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सर्व दुःखों से मुक्ति
सर्व दुःखों से मुक्ति
कभी चिंता होती है? दवाई नहीं करते है? बिना दवाई ऐसे ही आराम हो जाता है?
प्रश्नकर्ता : आराम है ही कहाँ?
दादाश्री : कोई जगह पे आराम नहीं है? वो आराम हराम हो गया है? एक दिन भी चिंता बंध नहीं होती? दिवाली के दिन तो बंध रहती है कि नहीं?
प्रश्नकर्ता : दिवाली में तो चिंता बढ़ती है।
दादाश्री : दिवाली के दिन चिंता ज्यादा बढ़ती है? वो दिन तो खाना-पीना अच्छा मिलता है, कपडे अच्छे मिलते है, फिर भी?
प्रश्नकर्ता : खाने-पीने के लिए तो हम महसूस ही नहीं करते।
दादाश्री : हाँ, मगर वो चिंता तो बढ़ती है। ऐसा कहाँ तक चलेगा? कितना स्टोक है? अभी खतम नहीं हुआ?! सारे दिन में चिंता नहीं हो, ऐसा एक दिन मिले तो कितना आनंद हो जाता है न ! लेकिन एक दिन भी ऐसा नहीं मिलता है। तुम्हारे यहाँ सभी लोगों का ऐसा रहता है?
'कीमिया' कैसा अच्छा किया है(!) कि कोई परेशानी ही नहीं बताये।
और औरत के साथ घर में झगड़ा होता है, तो वो थोडा रोकर बाहर निकलता है, तब तो मूंह धोकर बाहर निकलता है। ऐसे दुनिया चल रही है।
ऐसा है, सच्ची बात जानने की है। वो सच्ची बात जानने को नहीं मिली लोगों को और जो लौकिक बात है वो ही बात सब लोग जानते है। अलौकिक बात क्या चीज है, कभी सुना भी नहीं, पढ़ा भी नहीं
और हमने बताया ऐसे जाना भी नहीं। अलौकिक बात जाने तो सब परेशानीयाँ चली जाती है। इधर अलौकिक बात जानने को मिलती है। Self का realisation हो सकता है, फिर चिंता कभी नहीं होती और business भी आप कर सकते है।
प्रश्नकर्ता : मानो या न मानो, मगर सबको worries तो रहती ही है।
दादाश्री : क्यों रहती है? आप खुद को पहचाना नहीं और आप बोलते है, 'मैं रविन्द्र हूँ। ऐसा egoism (अहंकार) करते है। ये सब मैं चलाता हूँ' ऐसा भी egoism करते है। और इससे worries ही रहती है। जो egoism नहीं करता, उसको कुछ worries नहीं है।
प्रश्नकर्ता : जिसको चिंता नहीं होती, वो तो भगवान ही हो गया।
दादाश्री : हमारी साथवाले सब आदमी है, उनको कभी एक भी चिंता ही नहीं होती। worries है नहीं बिलकुल। और जेब काट ले तो भी चिंता नहीं। ये बात मानने में आती है? क्या ये world में बिना worries कोई आदमी कभी होता है? कभी चिंता नहीं हो ऐसा ज्ञान है, ऐसी अपनी Indian Phylosophy है। जेब काट ले तो भी कुछ होता नहीं, गाली दे गया तो भी कुछ होता नहीं, No depression, फूल चढाये तो elevation नहीं, ऐसा uneffective हो जाता है (ज्ञान से)।
प्रश्नकर्ता : सबका क्या पत्ता?
दादाश्री : कितने लोग आनंद में रहते है, उसकी तलाश नहीं की? आप अकेले को ही नहीं, सारी दुनिया में सभी लोगों को चिंता है। सभी लोगों को आधि-व्याधि-उपाधि, worries !! और पूछेगे कि 'क्यं भाई. कैसा है?' तब वो बोलता है कि, 'बहुत अच्छा है, बहुत अच्छा है।' मगर यह सब जूठी बातें है। ऐसा नहीं बोले, तो उसकी आबरू चली जाये। इसलिए उसकी आबरू रखने के लिए ऐसा बोलते है कि, कुछ परेशानी नहीं और खुद जानते है कि कितनी परेशानीयाँ है। परेशानी कोई बता देता है? परेशानी गुप्त ही रखते है, वो भगवान ने