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सर्व दुःखों से मुक्ति
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सर्व दुःखों से मुक्ति
कभी औरत के साथ क्रोध हो जाता है? प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री : जो अच्छा अच्छा लड्डू देती है खाने को, उनकी साथ भी क्रोध करते हो? उधर तो क्रोध नहीं करना चाहिये। बाहर पुलीसवाले के साथ क्रोध करो तो कोई हर्ज नहीं है। वहाँ क्रोध नहीं करता? वहाँ क्यों control में रहते हो?
प्रश्नकर्ता : वहाँ डर है।
प्रश्नकर्ता : हाँ, उन्हें बनवास जाना पड़ा था और 'सीता, सीता' करके घूम रहे थे।
दादाश्री : बनवास का तो ठीक है। अभी तो ये सब लोग बैठे है न, इन सबको क़ायम का बनवास है। जन्मे वहाँ से ही बनवास है। मगर रामचंद्रजी की पत्नी को तो हरण करके ले गया था। ऐसा ये सबको तो इधर नहीं होता न? कितना आनंद है! ऐसी कोई अड़चन तो आपको नहीं आयी न?
प्रश्नकर्ता : अभी तक तो नहीं आयी।
दादाश्री : आपको औरत के साथ कोई दिन झगडा नहीं हुआ था?
प्रश्नकर्ता : सांसारिक जीवन में होता ही रहता है।
दादाश्री : ऐसा झगडा होता है तो फिर शादी करने का क्या फायदा? एक आदमी हमारे पास आया, वो हमको बोलने लगा कि, 'मेरी औरत ने मुझे मारा।' तो उसका क्या न्याय करने का? आप कहो, आपकी मरजी में क्या न्याय लगता है? औरत को फाँसी पर लगाना चाहिये?
प्रश्नकर्ता : फाँसी पर क्या लगाने का! मर्द और औरत का तो आपस का संजोग है।
दादाश्री : ये पुलीसवाले के पास निडर हो जाव और इधर घर में डरो। जो खाना खिलाती है, सबेरे में चा-नास्ता देती है, वहाँ क्रोध करोगे तो खाने-पीने का सब बिगड जायेगा। वाईफ का धनी हो जाता है?! धनी होने में हर्ज नहीं है मगर धनीपना नहीं करना चाहिये। It is a drama, तो आप drama के धनी हो। The world is the drama itself!
प्रश्नकर्ता : हम गृहस्थ है, हमें लोकाचार का पालन तो करना पडता है।
दादाश्री : लोकाचार भी तुम्हारा अच्छा नहीं है। कभी कभी औरत के साथ मतभेद हो जाता है, Friend के साथ मतभेद हो जाता है न? लोकाचार आदर्श होना चाहिये। हमारे को भी औरत है, मगर वो तो 'पटेल' को है, 'हमारे' को तो कोई औरत नहीं है। ये 'पटेल' को औरत है, मगर एक भी मतभेद उसके साथ नहीं है।
प्रश्नकर्ता : ये कैसे संभव है? मतभेद तो रहेगा ही।
दादाश्री: तो फिर मार खाने का? ऐसी शादी में क्या फायदा कि जहाँ मार भी खाने का?!!! मगर सब लोग शादी करता है न! फिर 'ये मेरी wife, ये मेरी wife' करता है मगर वो पिछले जन्म की wife का क्या हुआ? वो सब पिछले जन्म के लडके का क्या हुआ? वो सब उधर छोडकर आया और ऐसे यहाँ छोडकर आगे जायेगा। क्या ये ही धंधा है? ये puzzle solve तो करना चाहिये न? कहाँ तक ऐसे puzzle में रहोगे?
दादाश्री : मतभेद तो कभी हुआ ही नहीं। वो कभी बोले कि, 'आप ऐसे हो, वैसे हो, भोले हो, लोगों को सब दे देते हो'। तो मैं बोलता हूँ कि, भाई, पहेले से ही मैं ऐसा था, आज से नहीं। फिर कैसे