Book Title: Samvedasya Mantra Bramhnam
Author(s): Satyabrata Samasrami
Publisher: Calcutta

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org १प्र० १ख० ७ -८म० । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शिवा अरिष्टा पतिलोक गमेयम् ॥८॥ अग्निरे तु प्रथमो देवताभ्यः सो स्यै प्रजां मुञ्चतु मृत्युपाशात् । तदयं राजा वरुणोनु मन्यतां यथेयं स्त्री पौत्र मन्त्ररोदात् स्वाहा ॥ १ ॥ इमा मग्नि 'नः' अस्माकम् 'पतिः पाता देव: 'मे' मदर्थं 'पन्या" पन्यानम् 'प्रकल्पताम्' प्रकरोतु, 'या' येन पथा, कोदृशेन ' 'शिवा' शिवेन कलप्राणमयेन 'अरिष्टा' अरिष्टे न विघ्वशून्येन 'पतिलोकम्' पतिकूलं 'गमेयम्' गच्छेयम् अहमिति शेषः ॥ ८ ॥ 'देवताभ्य:' देवतानां' 'प्रथम:' मुख्यः 'अग्निः' 'रतु' त्रागच्छतु आगत्य च 'स' 'अस्य' अस्याः भाविनीं 'प्रजा' सन्तति ततिं 'मृत्प्रपाशात्' अकाल-मरण-भयात् 'मुञ्चतु'; 'अयं' 'राजा' राजमान: वरुणः 'तत्' तथा अनुमन्यतां यथा" 'इयं स्त्री' 'पोत्रम् पुत्रसम्बन्धि 'अम्' पाप-मूलकं शोकं प्राप्य 'न रोदात् रोदनं न कुर्य्यात् ; नैव प्राप्नुयादिति यावत् ॥८ ॥ অমাদিগের পাতা, আমাদের জন্য সেই পথ কল্পিত করুন যে কল্যাণময় বিঘ্নশূন্য পথে পতি-কূল-কাৰ্য্য-নিৰ্ব্বাহ করিতে পারি ॥৮ দেব-শ্রেষ্ঠ অগ্নি আগমন করুন ; তিনি এই কন্যার ভবি ষ্যৎ সন্ততিগুলিকে মৃত্যুভয় হইতে মুক্ত করুন ; এই রাজমান রজনি দেবতা সেইরূপ অনুমতি করুন যাহাতে এই স্ত্রী পাপমূলক পুত্রশোক প্রাপ্ত হইয়া ক্ৰন্দন না করেন ॥৯ ८ - दिपाद जगतीच्छन्दः । पतिदेवता । पदप्रवर्त्त ने विनियोगः । - श्रतिजगतीच्कन्दः । अनिaar | श्राजा होमे विनियोगः । For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 145