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________________ सर्व दुःखों से मुक्ति शुद्धात्मा भगवान है, उनके पास माफी माँगने का कि, 'हे शुद्धात्मा भगवान, आज मेरे से दो आदमी को बहुत परेशानी हो गई, बहुत नुकसान हो गया। हे भगवान, उसकी हम माफी माँगता हूँ, मेरी इच्छा नहीं थी, फिर भी ऐसा हो गया है, मुझे माफ करो। फिर कभी ऐसा नहीं करूँगा। ऐसा नहीं होना चाहिये।' ऐसा आप भगवान के पास बोलो। क्योंकि दुनिया में सभी जीवमात्र के अंदर भगवान बैठे है। सभी देहधारी के अंदर शुद्धचेतन रुप बैठे है। भगवान ये नोंध (नोट) करते है कि 'रविन्द्र ने ये बुरा किया, इसको नुकसान किया' और फिर इसका आपको फल मिलता है। रोज सुबह में ऐसा बोलने का कि 'हमारे से कोई जीव को किंचित्मात्र दुःख न हो' । ऐसी भावना करके बाहर निकलने का । इतना करेगा? तो कल से ही चालू कर देना। फिर किसी को दुःख हो गया तो, 'हे शुद्धात्मा भगवान, ये इतनी मेरी गलती हो गई, मुझे माफ कर दो, फिर गलती नहीं करेंगे।' इतना ही बोलने का, दूसरा कुछ नहीं बोलने का । बाहर मूर्ति के पास जाना- नहीं जाना, वो तो आपकी मरजी की बात है, मगर सच्चा भगवान तो अंदर ही है। ७७ प्रश्नकर्ता: समझ लो मेरे से गलती नहीं हुई है, तो ? दादाश्री : सारा दिन गलती ही होती है। आपकी कितनी गलती होती है, मालूम है? रोज की पाँच हजार गलतीयाँ होती है लेकिन आपको गलती का पता ही नहीं है। क्योंकि गलती की तलाश कैसे करते हो ? गलती तो, इतनी बड़ी बड़ी गलतीयाँ है, बहुत गलतीयाँ है। किसी के साथ गुस्सा हो गया, किसी की कोई चीज लेने का भाव हो गया, व्यापार में कपट करके ज्यादा ले लेने का विचार हो गया, ऐसा विचार भी हो तो भी गलती है और उसकी भगवान के पास माफी माँग लेने की। ऐसी गलती होती है कि नहीं होती है? प्रश्नकर्ता: हाँ, ऐसी गलती तो करता हूँ। सर्व दुःखों से मुक्ति दादाश्री : आप तो कोई कोई बड़ी गलती देख सकते है, मगर आज से आप ज्यादा देखोगे। जब हम आत्मसाक्षात्कार करा देंगे फिर बहुत दिखेगा, सूक्ष्म भी दिखेगा। और जितनी गलतीयाँ देखोगे, उतनी गलती की माफी माँग लो, तो वो गलती चली जायेगी, खतम हो जायेगी। बस वो ही धर्म है, चोबीश तीर्थंकरों का बाकी, शास्त्र तो एक आदमी के लिए नहीं लिखे है, सबके लिए लिखे है । उसमें जो लिखा है, वो सब चीज आपके लिए नहीं है। आपको जिसकी जरूरत है, उतनी ही बात आपके लिए है। आपको क्या जरूरत है, आपकी प्रकृति को क्या अनुकूल है, वो ही बात ले लेने की है। दूसरी सब बात अपने को क्या करनी है? भगवान ने शास्त्र तो सबके लिए लिखे है। अपनी प्रकृति को अनशन अनुकूल आये तो अनशन करना, नहीं हुए तो नहीं करना । 'निजदोष क्षय' का साधन ! प्रश्नकर्ता: स्वरूप का ज्ञान न मिले, तब तक क्या करना ७८ चाहिये? दादाश्री : तब तक भगवान की बात है, उसकी आराधना करनी है। वीतराग भगवान की दो बातें करने की है। एक तो आलोचना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान करने चाहिये। भूल से अपने हाथ से दूसरे को लग जाये, तो हमे तुरंत ही आलोचना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान करना चाहिये। जितना आक्रमण या तो अतिक्रमण हुआ, वो सबकी आलोचना, अपने गुरू हो, उन्हें लक्ष में रखकर, अपनी भूल को कबूल करनी चाहिये। फिर प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान करना चाहिये। प्रतिक्रमण cash, on the moment करना चाहिये। और दूसरी बात ये दुषमकाल है, आर्तध्यान और रौद्रध्यान का विचार होते है। उसमें विचार नहीं करना होता है तो भी हो जाता है, तो उसकी भी आलोचना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान करना चाहिये। श्रीमद् राजचंद्र ने लिखा है, 'मैं
SR No.009601
Book TitleSarva Dukho Se Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages47
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size94 KB
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