Book Title: Samayik
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 176
________________ १६२ अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक भी नहीं । इस अलाभ की स्थिति में तनाव पैदा होना चाहिए पर तनाव पैदा नहीं होता क्योंकि उसका मस्तिष्क शिक्षित है । वह सोचता है-चलो, कोई बात नहीं, आहार करना भी एक काम था और आहार नहीं मिला तो सहज उपवास हो गया । कितना अच्छा हुआ कि आज सहज मुझे उपवास करने का मौका मिल गया । ऐसे व्यक्ति में तनाव कैसे पैदा होगा, जिसका मस्तिष्क शिक्षित हो जाता है ? मस्तिष्क का वह प्रकोष्ठ, जो समता को पैदा करता है, जागृत हो जाए तो तनाव पैदा नहीं होगा । सुख और दुःख सुख और दुःख तनाव पैदा करने वाले हैं । सुख भी तनाव पैदा करता है और दुःख भी तनाव पैदा करता है। किसी व्यक्ति को सुख ज्यादा मिला, सुख की सामग्री ज्यादा मिली और जीवन में सुख का संवेदन ज्यादा हुआ तो भी तनाव पैदा हो जाता है । भोग भी तनाव पैदा करता है | ज्यादा सुख मिलता है तो मन में दसरा विकल्प आता है। जो लोग हमेशा बड़े-बड़े मकानों में रहते हैं, उनके मन में आता है-चलो, जंगल की सैर करें । यह जंगल की सैर क्यों ? इसलिए कि एक स्थिति में आदमी कभी प्रसन्न नहीं रहता। उसे यह पसन्द नहीं आता कि वह एक ही स्थिति में रहे । वह स्थिति को बदलते रहना चाहता है । जो प्रतिदिन बढ़िया-बढ़िया भोजन करता है, उसके मन में कभी-कभी बाजरे की रोटी और बाजरे का दलिया खाने की बात भी आ जाती है । इसलिए आती है कि आदमी बदलना चाहता है, एक रूप में रहना नहीं चाहता । ज्यादा सुख भी तनाव पैदा कर देता है और व्यक्ति कभीकभी कह भी देता है कि चारों ओर सुख ही सुख का वातावरण है, पदार्थ ही पदार्थ हैं । मुझे तो ऐसा जीवन जीना है, जहां ये न हों । बड़े-बड़े राजा और सम्राट् जो मुनि बने हैं, सुखों से ऊब कर बने हैं । उनके मन में विराग क्यों आया ? इसलिए कि अतिभोग विराग पैदा करता है । इतना भोग लिया, इतनी सारी सामग्री पा ली फिर भी कहीं शान्ति नहीं मिली, इसलिए छोड़ने की बात मन में आई । अगर सुख तनाव पैदा नहीं करता तो कोई भी राजा या धनी आदमी आज तक संन्यासी नहीं बनता, मुनि नहीं बनता । यह अतिभाव तनाव भी पैदा करता है, वैराग्य का एक कारण भी बनता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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