Book Title: Samayik
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 192
________________ १७८ अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक तो छोटी-सी समस्या है। गांव में ही नहीं, मैं घर-घर में श्मशानघाट कर दूंगा।' __इस प्रकार अनेक द्वन्द्व हैं, जिनकी परिक्रमा कर रहा है आदमी । ये सारे द्वन्द्व चित्त की स्थिति को विषम बनाए हुए हैं । चित्त की इस विषमता का नाम ही है संसार । यह द्वन्द्वों की दुनिया है । हम उस दूसरे संसार की बात करते हैं, जो अद्वंद्वों का संसार है, अध्यात्म का संसार है । एक है व्यवहार का संसार और एक है निश्चय का संसार | एक है आभास का संसार और एक है सत्य का संसार | आभास के संसार में आभास तो होता है सत्य का, पर पूरी सचाई नहीं होती । सत्य के संसार में सत्य का पूरा साक्षात्कार होता है । दोनों के बीच में भेदरेखा यह है कि जहां चित्त की विषमता है वहां है व्यवहार का संसार और जहां चित्त की विषमता नहीं है, समता है वहां है अध्यात्म का संसार, वास्तविक संसार । महत्त्व है समता का हम चाहते क्या हैं-विषमता या समता ? हमें प्रिय क्या है-समता या विषमता? हम चाहते हैं समता पर व्यवहार में लाते हैं विषमता । सिद्धांततः हमें प्रिय है समता, पर व्यवहार में है विषमता | जहां महत्त्व देने का प्रश्न आता है वहां हम समता को महत्त्व देते हैं। दो व्यक्ति लड़ रहे हैं। एक गालीगलौज कर रहा है, दूसरा शांत है (लोग उस शांत व्यक्ति को पसंद करेंगे, उसे अच्छा बतायेंगे ( झगड़ा या कलह करने वाले को कोई भी अच्छा नहीं कहेगा । इसका निष्कर्ष है कि हमारी अन्तश्चेतना का झुकाव सदा समता की ओर रहता है । किन्तु व्यवहार का गुरुत्वाकर्षण इतना तीव्र है कि वह विषमता की ओर खींचता है । एक ओर से समता की प्रेरणा प्राप्त होती है, दूसरी ओर से विषमता की प्रेरणा, यह बड़ी समस्या है | विषमता का जीवन पूरे इतिहास को देखें, जो व्यक्ति समता के साथ जीये हैं, उनको महान् आदर्श मान गया है । जिन लोगों ने विषमता का जीवन जीया है, उनका इतिहास तो है, पर उन्हें आदर्श व्यक्ति नहीं माना गया । उनके जीवन का अनुसरण करना किसी ने नहीं स्वीकारा । इतिहास में और हमारी धर्म परम्परा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 190 191 192 193 194 195 196 197 198