ऐसे ही है। आपकी ही भूल है। जो कोई आपको दु:ख देता है वो सब आपकी भूल से ही देता है और सुख देता है वो भी आपने जो सुख दिया है, तो सुख आता है। आपकी कुछ भूल है, इसलिए दु:ख है। हमको कोई द:ख नहीं है, क्योंकि हमारी कोई भूल नहीं है।
अपनी भूल से छूटना कैसे? दूसरे को कोई अड़चन नहीं हो ऐसा होना चाहिये और अपनी भूल से किसी को परेशानी हो गई तो क्या करने का कि उसके अंदर
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सर्व दुःखों से मुक्ति
शुद्धात्मा भगवान है, उनके पास माफी माँगने का कि, 'हे शुद्धात्मा भगवान, आज मेरे से दो आदमी को बहुत परेशानी हो गई, बहुत नुकसान हो गया। हे भगवान, उसकी हम माफी माँगता हूँ, मेरी इच्छा नहीं थी, फिर भी ऐसा हो गया है, मुझे माफ करो। फिर कभी ऐसा नहीं करूँगा। ऐसा नहीं होना चाहिये।' ऐसा आप भगवान के पास बोलो। क्योंकि दुनिया में सभी जीवमात्र के अंदर भगवान बैठे है। सभी देहधारी के अंदर शुद्धचेतन रुप बैठे है। भगवान ये नोंध (नोट) करते है कि 'रविन्द्र ने ये बुरा किया, इसको नुकसान किया' और फिर इसका आपको फल मिलता है। रोज सुबह में ऐसा बोलने का कि 'हमारे से कोई जीव को किंचित्मात्र दुःख न हो' । ऐसी भावना करके बाहर निकलने का । इतना करेगा? तो कल से ही चालू कर देना। फिर किसी को दुःख हो गया तो, 'हे शुद्धात्मा भगवान, ये इतनी मेरी गलती हो गई, मुझे माफ कर दो, फिर गलती नहीं करेंगे।' इतना ही बोलने का, दूसरा कुछ नहीं बोलने का । बाहर मूर्ति के पास जाना- नहीं जाना, वो तो आपकी मरजी की बात है, मगर सच्चा भगवान तो अंदर ही है।
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प्रश्नकर्ता: समझ लो मेरे से गलती नहीं हुई है, तो ?
दादाश्री : सारा दिन गलती ही होती है। आपकी कितनी गलती होती है, मालूम है? रोज की पाँच हजार गलतीयाँ होती है लेकिन आपको गलती का पता ही नहीं है। क्योंकि गलती की तलाश कैसे करते हो ? गलती तो, इतनी बड़ी बड़ी गलतीयाँ है, बहुत गलतीयाँ है। किसी के साथ गुस्सा हो गया, किसी की कोई चीज लेने का भाव हो गया, व्यापार में कपट करके ज्यादा ले लेने का विचार हो गया, ऐसा विचार भी हो तो भी गलती है और उसकी भगवान के पास माफी माँग लेने की।
ऐसी गलती होती है कि नहीं होती है? प्रश्नकर्ता: हाँ, ऐसी गलती तो करता हूँ।
सर्व दुःखों से मुक्ति
दादाश्री : आप तो कोई कोई बड़ी गलती देख सकते है, मगर आज से आप ज्यादा देखोगे। जब हम आत्मसाक्षात्कार करा देंगे फिर बहुत दिखेगा, सूक्ष्म भी दिखेगा। और जितनी गलतीयाँ देखोगे, उतनी गलती की माफी माँग लो, तो वो गलती चली जायेगी, खतम हो जायेगी। बस वो ही धर्म है, चोबीश तीर्थंकरों का बाकी, शास्त्र तो एक आदमी के लिए नहीं लिखे है, सबके लिए लिखे है । उसमें जो लिखा है, वो सब चीज आपके लिए नहीं है। आपको जिसकी जरूरत है, उतनी ही बात आपके लिए है। आपको क्या जरूरत है, आपकी प्रकृति को क्या अनुकूल है, वो ही बात ले लेने की है। दूसरी सब बात अपने को क्या करनी है? भगवान ने शास्त्र तो सबके लिए लिखे है। अपनी प्रकृति को अनशन अनुकूल आये तो अनशन करना, नहीं हुए तो नहीं करना ।
'निजदोष क्षय' का साधन !
