Book Title: Sarva Dukho Se Mukti
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Foundation

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Page 41
________________ सर्व दुःखों से मुक्ति सर्व दुःखों से मुक्ति निमित्त को निमित्त समझे, तो? एक आदमी जानबूझकर पथ्थर मारता है और दूसरा बन्दर है, वो आपके उपर पथ्थर गीराता है। वो पथ्थर आपको बहुत जोर से लग जाता है। दोनों के उपर आपका भाव बिगडता है. दोनों के उपर आपको गुस्सा आता है? आपने देखा कि ये तो बन्दर है, तो आप क्या करते है? प्रश्नकर्ता : उसे भगा देते है। दादाश्री : मगर बहुत गुस्सा क्यों नहीं किया उस पर? प्रश्नकर्ता : कुछ purposely तो नहीं किया है उसने। दादाश्री : और वो आदमी जानबूझकर पथ्थर मारता है तो? प्रश्नकर्ता : वहाँ गुस्सा आ जाता है। दादाश्री : वो जो पथ्थर मारता है न, वो सभी बन्दर की तरह ही है। आपको वो खयाल नहीं है। आपको लगता है कि वो जानबूझकर मारता है मगर ऐसा नहीं है। वो भी बन्दर की तरह ही है। हम देखते है कि सब बंदर की तरह ही है। इतना समझ गये तो कितनी गलती कम हो जायेगी?! ___ जहाँ झगडा है, वहाँ पशुता है। भगवान ने क्या बोला है कि तुमको दो गाली तुम्हारी पाडोशी दे, तो वो देता ही नहीं। बन्दर पथ्थर मारता है, उस तरह समझ जाने का है। वो तुम्हारे ही कर्म का फल मिलता है और वो तो निमित्त है। तुम्हारे को गाली पसंद हो तो फिर आप व्यापार करना। उसको तीन गाली दोगे तो तीन गाली वापस आयेगी। पाँच गाली दोगे तो फिर पाँच आयेगी। जितनी गाली दोगे उतनी ही वापस आयेगी। एक दफे कुछ भी नहीं बोला तो ये तुम्हारा खाता पूरा हो गया। मोक्ष में जाना है, तो सब खाते बंध तो करने पड़ेंगे न? कोई भी आदमी नुकसान करे तो वो निमित्त ही है और निमित्त को मारने से क्या फायदा? ये जन्म का नहीं होगा तो पिछले जन्म का है। ये दुनिया ऐसी है। नयी कोई चीज मिलेगी नहीं। जो दिया है वो ही मिलेगा। तुमको पसंद नहीं हो तो फिर मत दो। पसंद हो तो ही दो। वही धर्म समझने का है। ऐसा धर्म समझ के आगे कभी साक्षात्कार के संजोग मिलते है। मगर धर्म ही समझे नहीं तो फिर क्या करे? पाशवता ही हो जाये। पडौशी के साथ झगडा करता है, लड़ाई करता है, ये क्या मानवता है? प्रश्नकर्ता : व्यवहार में कभी कभी करना पडता है। दादाश्री : व्यवहार में जो करना पडे, वो न्याय से होना चाहिये। व्यवहार में कोई हर्ज नहीं, न्याय से होना चाहिये। न्याय के बाहर नहीं होना चाहिये। कुदरत का दरअसल न्याय! प्रश्नकर्ता : जिस आदमी में Heart की purity रहती है, वह अच्छा है, प्रामाणिक है, फिर भी उसे संसार में promotion क्यों नहीं मिलता? दादाश्री : नहीं, वो Promotion तो नहीं मिले मगर उनको खाना भी नहीं मिले, क्योंकि वो प्रारब्ध के हाथ में है। खाना मिलना, Promotion मिलना, वो सब प्रारब्ध के हाथ में है। प्रश्नकर्ता : वह प्रारब्ध कौन लिखता है? दादाश्री : कोई लिखनेवाला नहीं है। वो ऐसे ही लिखा जाता है, जैसे machine चलता है न? ऐसे ही चलता है। प्रश्नकर्ता : अपने प्रारब्ध में ऐसे दु:ख भुगतने का क्यों आता है? इसमें भूल कहाँ होती है?

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