Book Title: Samvatsari Pratikraman Hindi
Author(s): Ila Mehta
Publisher: Ila Mehta

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Page 381
________________ ३२६ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित एवं स्वादिम (दवाई-पानी के साथ)का अनाभोग (इस्तेमाल किये बिना विस्मृति हो जाने से किसी चीज को मुख में डाला जाये वह), सहसात्कार (अफणे आप ही अचानक मुख में कोई चीज प्रवेश करे वह), प्रच्छन्नकाल (मेघ-बादल आदिसे घिरे समयमें काल का पता न चलना), दिग्मोह (दिशा का भ्रम होना), साधुवचन ('बहुपडिपुन्ना पोरिसि’ ऐसा पात्रा पडिलेहण के वक्त साधु भगवंतका वचन सुनने से पच्चक्खाण आ गया है, ऐसा समझ गये हो तो) महत्तराकार (बडी कर्मनिर्जराकी वजह आना वह) एवं सर्व-समाधि-प्रत्याकार (किसी भी प्रकार से समाधि नहीं ही रहती तब) इन छह आगार (छूट)को राखकर त्याग करते है। पुरिमड्ड एवं अवड्ड पच्चक्खाण का सूत्र अर्थ सहित __सूरे उग्गए, पुरिमर्द, अवटुं मुट्टिसहि पच्चक्खाई (पच्चक्खामि) चउव्विहं पि आहारं असणं, पाणं, खाईम, साईमं, अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, पच्छन्नकालेणं, दिसामोहेणं, साहुवयणेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरई (वोसिरामि)|| अर्थ- सूर्योदयसे मध्याह्न समय पर अर्थात् कि दो प्रहर (पुरिमड्ड) या अपरार्ध अर्थात् तीन प्रहर तक (अवड्ड) मुट्ठिसहित पच्चक्खाण करते है (करता हुँ)। जिसमें चारों प्रकारके आहार का अर्थात अशन (भूखको शांत करनेके लिए भात आदि द्रव्य), पान (सादा पानी),खादिम (भूना हुआ धान, फल आदि) एवं स्वादिम (दवाई-पानी के साथ) का अनाभोग (इस्तेमाल किये बिना विस्मृति हो जाने से किसी चीज

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