प्रश्नकर्ता: स्वरूप का ज्ञान न मिले, तब तक क्या करना
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चाहिये?
दादाश्री : तब तक भगवान की बात है, उसकी आराधना करनी है। वीतराग भगवान की दो बातें करने की है। एक तो आलोचना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान करने चाहिये। भूल से अपने हाथ से दूसरे को लग जाये, तो हमे तुरंत ही आलोचना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान करना चाहिये। जितना आक्रमण या तो अतिक्रमण हुआ, वो सबकी आलोचना, अपने गुरू हो, उन्हें लक्ष में रखकर, अपनी भूल को कबूल करनी चाहिये। फिर प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान करना चाहिये। प्रतिक्रमण cash, on the moment करना चाहिये। और दूसरी बात ये दुषमकाल है, आर्तध्यान और रौद्रध्यान का विचार होते है। उसमें विचार नहीं करना होता है तो भी हो जाता है, तो उसकी भी आलोचना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान करना चाहिये। श्रीमद् राजचंद्र ने लिखा है, 'मैं
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सर्व दु:खों से मुक्ति
सर्व दुःखों से मुक्ति
तो दोष अनंत का पात्र हूँ करूणाळ ।' और दूसरा क्या कहते है कि 'देखा नहीं स्व दोष तो तैरे किस उपाय?' अपना दोष अपने को दिखा नहीं तो तैरने का मार्ग ही नहीं है। ये लोग दो सो-दो सो, पाँच सोपाँच सो प्रतिक्रमण हर रोज करते है, तो आपके दोष आपको क्युं नहीं दिखते? मैं आपको बता दूं? दोष होते है, फिर भी आपको नहीं दिखते तो उसका क्या कारण?
दादाश्री : क्यों नहीं दिखती? प्रश्नकर्ता : क्योंकि हमें अज्ञान है।
दादाश्री : हाँ, मगर आप वकील रखते है, वो वकीलात करता है कि, सब लोग तो ऐसा करते है, इसमें मेरी क्या गलती है? ऐसा बोलता है कि अपना कोई गुनाह नहीं है।
प्रश्नकर्ता : ये वकील अपनी गलती को छिपाते है।
दादाश्री: हाँ, वकील सब गलतीओं को छिपाते है। ये सब 'महात्माओं' को हर रोज सो-दो सो गलतीयाँ दिखती है और उतने प्रतिक्रमण भी करते है। आपने कितने प्रतिक्रमण किये?
प्रश्नकर्ता : आप बता दो।
प्रश्नकर्ता : कभी कभी पश्चात्ताप हो जाता है।
दादाश्री : आपने दोष किये है, इसके लिए आप 'आरोपी' है और आप जज भी है और आप वकील भी है। खुद ही वकील, खुद ही जज और खुद ही आरोपी। बोलिए, कितना गुनाह मालूम होगा? खुद जज है, इसलिए बोलता है कि, 'तुम आरोपी है कि नहीं?' तो वकील क्या प्लीडींग करता है कि, 'सब लोग ऐसा करते है, उसमें मेरा क्या गुनाह है?' प्लीडर है कि नहीं तुम्हारी पास? और ये महात्माओं को प्लीडींग नहीं होती, क्योंकि ये दोष होते ही शूट ओन साइट प्रतिक्रमण करते है। शूट ओन साइट इधर होता है न? जब हुल्लड होता है, तब डी.एस.पी. वहाँ उसको शूट ओन साइट करने को बोलता है। लेकिन अंदर जो हुल्लड होता है, तब शूट ओन साइट होना चाहिये। जो दोष होता है, उसका प्रतिक्रमण करो। जितने प्रतिक्रमण किये उतने ही शुद्ध हो गये और प्रतिक्रमण नहीं किया तो फिर क्या होता है?
