Book Title: Samraicch Kaha Part 2
Author(s): Haribhadrasuri, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 2
________________ समराइच्चकहा आचार्य हरिभद्र सूरि की, प्राकृत गद्य भाषा में निबद्ध एक ऐसी आख्यानात्मक कृति, जिसकी तुलना महाकवि बाणभट्ट की 'कादम्बरी', जैन काव्य 'यशस्तिलकचम्पू' और 'वसुदेवहिण्डी' से की जाती है । प्रचलित भाषा में इसे नायक और प्रतिनायक के बीच जन्म-जन्मान्तरों के जीवन-संघर्षों की कथा का वर्णन करनेवाला प्राकृत का एक महान् उपन्यास कहा जा सकता है । मूल कथा के रूप में इसमें उज्जयिन्नी के राजा समरादित्य और प्रतिनायक अग्निशर्मा के नौ जन्मों (भवों) का वर्णन है। एक-एक जन्म की कथा एक-एक परिच्छेद में समाप्त होने से इसमें नौ भव या परिच्छेद हैं। आज से पचास वर्ष पूर्व यह ग्रन्थ अहमदाबाद से संस्कृत | छायानुवाद के साथ प्रकाशित हुआ था । पहली बार इस ग्रन्थ का सुन्दर एवं प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद प्राकृत एवं संस्कृत के विद्वान् डॉ. रमेशचन्द्र जैन, बिजनौर ने किया है । इस प्रकार प्राकृत मूल, संस्कृत छाया के साथ इसके हिन्दी अनुवाद का प्रकाशन भारतीय ज्ञानपीठ की एक और महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। ग्रन्थ के बृहद् आकार में होने से इसके पाँच भव 'पूर्वार्ध' के रूप में और अन्तिम चार भव 'उत्तरार्ध' के रूप में, इस तरह यह पूरा ग्रन्थ दो जिल्दों में नियोजित है । आशा है, प्राकृत के अध्येताओं, शोध-छात्रों एवं प्राचीन भारतीय साहित्य के समीक्षकों के लिए यह कृति बहुत उपयोगी सिद्ध होगी। in Education International For Private & Personal Use Onity www.jainelibrary.org

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