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निर्विचारता और सामायिक कि तुम्हारे जीवन में कभी दुःख तो नहीं आया ?' गृहस्वामी ने कहा-'इस दुनिया में जीना और दुःख का न होना-कैसी बात करते हो ? कौन आदमी ऐसा होगा, जो इस दुनिया मे जीता है और दुःख का अनुभव नहीं करता ! मैं तो बहुत दुःखी हूं। मेरे पास धन बहुत है । किन्तु लड़का नहीं है | क्या यह दुःख नहीं है ? बहुत बड़ा दुःख है।'
उसने कहा- 'नहीं चाहिए तुम्हारा अंगरखा ।'
वह दूसरे घर में गया | पूछा-'तुम्हारे कोई दुःख तो नहीं है ?' गृहस्वामी बोला-'दुःख पूछते हो ! यह टूटा-फूटा मकान । ये टूटे-फूटे बरतन । ये फटे पुराने कपड़े, फिर भी पूछते हो कि दुःख है या नहीं ? मैं अत्यन्त दुःखी हूं।'
__ उसने सोचा-बड़ा घर देखकर गया तो वहां भी दुःख है और छोटा घर देखकर गया तो वहां भी दुःख है।
वह तीसरे घर में गया | पूछा-'तुम्हें कोई दुःख तो नहीं है ?' उसने कहा-'परिवार हो और दुःख न हो- यह कैसे सम्भव है ? आए दिन पत्नी से झगड़ा होता है, कलह होती है | मैं दुःखी हूं।' ___ वह वहां से चला | घूमता गया, घूमता गया । बहुत घूमा । दिनों तक, महीनों तक घूमता रहा । गांव-गांव में अलख जगा दी । उसका संकल्प था कि अंगरखा पाना है और दुःख से परे होना है | घूमते-घूमते थक गया | निराश हो गया । एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिला, जो कह सके कि मैं दुःखी नहीं हूं। धनवान् दुःखी है । गरीब दुःखी है । संतान वाला दुःखी है । निःसंतान दुःखी है। सभी दुःखी हैं | वह थक गया । हैरान हो गया । असफल होकर वह गुरु के पास आया और बोला-'महाराज ! अंगरखा नहीं मिला । मैं तो सोचता था कि एक ही दिन में सफल हो जाऊंगा परन्तु मैंने महीनों तक खाक छान डाली | अन्त में असफल होकर आपके पास आया हूं। एक भी आदमी ऐसा नहीं मिला, जो कह सके कि वह सुखी है और मैं उसका अंगरखा पहनकर दुःख से छुटकारा पा सकुँ ।'
गुरु ने कहा- 'कितने मूर्ख हो तुम ! नहीं जानते सचाई को, जो इस दुनिया में जन्म लेता है वह दुःखों से कभी मुक्त नहीं रह सकता ।'
उसने कहा- 'महाराज ! जब आप इस सचाई को जानते थे तो मुझे
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