________________
(१४) जेनी जंघा रोम सहित होय जे, ते सघलाउ उत्तम कहेवाय; तथा रोम रहित जंघावाला पुःखनीखाण समान , वली जेनी जंघा पर अनंतां रोम बे, तेने अनंतुं पुःख होय . . हवे जेवी हाथीनी, हंसनी तथा वृषजनी गति होय, तेवी गति जेनी होय ते माणस अति उत्तम कहेवाय ... __ जे माणस पाणी, हरण अने अश्व सरखी गतिथी चाले बे, ते माणसने नाग्यहीन जाणवो. ... बकरा, उंट अने ससलाजेवी गतिथी जे माणस चाले तेने पण जाग्यहीन जाणवो.
पाणीनां मोजां, कागमा अने घुवर सरखी जेनी गति होय, तेने उव्यहीन तथा गुणहीन माणस जाणवो तथा ते अत्यंत उःखी थाय. ___ कुतरा, उंट अने नेंस सरखी जेनी गति होय तथा गधेमा अने सुअर सरखी जेनी गति होय, तेने पण सुख अने लाग्यथी हीन माणस जाणवो. . वली जेनी गति कुकमा सरखी होय, तेजना पर कलंक चडे , तथा तेउनुं मान बिलकुल वृद्धि पामतुं नथी.
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org