Book Title: Samayik
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 190
________________ १७६ अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक संसार क्या है ? यह एक अनुभूति है द्वन्द्व की । जोड़ा होना, युगल का होना,यह है संसार । इसमें सब दो होते हैं, एक कोई नहीं होता । एक होना अध्यात्म है, दो होना संसार है । लाभ और अलाभ-यह एक द्वन्द्व है। पदार्थ और व्यक्ति दो हैं । इष्ट पदार्थ का योग होना लाभ है । इष्ट पदार्थ का वियोग होना या जो चाहा, उसकी प्रप्ति न होना अलाभ है । यह एक द्वन्द्व-जोड़ा बन गया । आदमी की चैतसिक शक्ति का बहुत बड़ा भाग इस द्वन्द्व में बीतता है । इसने एक विचित्र मानसिक स्थिति का निर्माण किया है । इसके द्वारा एक आदत निर्मित हुई है, वह है सुख-दुःख की आदत । जब जो चाहा, उसकी प्राप्ति से आदमी प्रसन्न हो जाता है, सुख का संवेदन करता है और जो चाहा, वह नहीं मिला तो वह अप्रसन्न या दुःखी हो जाता है । आत्महत्या का हेतु ____ अनेक व्यक्ति या प्रायः सभी व्यक्ति अलाभ की स्थिति में भयंकर वेदना का अनुभव करते हैं । अलाभ में मानसिक स्थिति अधोगामी हो जाती है । व्यापार में घाटा लगा, व्यापारी आत्महत्या कर डालता है । परीक्षा में अनुत्तीर्ण हुआ, विद्यार्थी आत्महत्या करने या घर से पलायन करने की बात सोच लेता है | पदावनति हुई और बड़ा अफसर भी व्याकुल होकर प्राण-त्याग के लिए तत्पर हो जाता है । आत्महत्या है जानबूझकर मरना (आदमी ऐसी मृत्यु का इसलिए वरण करता है कि उसने अपने मन को लाभ और अलाभ से जोड़ रखा है। कभी-कभी लाभ में भी वह मर जाता है । अति लाभ होने पर व्यक्ति उस खुशी को सहन नहीं कर पाता, और वह मर जाता है। हमारे मन की स्थिति इस द्वन्द्व के साथ ऐसी जुड़ी हुई है कि उसने चित्त की विषमता का निर्माण कर दिया है | चित्त की विषमता मूल व्याधि है | यह जितनी सताती है उतनी न आर्थिक विषमता सताती है और न सामाजिक विषमता सताती है । विषमता आदमी में उथल-पुथल ला देती है । यह सबसे अधिक खतरनाक है। ( हमने एक ऐसी मानसिक स्थिति का निर्माण कर रखा है कि सुख की स्थिति आने पर हम फूल जाते हैं और दुःख की स्थिति में मुरझा जाते हैं । इसका तात्पर्य हुआ कि व्यक्ति की चेतना का कोई स्वतंत्र अस्तित्व ही नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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