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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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किरिआ विहि संचिय कम्म किलेस विमुक्खयर, अजिअं निचिअंच गुणेहिं महामुणि सिध्धिगयं । अजिअस्स य संतिमहामुणिणो वि अ संतिकरं, सययं मम निव्वुइ कारणयं च नमसणयं । (५) आलिंगणयं पुरिसा जइ दुक्खवारणं, जइ य विमग्गह सुक्ख कारणं।
अजिअं संतिं च भावओ, अभयकरे सरणं पवज्जहा । (६) मागहिआ हे पुरुषोत्तम ! हे अजितनाथ ! आपका नाम-स्मरण (जैसे) शुभ (सुख) का प्रवर्तन करनेवाला है, वैसे ही स्थिर-बुद्धिको देनेवाला है । हे जिनोत्तम ! हे शान्तिनाथ ! आपका नामस्मरण भी ऐसा ही है I (४) कायिकी आदि पचीस प्रकारकी क्रियाओंसे संचित कर्मकी पीड़ासे सर्वथा छुड़ानेवाला, सम्यग्दर्शनादि गुणोंसे परिपूर्ण, महामुनियों की अणिमादि आठों सिद्धियोंको प्राप्त करानेवाला
और शान्तिकर ऐसा श्री अजितनाथ और श्री शान्तिनाथ भगवान्का पूजन मेरे लिए सदा मोक्षका कारण बने । (५) हे पुरुषों ! यदि तुम दु:ख-नाशका उपाय अथवा सुख-प्राप्तिका कारण खोजते हो तो अभयको देनेवाले श्री अजितनाथ और श्री शान्तिनाथका शरण, भावसे अंगीकृत करो। (६)
श्री अजितनाथकी स्तुति अरइ रइ तिमिर विरहिय मुवरय जर मरणं, सुर असुर गरुल भुयगवइ पयय पणिवइयं; अजिअ महमवि य सुनय नय निउणम भयकरं,