Book Title: Samvatsari Pratikraman Hindi
Author(s): Ila Mehta
Publisher: Ila Mehta

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Page 394
________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित मुट्ठिसहिअं पच्चक्खाण पारनेका सूत्र अर्थ सहित मुट्ठिसहिअं पच्चक्खाण फासिअं, पालिअं, सोहिअं, तीरिअं किट्टिअं, आराहिअं, I जं च न आराहिअं तस्स मिच्छामि दुक्कडं. ३३९ अर्थ - मुट्ठिसहित प्रत्याख्यान को मैंने स्पर्शा (विधि के द्वारा उचित समय पर जो पच्चक्खाण लिया गया है वह) है, पालन किया (किये हुए पच्चक्खाण का बार-बार स्मरण करना वह) है, शोभायमान किया (गुरुको (बड़ोको) देकर बचा हुआ भोजन करना वह) है, तीर्थं (कुछ अधिक समय के लिए धीरज धारण कर के पच्चक्खाण का पालन करना वह) है, कीर्त्यं (भोजनके वक्त पच्चक्खाण समाप्त होने पर स्मरण करना वह) है एवं आराधायुं (उपर्युक्त अनुसार आचरण किया हुआ पच्चक्खाण वह) है, उसमें जिसकी आराधना न की गई हो एसा मेरा पाप मिथ्या हो एवं उसका नाश हो । (नोंध - मुट्ठिसहित प्रत्याख्यान का अनुसरण करने के लिए इस सूत्र को कंठस्थ करना अति आवश्यक है ।)

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