Book Title: Samadhan Author(s): Bhadraguptasuri Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (प्रकाशकीय पूज्य आचार्य श्री विजयभद्रगुप्तसूरीश्वरजी महाराज (श्री प्रियदर्शन) द्वारा लिखित तथा पूर्व में विश्व कल्याण प्रकाशन (महेसाणा) से प्रकाशित हिन्दी साहित्य जैन समाज में ही नहीं... वरन् काफी बड़े जन समाज में बड़ी उत्सुकता के साथ पढ़ा जाता रहा है ! पूज्यश्री का १९ नवंबर, १९९९ को अहमदाबाद में कालधर्म होने के बाद विश्वकल्याण प्रकाशन ट्रस्ट द्वारा उनकी संस्था का विसर्जन करने व पूज्यश्री के प्रकाशनों का पुनः प्रकाशन बंद करने के निर्णय की बात सुनकर हमारे ट्रस्टी श्री किरीटभाई कोबावाला को यह भावना हुई कि पूज्यश्री प्रियदर्शनजी का उत्कृष्ट साहित्य जन-जन तक पहुँचता रहे, इसके लिए कुछ करना चाहिए. उन्होंने इस हेतु ट्रस्टीगण के पास प्रस्ताव रखा और परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज से सहमति ली. दोनों आचार्य भगवंतों में परस्पर घनिष्ठ मित्रता थी. अंतिम दिनों में पू. श्री भद्रगुप्तसूरिजी ने आचार्य श्री पद्मसागरसूरिजी से मिलने की इच्छा व्यक्त की थी. पूज्य आचार्यदेव ने इस कार्य हेतु मात्र व्यक्ति, व्यक्तित्व और कृतित्व के आधार पर अपनी सहर्ष सहमति दे दी. आपश्री का आशीर्वाद पाकर कोबा तीर्थ के ट्रस्टीगण ने विश्वकल्याण प्रकाशन ट्रस्ट के समक्ष यह प्रस्ताव रखा कि हम इस कार्य को आगे बढ़ाना चाहते हैं. कोबातीर्थ के ट्रस्टीगण की उत्कृष्ट भावना को ध्यान में रखते हुए विश्वकल्याण प्रकाशन ट्रस्ट ने श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबातीर्थ को स्वयं के द्वारा प्रकाशित सभी प्रकाशनों के पुन:प्रकाशन के अधिकार सहर्ष सौंप दिए. श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के अंतर्गत श्रुत सरिता (जैन बुक स्टाल) द्वारा इन पुस्तकों का विक्रय जारी है. साथ ही अनुपलब्ध हो चुके साहित्य का पुनः प्रकाशन करने की शृंखला में समाधान वाचकों के हाथों में प्रस्तुत है. इस पुस्तक में विश्वकल्याण प्रकाशन ट्रस्ट की सहयोगी संस्था अरिहंत प्रकाशन मंदिर के तत्वावधान में अरिहंत मासिक पत्र में जनवरी १९८९ से जनवरी १९९४ तक आचार्य श्री विजयभद्रगुप्तसूरि महाराज के समाधान शीर्षक के अंतर्गत प्रकाशित हुए पत्रों का संकलन है. इन पत्रों द्वारा जीवन में घटने वाले अच्छे-बुरे प्रसंगों के पीछे छिपे कर्म विज्ञान के तत्त्वज्ञान को बखूबी सुस्पष्ट किया गया है. इस पुस्तक का अध्ययन कर चिंतन करने से व्यक्ति सुख में लीन और दुःख में दीन न हो कर समता भाव For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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