Book Title: Samvatsari Pratikraman Hindi
Author(s): Ila Mehta
Publisher: Ila Mehta

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Page 398
________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित ३४३ अर्थ - दिनके शेष भागसे संपूर्ण रात्रि पर्यंत प्रत्याख्यान करते है (करता हुं)। उसमें दो प्रकारके आहार अर्थार्त अशन (भूखको शांत करनेके लिए भात आदि द्रव्य), खादिम ( भूना हुआ धान, फल आदि) अनाभोग (इस्तेमाल किये बिना विस्मृति हो जाने से किसी चीज को मुख में डाला जाये वह), सहसात्कार (अपने आप ही अचानक मुख में कोई चीज प्रवेश करे वह), महत्तराकार (बडी कर्मनिर्जराकी वजह आना वह) एवं सर्व-समाधि- आगार (किसी भी तरीके से समाधि नहीं ही रहती तब) ईन छह आगारों का (छूट) को रखकर त्याग करते है (करता हुँ)। (नोंध : पू. गुरुभगवंतकी आज्ञा मिलनेके बाद, रात्रिकी समाधिकी स्थिति पहुंचने तक और चउविहार तक पच्चक्खाण करनेकी शक्ति प्राप्तहोने तक ही श्रावकको यह पच्चक्खाण करना चाहिए । )

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