________________ 45 विक्रमादित्य जैसी योग्यता नही हैं." साथ ही सिंहासन को जमीम में गाड देने का सूचन किया. सिंहासन को जमीन में गाड दिया गया, और नया सिंहासन बनवा कर विक्रमचरित्र को उस पर बिठाया. विक्रमादित्य को बहनने नये महाराजा को आशीर्वाद दिया. उसी.समय सिंहासन पर की चामरधारिणीयों हंसी और महाराजा विक्रमादित्य के रोमांचकारी जीवनप्रसंग कहने लगी. शुकयुगल के वचन से महाराजा, भट्टमात्र और अग्निवैताल को शुकने कहा हुआ नगर की खोजमें भेजते है, दोनों वह नगर शोधकर महाराजा को समाचार देते है. महाराजा वहां जाते है, और वहां की अबोला राजकुमारी को वामन ब्राह्मण की कन्या सावित्री की, चार मित्रों की, . दो मित्रों की, और विश्वरुपराजा की कथा कह कर अग्निवैताल की सहायता से चारबार बुलाते है. और उस कन्या से लग्न करते है. प्रकरण 66 . . . . . . . . . . . पृ. 619 से 635. रूक्मिणी का कंकण __ दूसरी चामरधारिणी महाराजा विक्रमादित्य की गुण कथा कहने का शरु करती है. महाराजा की सभा में रुक्मिणी की कथा विप्रने कही, देवशर्मा की पुत्री को सौंतीली मा हैरान करती है, उसी को नारदजी इन्द्रपुत्र से मिलन कराता है, उसको स्वर्ग में ले जाते है, समय बितने पर नारदजी के सूचन से - उसी को वापिस उसी के गांव लौटाते है. रूक्मिणी घर को जाती है, उसी समय उस का एक दिव्य कंकण मार्ग में गीर जाता है. रूक्मिणी जब घर को आती है तब उसकी सौतीली मा-कमला सब आभूषण युक्ति से ले लेती है. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust