Book Title: Samvatsari Pratikraman Hindi
Author(s): Ila Mehta
Publisher: Ila Mehta

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Page 388
________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित ३३३ अलेवेण वा, अच्छेण वा, बहुलेवेण वा, ससित्थेण वा, असित्थेण वा वोसिरइ (वोसिरामि). सूर्योदयसे एक प्रहर (अथवा डेढ़ प्रहर) तक नमस्कारसहित, मुष्टि-सहित प्रत्याख्यान करता है | उसमें चारों प्रकारके आहारका अर्थात् अशन (भूखको शांत करनेके लिए भात आदि द्रव्य), पान (सादा पानी), खादिम (भूना हुआ धान, फल आदि) एवं स्वादिमका (दवाई-पानी के साथ) का अनाभोग, सहसाकार, प्रच्छन्नकाल, दिङ्मोह, साधुवचन, महत्तकार और सर्वसमाधि-प्रत्याकार पूर्वक त्याग करता है। आयंबिलका आठ आगार- पूर्वक प्रत्याख्यान करता है : - अनाभोग (इस्तेमाल किये बिना विस्मृति हो जाने से किसी चीज को मुख में डाला जाये वह), सहसाकार (अपने आप ही अचानक मुख में कोई चीज प्रवेश करे वह), लेपालेप, गृहस्थसंसृष्ट, उत्क्षिप्त-विवेक, पारिष्ठापनिकाकार, महत्तराकार (बडी कर्मनिर्जराकी वजह आना वह) एवद्म और सर्व-समाधिप्रत्याकार (किसी भी तरीके से समाधि नहीं ही रहती तब) ईन छह आगारों का (छूट) को रखकर त्याग करते है (करता हुँ)।।। एकाशनका प्रत्याख्यान करता है, उसमें तीनों प्रकारके आहारका अर्थात् अशन, खादिम और स्वादिमका अनाभोग, सहसाकार, सागररिकाकार, आकुञ्चन-प्रसारण, गुर्बभ्युत्थान, पारिष्ठापनिकाकार, महत्तराकार और सर्व-समाधि-प्रत्याकारपूर्वक त्याग करता है। पानी -सम्बन्धी छ: आगार लेप (ओसामण आदि लेप से बना हुआ (बरतनमें लेप रहता है वह) जल आदि), अलेप (कांजी

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