Book Title: Sambodhi 1979 Vol 08
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 6
________________ V. M. Kulkarni (18) Saaraviinna -Jovvana .. .. (p. 256) साअर-विइण्ण-जोव्वण-हत्थालंबं समुण्णमंतेहिं । . . . अन्भुट्ठाणं विम वम्महस्स दिण्णं तुह थणेहिं ॥ [ सादर-वितीर्ण-यौवन हस्तालम्ब समुन्नमद्भ्याम् । अभ्युत्थानमिव मन्मथस्य दत्तं तव स्तनाभ्याम् ।।]... (19) Sihipinchakannapura .. .. (p. 256) सिहि-पिच्छ-कण्णऊरा जाआ वाहस्स गठिवरी भमइ । मुत्ताहल-रहम-पसाहणाण मज्झे सवत्तीणं ॥ [शिखि-पिच्छ-कर्णपूरा जाया व्याधस्य गर्विणी / गर्ववती भ्रमति । मुक्ताफल-रचित-प्रसाधनानां मध्ये सपत्नीनाम् ॥] This gāthā, with some variant readings, occurs in G.S. (No. "I1.73) सिहिपेहुंणावअंसा वहुआ वाहस्स गम्विरी भमइ । गअमोत्तिअ-रस्म-पसाहणाण मज्झे सवत्तीणं ॥ . . [शिखि-पिच्छावतंसा वधू-धस्य गर्विणी | गर्ववती भ्रमति । गजमौक्तिक-रचित-प्रसाधनानां मध्ये सपत्नीनाम् ॥] (20) Candamayehi nisa .. .. (p. 259) चंदमऊहेहिं णिसा णलिणी कमलेहिं कुसुम-गुच्छेहि लमा। हंसेहि सरअ-सोहा कबकहा सज्जणेहि कीरइ गरुई ॥ [ चन्द्रमयूखैर्निशा नलिनी कमलैः कुसुमगुच्छैलता ।। हंसैः शरच्छोभा काव्यकथा सज्जनैः क्रियते गुरुकी ॥] This verse, which is in Skandhaka metre, is probably drawn from Harivijaya of Sarvasena, an epic poem now lost. (21) Viranam ramai ghusina .. .. (p. 262) वीराण रमई घुसिणारुणम्मि ण तहा पिआथणुच्छंगे । दिठी रिउ-गम-कुंभ-स्थलम्मि जह बहल-सिंदूरे ॥ *[वीराणां रमते घुसृणारुणे न तथा प्रियास्तनोत्सङ्गे । दृष्टी रिपु-गज-कुम्भ-स्थले यथा बहलसिन्दूरे ॥. .. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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