________________ मंगवाई, और अब से किसी के साथ फरेव-कपट नहीं करने का कहकर कामलता को बदरी रूपसे मुक्त करके अवती चले. प्रकरण 63 . . . . . . . . . . . पृ. 552 से 581 महाराजा का मन्दिरपुर नगर में जाना एक दिन महाराजा मन्दिरपुर गये थे. वहां का सेठ भीमका पुत्र मर गया था, उस को चिता में रखते थे तो भी वारंवार वहां से घर चला आता था. यह बात वहां के राजा को सुनाई गई, राजाने ये शब को जलानेवाले को इनाम दिया जायगा जैसा ढिंढोरा पिटवाया. महाराजा विक्रम शब लेकर स्मशान में आये, वहां डाकन से मुलाकात हुई. उस का चरित्र देखकर महाराजाने ललकारा, डाकन अदृश्य हो गई, दूसरे प्रहर में शब के पास जंगल में सोये थे, वहां से राक्षस उठाकर दूसरे जंगल में ले गये, वहां धधकती हुई आग पे एक बडी कडाहि रखी थी, उसमें राक्षसो लोगों को डालते थे. वे जब महाराजा को डालने तैयार हुवे तब महाराजाने उनका सामना किया, और पराभव किया, जीवितदान दिया, तीसरे प्रहर में एक स्त्रीका रुदन सुन कर राक्षस से युद्ध किया. राक्षस को मारा, नारीको बचाई, चौथे प्रहर में शतं कर के शबसे जुआ खेलने लगे, शबको हराके उसको जलाया, मदिरपुर आये सब वृत्तान्त कहा. राजाने इनाम दिया. बह महाराजा विक्रमने गरिबों को दे दिया. वहां से भ्रमण करते हुए महाराजा स्त्रीयों के राज में आये, स्त्रीयोंने उनको सदाचारी जानकर चौद रत्नों दिये वे रत्नों भी महागजाने रास्ते में गरिबों को दे दिये. एक रातको महाराजा सोये थे उसी समय स्त्रीका रोने का अवाज सुनाई दिया, महाराजाने अपने अंगरक्षक 'शतमति' को भेजा, शतमति स्त्रीके पास पहुँचा, और रोने का कारण पूछा. 'महाराजा को सौंप आज डसेगा महाराजा का मृत्यु होगा.' उस स्त्रीने-देवीने कहा, कारण जानकर शतमति P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust