Book Title: Samaysara Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 6
________________ समयसार मे उनकी विचार-सरणि जैन दर्शन, कर्म सिद्धान्त, रत्नत्रयी और अनेकान्तवाद का विशदता के साथ विश्लेषण करती है। आठवें बन्धाधिकार की 40वी गाथा मे उल्लेख है : यारादी गाण जीवादी दसण च विण्णेय । छज्जीवणिक च तहा भणदि चरित्त तु ववहारो। (138) प्राचाराग आदि (भागमो) मे (गति) ज्ञान समझा जाना चाहिए और जीव प्रादि (तत्त्वो मे) (रुचि) दर्शन (सम्यग् दर्शन) (समझा जाना चाहिए)। छ जीव समूह के प्रति (करुणा) चारित्र (समझा जाना चाहिए) । इस प्रकार व्यवहार (नय) कहता है। षड्जीवनिकाय की चर्चा वर्तमान में प्राप्त आचाराग सूत्र मे यथावत् उपलब्ध है। समयसार का परिचय-इस ग्रन्थ का मूल नाम है "समयपाहुड" अर्थात् समयप्राभृत । ग्रन्थ मे तीन स्थानो पर "समयसार" का उल्लेख भी प्राप्त होता है। वर्तमान समय मे समयसार नाम ही प्रसिद्ध है। समय का अर्थ है आत्मा और सार का अर्थ है शुद्ध स्वरूप, अर्थात् अभेदरत्नत्रयरूप विशुद्ध आत्म-स्वरूप का इसमे वर्णन होने से इस ग्रन्थ का नाम समयसार है, जो सार्थक है। इसकी दूसरी व्युत्पत्ति भी है .-समय का अर्थ है सिद्धान्त और सार का अर्थ है तत्त्व/तात्पर्य/निष्कर्प। अर्थात् सिद्धान्त। आगम-गत तत्त्वो का जिसमे निचोड हो, सार हो, वह समयसार है। ग्रन्थगत तात्त्विक प्रतिपादन से यह अर्थ भी सार्थक है। समयसार की भाषा शौरसेनी प्राकृत है। 415 गाथाओ मे मुख्यत गाथा/आर्या छन्द का और कतिपय मे प्रार्या छन्द के भेदो

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