दादाश्री : हाँ, बरोबर है मगर पश्चात्ताप तो फोरेनवाले के लिए है। अपने लोगों को तो प्रतिक्रमण करने का है। ये साधु लोग प्रतिक्रमण करते है वो तो पुस्तक में अर्धमागधी भाषा में लिखा है, वो ही प्रतिक्रमण बोलते है। प्रतिक्रमण का यथार्थ अर्थ क्या है कि तुमने इनके साथ अतिक्रमण किया तो फिर तुम्हारे को प्रतिक्रमण करना ही चाहिए। अतिक्रमण नहीं किया, तो प्रतिक्रमण करने की कोई जरूरत नहीं है। सहज भाव से, क्रमण से दुनिया चल रही है मगर अतिक्रमण याने इसको दु:ख हो जाये ऐसा तुम कुछ करेगा, तो फिर तुम्हारे को प्रतिक्रमण करना पड़ेगा।
प्रश्नकर्ता : Multiplication होता है।
- जय सच्चिदानंद
दादाश्री : 'ज्ञानी पुरुष' के अंदर तो दोष ही नहीं रहते, इसलिए उनको निपँथ बोला जाता है। स्वरूप का ज्ञान होने के बाद वकील नहीं रहता। आप खुद जज है, आप ही आरोपी है और वकील भी आप है, तो कितना गुनाह आपको दिखेगा? तुम्हारी कितनी गलती दिखेगी?
प्रश्नकर्ता : अपनी गलती नहीं दिखेगी।
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७) हे दादा भगवान! मुझे कोई भी रस में लुब्धपना न हो ऐसी परम
शक्ति दो। समरसी खुराक लेने की परम शक्ति दो। हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी देहधारी जीवात्मा का प्रत्यक्ष या परोक्ष, जीवंत या मृत, किसी का किंचित्मात्र भी अवर्णवाद, अपराध, अविनय न किया जाय, न कराया जाय या कर्ता के प्रति अनुमोदना
न की जाय ऐसी परम शक्ति दो। ९) हे दादा भगवान ! मुझे जगत कल्याण करने में निमित्त बनने की
परम शक्ति दो, शक्ति दो, शक्ति दो।
(इतना आपको दादा के पास मांगने का है। यह हररोज पढने की चीज नही है, दिल मे रखने की चीज है। यह उपयोगपुर्वक भावना करने की चीज नही है। इतने पाठ में तमाम शास्त्रो का सार आ गया है।)
नौ कलमें १) हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी देहधारी जीवात्मा का किंचित्मात्र
भी अहम न दुभाय, न दुभाया जाय या दुभाने के प्रति न अनुमोदना की जाय ऐसी परम शक्ति दो। मझे कोई भी देहधारी जीवात्मा का किंचितमात्र भी अहम न भाय ऐसी स्यादवाद बानी, स्यादवाद वर्तन और स्यादवाद मनन करने की
परम शक्ति दो। २) हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी धर्म का किंचित्मात्र भी प्रमाण न
दुभाय, न दुभाया जाय या दुभाने के प्रति न अनुमोदना की जाय ऐसी परम शक्ति दो। मुझे कोई भी धर्म का किंचित्मात्र भी अहम न दुभाय ऐसी स्यादवाद
बानी, स्यादवाद वर्तन और स्यादवाद मनन करने की परम शक्ति दो। ३) हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी देहधारी उपदेशक साधु, साध्वी या
आचार्य का अवर्णवाद, अपराध, अविनय न करने की परम शक्ति दो। ४) हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी देहधारी जीवात्मा के प्रति किंचित्मात्र
भी अभाव, तिरस्कार कभी भी न किया जाय, न कराया जाय या कर्ता के प्रति अनुमोदना न की जाये ऐसी परम शक्ति दो। हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी देहधारी जीवात्मा के साथ कभी भी कठोर भाषा, तंतीली भाषा न बोली जाय, न बलवाई जाय या बुलवाने के प्रति अनुमोदना न की जाय ऐसी परम शक्ति दो। कोई कठोर भाषा, तंतीली भाषा बोले तो मुझे मृदु-ऋजु भाषा बोलने की परम शक्ति दो। हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी देहधारी जीवात्मा के प्रति, स्त्री, पुरुष अगर नपुंसक, कोई भी लिंगधारी हो. तो उसके संबंध में किंचितमात्र भी विषय-विकार के दोष, ईच्छाएँ, चेष्टाएँ या विचार संबंधी दोष न किया जाय, न करवाया जाय या कर्ता के प्रति अनुमोदना न की जाय ऐसी परम शक्ति दो।
