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[ गोम्मटसार फर्मकाण्ट सम्बन्धी प्रकरण का विधान, सख्या आदिक का, तहा अनंतानुबंधी रहित उदयस्थान मिश्यादृष्टि की अपर्याप्त-अवस्था मे न पाइए इत्यादि विशेष का वर्णन है।
___ बहुरि मोह के सत्त्वस्थाननि का वा तहा प्रकृति घटने का, अर ते स्थान गुणस्थाननि विर्षे जैसे संभवै ताका, अर अनिवृत्तिकरण विपै विणेप है ताका वर्णन है ।
___ वहुरि नामकर्म का कथन विर्षे आधारभूत इकतालीस जीवपद, चौतीस कर्मपदनि का व्याख्यान करि नाम के वंधस्थाननि का अर ते गुणस्थाननि विप जैसे संभव ताका, अर ते जिस-जिस कर्मपदसहित बंधे है ताका, अर तिनविप क्रम ते नवध्र ववंधी आदि प्रकृतिनि के नाम का, अर तेइस के नै आदि दै करि नाम के बधस्थाननि विर्ष जे-जे प्रकृति जैसे पाइए ताका, अर तहां प्रकृति बदलने ते भए भंगनि का वर्णन है। अर इहां प्रसंग पाइ जीव मरि जहां उपजे ताका वर्णन विप प्रथमादि पृथ्वी नारकी मरि जहां उपजै वा न उपज ताका, तहा प्रसग पाड स्वयंभूरमण-समुद्रपर कूणानि विपै कर्मभूमिया तिथंच है इत्यादि विशेष का, अर वादरसूक्ष्म, पर्याप्त-अपर्याप्त अग्निकायिक आदि जीव जहां उपजे ताका, तहा सूक्ष्मनिगोद ते आए मनुष्य सकल सयम न ग्रहै इत्यादि विशेष का, अर अपर्याप्त मनुष्य जहा उपजे ताका, अर भोगभूमि-कुभोगभूमि के तिर्यच-मनुष्य, अर कर्मभूमि के मनुप्य जहा उपजै ताका, अर सर्वार्थसिद्धि ते लगाय भवनत्रिक पर्यत देव जहा उपजे ताका वर्णन है। वहुरि जैसे च्यवन-उत्पाद कहि चौदह मार्गणानि विपै गुणस्थाननि की अपेक्षा लीए जैसे जे-जे नामकर्म के बंधस्थान संभवै तिनका वर्णन है।
तहा गति, इद्रिय, काय, योग, वेद मार्गणानि विपै तो लेण्या अपेक्षा वस्थाननि का कथन है । कषाय मार्गणा विपै अनतानुवधी आदि जैसे उदय हो है ताका, वा इनके देशघाती-सर्वधाती स्पर्द्धकनि का, वा सम्यक्त्व-संयम धातने का, वा लेश्या अपेक्षा बंधस्थाननि का कथन है। अर ज्ञान मार्गणा विषै गति आदिक की अपेक्षा करि वंधस्थाननि का कथन है। अर सयम मार्गणा विप सामायिकादिक के स्वरूप का, अर सयतासंयत विषै दोय गति अपेक्षा, अर असयम विष च्यारि गति अपेक्षा बंधस्थाननि का कथन है । तहां निर्वृत्यपर्याप्त देव के वधस्थान कहने की देवगति विष जे-जे जीव जहां पर्यत उपजे ताका, अर सासादन विप वंधस्थान कहने को जे-जे जीव जमे उपजम-सम्यक्त्व को छोडि सासादन होइ ताका इत्यादि कथन है । अर दर्शन मागंणा विप गति अपेक्षा वधस्थाननि का कथन है।