Book Title: Sadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 308
________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी २८६ संकल्पबल को कमजोर नहीं बना सकी। चित्त की परिपक्वता होती है तभी व्यक्ति का संकल्प इतना पुष्ट हो सकता है। बाणभट्ट का यह सुभाषित पूज्य गुरुदेव की संकल्पशक्ति का प्रतिनिधित्व करने वाला है अंगणवेदी वसुधा कुल्या जलधिः स्थली च पातालम्। वल्मीकश्च सुमेरुः, कृतप्रतिज्ञस्य धीरस्य॥ संकल्पनिष्ठ व्यक्ति के लिए पृथ्वी आंगन की वेदी के समान, समुद्र नहर के समान, पाताल स्थल के समान तथा सुमेरु वल्मीक के समान हो जाते हैं। एक चीनी कहावत है कि महापुरुषों के संकल्प होते हैं और दुर्बल व्यक्तियों की केवल इच्छाएं। यही कारण है कि सामान्य व्यक्ति अपने जीवन से संबंधित विशेष दिन को नए कपड़े खरीदकर, आमोद-प्रमोद मनाकर या स्वजनों से उपहार प्राप्त करके मनाता है किन्तु पूज्य गुरुदेव अपना जन्मदिन विशेष संकल्पों को संजोते हुए मनाते थे। धर्मशास्त्रों में जन्मदिन को ग्रंथि-प्रतिलेखन का दिवस कहा गया है। एक वर्ष में एक गांठ नई लगती है, उसके साथ पिछली गांठों का पर्यालोचन और पर्यवेक्षण भी आवश्यक है। जन्मदिन पर चित्रपट की भांति पिछला सारा जीवन साकार हो जाना चाहिए। पूज्य गुरुदेव का मानना था कि जन्मदिन सिंहावलोकन का दिन होता है, भूल-निरीक्षण का दिन होता है और भविष्य के लिए कुछ नए प्रयोग एवं संकल्प ग्रहण करने का दिन होता है। यही कारण है कि पश्चिम रात्रि को बहुत जल्दी जागकर वे आत्मालोचन एवं आत्मचिन्तन में लीन हो जाते थे। ४१वें जन्मदिन पर अपनी अनुभूति व्यक्त करते हुए गुरुदेव तुलसी ने कहा- 'पूरे वर्ष का लेखा-जोखा करने के लिए मैं एक वर्ष पीछे लौटा। कहीं एक-एक दिन कहीं एक-एक महीना और कहीं समुच्चय रूप से पूरे वर्ष को देखा। क्या खोया? क्या पाया? और क्या पाना है ? इस त्रिपदी के आधार पर अच्छा आत्मविश्लेषण हुआ।' इसी प्रकार सन् १९६१ में संवत्सर प्रतिलेखन करते हुए गुरुदेव ने फरमाया- "यह दिन मुझे प्रतिवर्ष हल्का और भारी बनाता है। पिछले वर्ष के चिन्तित और संकल्पित कार्यक्रमों को पूर्णता के बिंदु तक पहुंचाकर मैं हल्कापन अनुभव करता हूं। भारी इस माने में कि आगामी समूचा

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