Book Title: Samvatsari Pratikraman Hindi
Author(s): Ila Mehta
Publisher: Ila Mehta

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Page 372
________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित ३१७ पालन करे । पच्चक्खाण का समय हो जाने के पश्चात् खास आराधना के अंतर्गत एवं किसी परिस्थितिवश शायद पच्चक्खाण का पालन न हो सके, तो भी पच्चक्खाणवाळे महानुभावको 'मुट्ठिसहिअं' का लाभ निश्चितरूप से मिलता ही है। उदा. नवकारशी पच्चक्खाण करनेवाला पुण्यशाली प्रभुभक्ति या जिनवाणी श्रवण या व्यवहारिक प्रसंगों की वजह से उस वक्त शायद पच्चक्खाण न पारे, फिर भी उसे नवकारशी का समय हो जाने के बाबजूद भी मुट्ठिसहिअं पच्चक्खाणका लाभ ही होता है। पूज्य साधु-साध्वीजी भगवंतों एवं पौषधव्रतधारक श्रावकश्राविका गण एवं श्री नवपदजी की ओलीकी विधिपूर्वक आराधना करनेवाला आराधकवर्ग उपरोक्त पच्चक्खाण का अनुसरण करनेकी विधि करते रहते है । आजकल नित्य नवकारशीसे तिविहार उपवास आदि तपस्या करनेवाले आराधक श्रावक-श्राविकागणमें पच्चक्खाणको पारनेकी प्रणालि विस्मृत हो हई है, यह उचित नहीं है । इसके लिये यथाशक्ति प्रयत्न करना चाहिए। शायद हररोज नवकारशी में अनुकूलता न रहे तो उससे भी विशेष तप करने का मौका न मिले तो भी पच्चक्खाण को पारने की प्रणालि का आग्रह रखना चाहिए । नवकारशीका पच्चक्खाण करनेवाले भाग्यशाली व्यक्ति को दिन भर में मुखशुद्धि हो तब याद करके 'मुट्ठिसहिअं पच्चक्खाण' करना चाहिए। एवं पहला बियासणुं करके उठते वक्त एवं तिविहार उपवासमें जब-जब पानीके इस्तेमाल (पीने का) हो जाने के पश्चात् अनिवार्य रूप से यह मुट्ठिसहिअं पच्चक्खाण करना चाहिए। हंमेशा कम से कम नवकारशी एवं चउविहारका पच्चक्खाण करने के साथ साथ मुख शुद्धि हो तब

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