Book Title: Samayik
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 184
________________ १७० अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक उसका निरक्षण करते चले जाएं तो कुछ क्षणों के बाद कपड़े का रंग बदलने लगेगा । जब हमारा निरीक्षण उस पर सघन रूप से केन्द्रित होगा तब कपड़ा अपनी गाथा कहने लगेगा-मैं क्या हूं, किससे बना हूं और मैं कैसा हूं, आदि आदि सारी बातें कपड़ा कह देगा, जिसे सुनकर हम आश्चर्य करेंगे | धन्वंतरि और लुकमान ने पौधों के गुण-धर्म का पता कैसे लगाया ? वे पौधे के पास जाकर बैठ जाते, उसका सघन निरीक्षण करते और उससे पूछते-बताओ ! तुम्हारा नाम क्या है ? तुम्हारा गुण-धर्म क्या है ? तुम्हारा उपयोग क्या है ? निरीक्षण करते-करते एक क्षण ऐसा आता, पौधा अपने आप सब कुछ कह देता-मेरा यह नाम है, मेरा यह गुण-धर्म है, मैं अमुक बीमारी के लिए उपयोगी हूं, आदि-आदि । बिना प्रयोगशाला के ये सारे अन्वेषण किए गए, जो पूरी तरह सफल रहे। परीक्षण की फलश्रुति आज प्रयोगशाला में वैज्ञानिक बैठता है, परीक्षण, निरीक्षण और प्रयोग करता चला जाता है । ऐसा करते-करते वह तथ्य और नियम को पकड़ लेता है । कुछ वर्ष पूर्व ही एक भारतीय वैज्ञानिक ने एक जीवाणु का पता लगाया है। आज की बड़ी समस्या है-समुद्र में तेल वाहक जहाज चलते रहते हैं । कभी-कभी वे जहाज तूफान आदि की चपेट में आकर, टकराकर टूट जाते हैं । टैंकर का सारा तेल समुद्र की सतह पर फैल जाता है । समुद्र के जल के ऊपर तेल की परत जम जाती है । समुद्र का पानी काम का नहीं रहता | वह जीवों को नुकसान भी पहुंचाता है। भारतीय वैज्ञानिक ने जिस जीवाणु का पता लगाया है, यदि उसे समुद्र में छोड़ दिया जाए तो वह समुद्र के जल पर फैले हुए तेल को खा जाएगा, समुद्र का पानी पुनः स्वच्छ बन जाएगा। महत्वपूर्ण सूक्त ____ जीवाणु की खोज का यह कार्य सतत निरीक्षण और गहन अनुसंधान से सम्भव बना है । एक दो बार देखने या पढ़ने मात्र से सचाई का पता नहीं चलता | जब दृढ़ संकल्प और सतत निरीक्षण का योग होता है तब नियम या सत्य का पता चलता है | बहुत कठिन होता है नियम का पता लगाना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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