शुद्धात्मा के प्रति प्रार्थना हे अंतर्यामी परमात्मा! आप प्रत्येक जीवमात्र में बिराजमान हैं, वैसे ही मुझे में भी बिराजमान है। आपका स्वरूप वही मेरा स्वरूप है। मेरा स्वरूप शुद्धात्मा है।
हे शुद्धात्मा भगवान ! मैं आपको अभेदभाव से अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ।
अज्ञानतावश मैं ने • • जो भी दोष किए है, उन सभी दोषों को आपके समक्ष जाहिर करता हूँ। उनका हृदयपूर्वक बहुत पछतावा करता हूँ
और क्षमा माँगता हूँ। हे प्रभु ! मुझे क्षमा करे, क्षमा करे, क्षमा करे और फिरसे ऐसे दोष नहीं करूँ ऐसी आप मुझे शक्ति दे, शक्ति दे, शक्ति दे।
हे शुद्धात्मा भगवान ! आप ऐसी कृपा करें कि हमारे भेदभाव छूट जाये और अभेद स्वरूप प्राप्त हो। हम आप में अभेद स्वरूप से तन्मयाकार रहे।
.. (जो दोष हुए हो वे मनमें जाहिर करें)
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________________ दादा भगवान फाउन्डेशन के द्वारा प्रकाशित ___ हिन्दी - अंग्रेजी पुस्तकें 1. ज्ञानी पुरूष की पहचान 2. जगत कर्ता कौन? कर्म का विज्ञान अंत:करण का स्वरूप यथार्थ धर्म सर्व दुःखो से मुक्ति आत्मबोध 8. दादा भगवान का आत्मविज्ञान 9. टकराव टालिए 10. हुआ सो न्याय 11. एडजस्ट एवरीव्हेयर 12. भूगते उसी की भूल वर्तमान तीर्थकर श्री सीमंधर स्वामी 14. HamonyinMarriage Generation Gap 16. Whoaml? 17. Ultimate Knowledge 18. Anger Worries 20. The essence ofall religions Pratikraman 22. The science of karma 23. The Faultisof the sufferer 24 AdjustEverywhere 25. Whateverhappensisjustice 26. Avoid Clashes प्राप्तिस्थान पूज्य डॉ. नीरुबहन अमीन तथा आप्तपुत्र दीपकभाई देसाई अहमदाबाद . मुंबई दादा दर्शन, 5, ममतापार्क सोसायटी, | बी-904, नवीनआशा एपार्टमेन्ट, नवगुजरात कॉलेज के पीछे, उस्मानपुरा, | दादासाहेब फालके रोड, अहमदाबाद-३८००१४ दादर (से.रे.), मुंबई-४०००१४ फोनः 7540408,7543979 फोन : 24137616 E-mail : info@dadabhagwan.org | मोबाईल : 9820-153953 अडालज : त्रिमंदिर संकुल, अडालज ओवरब्रीज के पास, अहमदाबाद कलोल हाईवे, अडालज, जि, गांधीनगर - 382423. फोनः (079)3970102-3-4-5-6, 3971717 सुरत : श्री विठ्ठलभाई पटेल, विदेहधाम, 35, शांतिवन सोसायटी, लंबे हनुमान रोड, सुरत. फोन : 0261-2544964 राजकोट : श्री अतुल मालधारी, माधवप्रेम एपार्टमेन्ट, माई मंदिर के पास, 11, मनहर प्लोट, राजकोट फोन : 0281-2468830 चेन्नाई : अजितभाई सी. पटेल, 9, मनोहर एवन्यु, एगमोर, चेन्नाई-८ फोन : 044-8191369, 8191253, Email : torino@vsnl.com US.A. : Dada Bhagwan Vignan Institue : Dr. Bachu Amin, 902 SW Mifflin Rd, Topeka, Kansas 66606. Tel : (785) 271-0869, E-mail : bamin@cox.net Dr. Shirish Patel, 2659, Raven Circle, Corona, CA 92882 Tel. : 909-734-4715, E-mail : shirishpatel@atthi.com : Mr. Maganbhai Patel, 2, Winifred Terrace, Enfield, Great Cambridge Road, London, Middlesex, ENI IHH, U.K. Tel: 020-8245-1751 Mr. Ramesh Patel, 636, Kenton Road, Kenton Harrow. Tel.:020-8204-0746 E-mail : dadabhagwan_uk@yahoo.com Canada : Mr. Bipin Purohit, 151, Trillium Road, Montreal, Quebec H9B 1T3, Canada. Tel.:514.421-0522. E-mail : bipin@cae.ca Africa : Mr. Manu Savla, Nairobi, Tel: (R)254-2-744943 Website: www.dadabhagwan.org, www.dadashri.org 21.