Book Title: Sambodhi 2001 Vol 24
Author(s): Jitendra B Shah, K M Patel
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 124
________________ Vol. XXIV, 2001 गण्डस्स कहाणयं 119 यारिसा रायगुणा । तस्स रायस्स पउमावई नाम भज्जा । सा अईव रूववई, केरिसं तस्स रूवं ति-जारिसं तिलुत्तमाए तारिसं तस्स रूवं । रूवेण जुव्वणेण य, गुणेहिं लावण्णमज्झतणुएहिं । ठविया सा पयावइणा, कामपडागा तिहुयणस्स ॥३॥ परघरगमणालसया, परपुरिसलोयणेण जाच्चंधा | अविणयं दुम्मेहावी, घरस्स लच्छी न सा घरणी ॥४॥ भुंजइ परियण-भुत्ते, सुयइ पसुत्तम्मि परियणे सयले । पढमं चेव विबुज्झइ, वरइत्थिगुणेहिं संपन्ना ॥५॥ सोराया एरिसा भज्जाए समं भोगे भुंजमाणो चिट्ठ | अन्नं च तस्स रन्नो पुरोहिओ अत्थि गंडु त्ति नामेण । सो अइवरागमयमोहिओ पावो । तस्स य पंच-सयाणि महिलाणं अत्थि । अविरयस्स इक्किक्कमेलिऊणं, अंतेउरं कयं । इक्कम्मि पासायवरे अवहिट्टं ति सो यईसालउ हयासो । चितेइ - " तह करेमि जह वाउ वि न पविसइ न छिवइ, तं च भवणं सुरक्खियं करेइ । जो कोइ नामं पुरिसो, धम्मविउ वि न लहइ पवेसं भवणंगणं महिया सो इट्ट खोडयं, पत्थरेऊण चितेइ—''जइ को वि पइसरिस्सइ तो पगएण जाणेसु । एवं दिणे दिणे करेऊण रायस्सगासं गच्छइ । एवं वच्चइ कालो । अह अन्नया कयाइ जगंधरो नाम आसि साहू । विमासोववासे य धीरो तवसुसियंगो, महासत्तो, देसाणुदेसं विहरंतो समागओ तत्थ नयरम्मि । तस्स य भयवं पारणदिवसो वट्टइ । सो चितेइ — "पारणम्मि अज्ज इत्थे व,” सो भयवं जुगमित्तंतरदिट्ठीए गोचरचरियाए, भिक्खं पविट्ठो । सो साहु भवियव्वयाए अजाणमाणो गंडस्स भवणे पविट्ठो । सो ताहिं दिट्ठो भवणंगणबाहिरे चिट्ठइ । ताहिं च संलत्तकओ तुमं भगवयां किं न नायं, जहा - गंडस्स घरे पवेसो अन्नपुरिसस्स नत्थि ? ता तुमं तवस्सी महाणुभावो । जइ कह वि गंडो पासेइ न नज्जइ किं करेइ दुस्सालो ? धन्नोसि तुमं जेण घरवासो छंडे वि, लेइ पव्वज्जा । अम्हे पुण अकय-पुन्नाओ, परवस्सओ, एयारिसाणं महारिसीणं भिक्खं पि दायणं न लहाम । एवं अत्ताणं निंदिऊण बहुपयारं साहू भणिओ - भयवं ! " अम्हाणं धम्मं कहेह, जेण अन्नभवम्मि एइयारिसाओ न होहामि । साहुणा चितिऊण भणियं सुलभबोहियाओ धम्मसीलाओ जाणिऊण धम्मं कहेइ अहिंसाइलक्खणं । उवविट्ठो य आसणे अंतेउरियाण मज्झे महयासद्देण धम्मकहं करेइ— " पाणवह - मुसावाए अदत्तादाण मेहुणे ताव जाव परिग्गहे । एएसु वि जे दोसा ते निसामेह एग्गग्गमणा ।" एयम्मि देसकाले सो गंडो राउलगेहाउ पउलीए पविसमाणो सद्दं तत्थ निसुणेइ । को एसो दुरप्पा अंतेउरियाण मज्झे पविट्ठो ? निरक्खामि ताव एयं किं करेइ सो गंडो ? निलुक्को वंचियाहिं चिट्ठेइ | चिंतेइ—“सुणेमि ताव किं भणेइ पच्छा पुण पंच सयाणि कसप्पहारं देमो, एयस्स दुट्ठसालस्स पुण मारेयव्वो कसप्पहारेहिं चूरिऊण । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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