Book Title: Samvatsari Pratikraman Hindi
Author(s): Ila Mehta
Publisher: Ila Mehta

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Page 376
________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित ३२१ आदि संजोग उपस्थित हो फिर भी कभी चारो तरह का आहार करते ही नहीं | जीवनभर रात्रि-भोजन के त्याग के छढे व्रत का अनुसरण करते है। पू.गुरुभगवंत पच्चक्खाण देते है तब एक या दो बार खाने की छूट आदि नहीं पच्चक्खाण न दे तो, भी एकासणा पच्चक्खाणमें एक समय के अलावा अन्य समयके भोजन का त्याग करने का पच्चकखाण दे | उसके मुताबिक तमाम पच्चक्खाणमें समझना चाहिए। - नवकारशीका पच्चक्खाण करनेवाला किसी प्रसंगवश 'पोरिसी' या 'साढपोरिसि’ तक कुछ भी खाये-पीये बिना रहे और आगे का पच्चकखाण न करे तो उसे केवल नवकारशी का ही लाभ प्राप्त होता है। शायद समय अधिक हो जाने से ज्ञात हो और आगे का पच्चक्खाण करे तो उस पच्चक्खाण का लाभ होता है। पर सूर्योदय से पहले लिये हुए पच्चक्खाण जितना लाभ नहीं मिलता | __ आयंबिल, ओकासणा या बियासणा का पच्चक्खाण किया हो एवं उपवास करने की भावना जगे और जल पिया हुआ न हो और उपवास का पच्चक्खाण करे, तभी ही उपवासका फायदा होगा। उसी तरह एकासणे का पच्चक्खाण लेने के पश्चात् आयंबिल या लुखी नीवि करने की भावना जागृत हो तब एवं बियासणे का पच्चक्खाण लेने के पश्चात् एकासगुं, आयंबिल या लुखीनीवि करनेकी भावना जागृत हो तो कुछ भी खाये पीये बिना वह पच्चक्खाण लिया हो तभी ही उस पच्चक्खाण का लाभ हो सकता है। शायद पहला बियासणा करनेके पश्चात् दुसरा बियासणा करनेकी भावना न हो तो तिविहार का पच्चक्खाण किया जा सकता है।

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