Book Title: Sadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 313
________________ २९१ साधना की निष्पत्तियां सकेगी। यह संघर्ष हमारे भविष्य के लिए शुभसूचक है। आज मैं इस विषम स्थिति में अपने शुभचिंतकों को पूर्णरूप से संयमित रहने का निर्देश देता हूं। मुझे विश्वास है कि वे किसी भी स्थिति में अहिंसा को नहीं भूलेंगे। आज जन्मदिन पर मैं उन लोगों के प्रति भी शुभकामना करता हूं, जिन्होंने मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया है। समता, सहिष्णुता और एकाग्रता- इन तीनों के बिना ऊपरी साधना केवल भारभूत रहेगी। मेरे भावी जीवन में मैं इन तीनों बातों के लिए संकल्पबद्ध होकर आगे बढ़ना चाहता हूं।' यह सहिष्णुता का अमर संदेश आने वाली पीढ़ियों को भी समता का आलोक देता रहेगा तथा अहिंसात्मक प्रतिरोध का पाठ पढ़ाता रहेगा। सन् १९७१ में ५८वें जन्मदिन पर लाडनूं नगरी में अपनी ओजस्वी वाणी को प्रस्फुटित करते हुए पूज्य गुरुदेव ने उद्घोषणा की- 'आगामी वर्ष में मैं निष्काम कर्म की प्रेरणा देने के लिए अपने आपको सक्रिय रूप में प्रस्तुत करना चाहता हूं।' आज के युग में जहां "काम कम, नाम अधिक" का नारा बुलंद है, वहां सर्वथा निष्काम कर्म का प्रयोग अध्यात्म के उच्च शिखर पर आरूढ़ व्यक्ति द्वारा ही संभव है। इस स्थिति को प्राप्त करने के बाद साधक प्रतिक्षण समाधि में रहता है क्योंकि आकांक्षा और कामना ही साधना के सबसे बड़े विघ्न हैं। सन् १९७२ में यशस्वी जीवन के ५९वें जन्मदिन पर चूरू की ऐतिहासिक भूमि में गुरुदेव ने समता की साधना का विशेष रूप से संकल्प किया तथा संघ में निर्माण कार्य के साथ-साथ परिमार्जन और संशोधन का बीड़ा उठाने का भी संकल्प लिया। ___ साठवें जन्मदिन पर प्रातः पंचमी समिति के पश्चात् गुरुदेव ने खड़े-खड़े सूर्याभिमुख होकर ध्यान किया। ज्योतिषियों ने घोषणा करते हुए कहा कि यह वर्ष आपके लिए बहुत शुभ है। गुरुदेव ने उत्तर देते हुए कहा- "मुझे तो सभी वर्ष अच्छे लगते हैं। वर्ष क्या हर वर्ष का प्रत्येक महीना और प्रत्येक दिन शुभ हो, यह मेरी कामना है। मेरी दृष्टि में शुभ का अर्थ है- कार्यकारी। स्वीकृत संकल्पों को पूर्ण करने में यह वर्ष जितना कार्यकारी होगा, मन उतना ही संतुष्ट रहेगा।"

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