Book Title: Samayik
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 146
________________ १३२ अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक मान ! तुम भी चले जाओ । हे देवी माया ! अब तुम्हारा यहां कोई काम नहीं है। तुम भी चली जाओ ।' सबने सोचा, शायद साधक पागल हो गया है, अन्यथा वह अपने जीवन साथियों को चले जाने के लिए क्यों कहता ? हमने कभी यह सोचा भी नहीं था कि इससे बिछुड़ना पड़ेगा । यह हमें इस प्रकार चुनौती देगा, यह हमारे समझ से परे की बात थी । इतने में साधक ने कहा'अरे भाई लोभ ! तुम भी अपना स्थान खाली करो । यहां से जहां चाहो वहां चले जाओ ।' क्रोध, मान, माया और लोभ- चारों असमंजस में पड़ गए । उन्होंने कहा - 'हम सदा से तुम्हारे साथ रहे हैं। एक क्षण के लिए भी हमनें तुम्हारा साथ नहीं छोड़ा । तुम्हारे सुख में भी हम साथ रहे और दुःख में भी हमने तुम्हारा साथ निभाया । आज तुम हमें छोड़ रहे हो, यह अन्याय है ।' साधक ने कहा- 'जब मैं सोया था तब तुम जागते थे । जब तक मैं सोता रहा, तुम मेरे में बने रहे । आज मैं जाग गया हूं । मेरी मूर्च्छा टूट गयी है । ऐसी कोई अमृत-वर्षा हो रही है, जिसमें मैं आकण्ठ मग्न हूं। मैं जागूंगा तब तुम नहीं रह पाओगे। मैं सोया रहता हूं तब ही तुम कुछ कर पाते हो । जागने के बाद तुम अकिञ्चित्कर हो जाते हो । मालिक जाग जाता है, तब चोर घर में नहीं रह सकते ।' सामायिक है आत्मिक उन्मेष जीवन में जब कोई आत्मिक उन्मेष जागता है, आध्यात्मिक घटना घटित होती है तब सारी दिशा बदल जाती है और सारी शक्ति श्रेयस की दिशा में प्रवाहित होने लग जाती है । यह आत्मिक उन्मेष ही सामायिक है । यह जागना ही सामायिक है । सामायिक, समता, साम्य तब घटित होता है जब स्वानुभव का एक लव भी जागृत हो जाता है। जब तक स्व का अनुभव नहीं होता, आत्मा का अनुभव नहीं होता, आत्मा का उन्मेष नहीं जागता, तब तक जीवन में सामायिक घटित नहीं होता, कुछ भी श्रेयस् घटित नहीं होता । सामायिक और चैतन्य का अनुभव - दोनों साथ में जुड़े हुए हैं। जितनाजितना चैतन्य का अनुभव उतना उतना सामायिक । ऐसे भी कहा जा सकता है - जितना - जितना सामायिक, उतना उतना चैतन्य का अनुभव, स्व का Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org

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