Book Title: Samayik
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 179
________________ नेर्द्वन्द्व चेतना है समता १६५ उत्तर दिया- भैया ! जो निंदा होती है, वह मेरे पास आती है किन्तु उस समय मैं अपने आप को इतना ऊंचा उठा लेता हूं कि वह मेरे पास पहुंच ही नहीं ती। मुझमें हीनभावना कैसे आएगी ? मस्तिष्क को साधें जिस व्यक्ति ने आपको ऊंचा उठा लिया, उस तक निंदा या प्रशंसा की बात पहुंच ही नहीं पाती । उसमें कैसे अहंकार आएगा और कैसे हीनभावना जागेगी ? ऊंचा उठाने का तात्पर्य है - मस्तिष्क को इस प्रकार से साध लेना के वह दोनों स्थितियों में एकरूप रह सके । 1 ये पांच द्वन्द्व हैं, अनुकूलता और प्रतिकूलता के संवेदन को जन्म देने बाले घटक तत्त्व हैं । अनुकूलता और प्रतिकूलता की परिस्थितियां तनाव पैदा करने वाली हैं । पूरा समाज इन परिस्थितियों के कारण तनाव को भोग रहा है । मानसिक तनाव क्यों पैदा होता है ? भावनात्मक तनाव क्यों पैदा होता है ? इनका कारण ये पांच अनुकूल और प्रतिकूल द्वंद्व हैं। पांच परिस्थितियां अनुकूलता की हैं और पांच प्रतिकूलता की । इन दस परिस्थितियों के प्रति हमारा दृष्टिकोण बदल जाए, उस दृष्टिकोण से मस्तिष्क प्रशिक्षित हो जाए तो समस्या का समाधान सामने दिखाई देगा | टूटती है भ्रांतियां ध्यान का मतलब है सचाइयों का अनुभव करना, सचाइयों को जानना । जब तक हम भीतर में नहीं जाएंगे, हमें सचाइयों का पता नहीं चलेगा । बाहर में जो सचाइयां प्रतीत होती हैं, उनके साथ बहुत भ्रांति पैदा हो जाती है । उपाध्याय यशोविजयी ने लिखा- जिस व्यक्ति ने अपने आप को नहीं देखा, आत्मा को नही देखा, उसकी पदार्थ के प्रति होने वाली भ्रांति कभी टूटेगी नहीं । उस व्यक्ति की पदार्थ के प्रति भ्रांति टूटती है, जिसने अपने आपको देखा है | जब हम अपनी आत्मा को जानने की दिशा में आगे बढ़ेंगे तब हमारी पदार्थ विषयक भ्रांतियां टूटेंगी। हमारा प्रशिक्षण अलग प्रकार का बन जाएगा, मस्तिष्क को नई जानकारियां मिलेंगी। जब तक पदार्थ के जगत् में ही रहेंगे, अपने भीतर झांकने का प्रयत्न नहीं रेंगे तब तक भ्रांतियां बढ़ती ही चली जाएंगी । Jain Education International ا For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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