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सर्व दुःखों से मुक्ति
सर्व दुःखों से मुक्ति
अंधा नहीं होता, तो दुःख ही नहीं। इसलिए वीतराग भगवान ने बोला था कि समकित कर लो। समकित हुआ तो थोड़ी थोड़ी आँखे खूल गयी और थोड़ा थोड़ा सुख बढ़ेगा। पूरी आँख खुल गई कि मोक्ष हो गया।
और ज्ञान से भगवान का राज हो जाता है।
एक बड़ा शेठ है, उसने दारू नहीं पीया तब तक तो कैसी अच्छी बातें करता है। फिर दारू की एक bottle पी ली, तो कोई अलग ही बातें बोलता है। वो कौन सी शक्ति काम करती है।
प्रश्नकर्ता : दारू काम करता है।
दादाश्री : तो ये जगत भी दारू से चलता है, मगर ये मोहरूपी brandy से चल रहा है। मनुष्य को मोह चला जाये फिर समाधि हो जाती है।
प्रश्नकर्ता : Train से आते वक्त platform पर एक अंधे को देखा, तब मेरे मन में हुआ कि दुनिया में सब दु:खी दु:खी है।
दादाश्री : जगत में दो प्रकार के अंधे मनुष्य है। एक तो अंधा जैसा आपने देखा था, जिसकी आँखे नहीं थी और अंधा हो गया था
और दूसरे, ये world में जो सब लोग है, वो भी अंधे है। आँख से अंधा है, वो अपना खुद का नुकसान नहीं करता है और ये दूसरे लोग अपना खुद का सारा दिन नुकसान ही करता रहता है। वो भगवान की भाषा में आँख से देखते हुए भी अंधे हैं।
भगवान की तो एक ही भाषा है और सबकी अलग-अलग Language है। तुम औरत को divorce देगा और दूसरा कहता है कि हमको औरत चाहिये। तुम्हारी language में वो औरत बहुत बूरी है और दूसरे की Language में वो बहुत अच्छी है। मगर भगवान की भाषा में वो दोनो बात गलत है। ये लोगों की भाषा की बात है।
दुनिया में दुःख है ही नहीं। मगर अंधा है, इससे दुःख लगता है। जब धीरे धीरे आँख खूलती है, फिर थोड़ा थोड़ा सुख लगता है। फिर जब पूरी आँख खुलती है तो दु:ख है ही नहीं दुनिया में। world में दु:ख होता ही नहीं कभी। वो दुःख अपनी अपनी भाषा में है। अंदर
Wrong belief को मिथ्या दर्शन बोलते है और right belief को सम्यक् दर्शन बोलते है। मिथ्या दर्शन से भौतिक सुख मिलता है। वो आरोपित सुख है, सच्चा सुख नहीं है। सच्चा सुख आत्मा में है। मगर ये क्या बोलता है कि ये जलेबी में सुख है। जलेबी में सुख है ही नहीं। मगर कोई लोग बोलेंगे कि जलेबी में सुख है और दूसरे सब लोग बोलेंगे कि जलेबी हमको पसंद नहीं है। कोई लोग जलेबी को हाथ भी नहीं लगाता। ये तो जैसा भाव किया ऐसा अंदर से ही सुख निकलता है। आत्मा का सुख आरोपित करता है कि जलेबी में सुख है, फिर जलेबी खाता है तो उसको अच्छा लगता है। हम तो सारी जिंदगी में ये घड़ी भी नहीं लाया। क्योंकि इसमें क्या सुख है? सुख तो आत्मा के अंदर है। वो स्वतंत्र सुख है। हमको जेल में ले जाये तो भी हमको अच्छा लगेगा कि हम घर पर बैठते है, तो दरवाजा भी हमें खुद ही बंध करना पडता है, इधर तो पुलीसवाला दरवाजा बंध करेगा। हमको तो फायदा ही है। ऐसी द्रष्टि बदल गयी तो कोई परेशानी है फिर? परेशानी सब लौकिक द्रष्टि से है। वो लौकिक द्रष्टि सब wrong belief है। सब लोग जिसमें सुख मानते है, उसमें आप भी सुख मानते है, वो wrong belief है। सब लोग जिसमें सुख मानते है, मगर उसमें से सुख तो मिलता ही नहीं और वो आरोपित भाव ही है। वो सुख के पीछे फिर दुःख आता है। आपने दुःख देखा है कभी? हमने पच्चीस साल से कभी दुःख नहीं देखा है। सुख भी नहीं, दुःख भी नहीं, हमको तो निरंतर परमानंद है। सुख और दुःख है, वो तो वेदना है। जिसको आम पसंद है, उसको आम खायेगा तो ठंड़क हो जाती है। वो शाता वेदनीय है और जिसको आम पसंद नहीं है, उसको आम